Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

भूदान ने बदली ज़िंदगी, बहेलिये बन गए पक्षियों के पैरोकार

बिहार में गया जिले के परैया प्रखंड में भूदान से मिली जमीन ने बहेलियों के जीवन का मकसद बदल दिया है. कभी चिड़ियां का शिकार करने वाले 40 से ज्यादा बहेलिया परिवार पक्षी का शिकार छोड़ चुके है. ये परिवार अब इसी जमीन पर फलों की खेती करता है और इनके बागान में कई तरह की पक्षियां ने स्थायी बसेरा बना लिया है.

भूदान ने बदली ज़िंदगी, बहेलिये बन गए पक्षियों के पैरोकार

Sunday August 28, 2022 , 8 min Read

‘बहेलिया आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा...’ हिन्दी क्षेत्र में कौन होगा जिसने यह कहानी न सुनी होगी! इस कहानी में जिस बहेलिया समुदाय को पक्षियों के लिए खतरा बताया गया है उसी समुदाय से आने वाले करीब 40 परिवार आज पुश्तैनी पेशे से बाहर निकलकर पक्षियों को बचाने की मुहिम में लगे हुए हैं.

इसी समूह से आते हैं अर्जुन राम जिनके हाथों में कभी चिड़ियां फंसाने वाले औजार हुआ करता था. बिहार के गया जिले के परैया के सर्वोदय नगर गांव के रहने वाले अर्जुन राम के उन्हीं हाथों में अब खेती-बाड़ी का सामान और स्मार्टफोन होता है. उन्हें खुशी है कि कल तक माथे पर चिड़ियों को मारने का कलंक था, आज वो मिट चुका है. आज उनकी 12 साल की बेटी खुशी कुमारी और 7 साल का बेटा हिमांशु पास के सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं.

मोंगाबे-हिन्दी से बात करते हुए अर्जुन राम दौरान बताते हैं, “हमलोग समाज के दूसरे लोगों को देखते थे कि कैसे वे लोग पढ़-लिख कर आगे बढ़ रहे हैं. हमलोगों के दादा-परदादा घूम घूम कर चिड़ियां मारते थे. हम भी ई काम किए. यह हमारा पुश्तैनी पेशा हुआ करता था. लोग हमें चिड़ीमार और क्या-क्या तो बुलाते थे. पर अब हमलोग पूरी तरह इ काम को छोड़ दिए हैं और अपने बागीचे में दूसरों को भी पक्षियों का शिकार नहीं करने देते. यह अगल-बगल के लोग भी जानते हैं. आज हमारा बच्चा पढ़ रहा है. कोई इनको पुश्तैनी पेशे की वजह से कुछ नहीं कहता. हमको इस बात का बहुत खुशी है.”

भूदान ने बदली बहेलियों की जिंदगी

अर्जुन राम की कहानी की शुरुआत 1960 से होती है. अर्जुन राम के दादा और उनका तब का कुनबा घूम-घूम कर पक्षियों का शिकार करता था. गया के टिकारी महाराज गोपालशरण की धर्मपत्नी ने 1950 में 80 एकड़ जमीन बिनोवा भावे के अनुरोध पर सर्वोदय आंदोलन में दान दे दी थी. कंटीली झाड़ियों और श्मशान की जमीन पर कोई रहना नहीं चाहता था. 1960 में अर्जुन राम के पूर्वज तिलकधारी राम अपने पांच साथियों के साथ यहां आए थे. ये सभी गरीब बहेलिये थे. पक्षी का शिकार ही पेशा था. विनोबा भावे के सहयोगी मंझार गांव के रहने वाले लाला भाई ने कोंच से आए इन पांचों गरीब बहेलिया परिवार के बीच यह जमीन दी. तब से ये लोग इस जमीन को ऊपजाऊ बनाने में लग गए और धीरे-धीरे इसी जमीन पर बागवानी का काम करने लगे.

आज तिलकधारी राम का कुनबा 40 परिवार का हो चुका है. अर्जुन राम भी उसी कुनबे का हिस्सा हैं. खास बात यह है कि अब इस कुनबे का कोई भी शख्स पक्षी का शिकार नहीं करता. बल्कि अपने बाग़ में इन पक्षियों की रक्षा करते हैं, ताकि ये पक्षी इनके बागों के कीट वगैरह खा कर बागों को बचा सकें. इस बाग़ से हर साल करीब 100 टन आम की उपज होती है. साथ ही, दूसरे तरह के फल भी यहां उगाए जाते हैं. कभी पक्षियों का शिकार कर जीवनयापन करने वाले बहेलिया अब पक्षियों के रक्षक बन चुके हैं.

जिनके हाथों में कभी चिड़ियां फंसाने वाले औजार हुआ करते थे, वो अब चिड़ियों को बचा रहे हैं। अब वे लोग खेती कर अपना गुजारा करते हैं। तस्वीर- शशि शेखर/मोंगाबे

जिनके हाथों में कभी चिड़ियां फंसाने वाले औजार हुआ करते थे, वो अब चिड़ियों को बचा रहे हैं. अब वे लोग खेती कर अपना गुजारा करते हैं. तस्वीर - शशि शेखर/मोंगाबे

एक अच्छा बदलाव किस तरह पूरी जिंदगी बदल सकता है, इसकी बानगी अर्जुन राम के चाचा कैलाश राम हैं. कैलाश राम अब बागवानी के साथ-साथ गांव में राशन डीलर के तौर पर काम भी कर रहे हैं. बातचीत में बड़े गर्व से बताते है, “हम नौकरी भी करते हैं और बागवानी भी.” वो कहते हैं कि हमलोग अब किसी को चिड़ियां का शिकार करने नहीं देते हैं. अर्जुन राम अपने परिवार के पुराने पेशे को लेकर एक खास बात भी कहते हैं,” सर, हमलोग जब पक्षी का शिकार करते थे, तब कभी-कभी भूखे भी सोना पड़ता था, लेकिन जब से ई काम छोड़े हैं, तब से कभी भूखे पेट नहीं रहना पडा है.”

बागान में आने वाले पक्षी से फ़ायदा होता है या नुकसान, इस पर अर्जुन राम और उनके साथी दीपक चौधरी और रणजीत कुमार का कहना है, “पक्षी के चलते हमलोगों को फ़ायदा है. पक्षी कीड़ों को खा जाता है. बाग़ चिड़ियां से गुलज़ार रहता है.” लेकिन, पक्षी फल भी तो खा जाते होंगे, इससे तो नुकसान होता होगा, इस सवाल पर इन लोगों ने माना कि हां कुछ नुकसान तो हो जाता है, लेकिन फ़ायदा इतना है कि नुकसान बहुत भारी नहीं पड़ता है.

केएस गोपी सुंदर पक्षी वैज्ञानिक हैं. मोंगाबे-हिन्दी ने उनसे इस मुद्दे पर बात की कि क्या पक्षियों के बागान में रहने से फसल को फ़ायदा पहुंचता है और अगर हां, तो कैसे? इस मुद्दे पर सुंदर एक ऐतिहासिक संदर्भ बताते हैं. इसके लिए वे चीन का उदाहरण देते हैं, जहां फसल बर्बाद करने का आरोप गोरैया पर लगाया गया और पूरे देश से गोरैया को साफ़ करने का अभियान चलाया गया, जिसके बाद पाया गया कि फसल को भारी नुकसान हुआ, क्योंकि गोरैया कीटाणु वगैरह खा कर उलटे फसल की ही रक्षा करती थी. इसके बाद चीनी लोगों ने गोरैया मारना बंद कर दिया और माना कि हां, गोरैया थोड़ा-बहुत अन्न जरूर खा रही होगी, लेकिन बदले में कीटाणु वगैरह खाकर किसानों को फ़ायदा ही पहुंचा रही थी.

इसी तरह, सर्वोदय नगर के इस उदाहरण पर वो कहते हैं,“ अगर उस बागान में अलग-अलग प्रजाति की चिड़ियां होंगी, तो ग्राउंड पर रहने वाली चिड़ियां अलग कीटाणु खाती है, पेड़ पर रहने वाली चिड़ियां अलग तरह के कीटाणु को खाती है, तो पक्के तौर पर इसका फ़ायदा होगा.” सुंदर बताते हैं कि अगर आपने एक बार चिड़ियां मारना बंद कर दिया है तो वहां बड़ी संख्या में चिड़िया आएंगी. इसका दूसरा पक्ष यह है कि वहां बड़ी संख्या में इंसेक्ट्स (कीड़े) भी होंगे, तो चिड़ियों को कीड़ों के रूप में भोजन भी मिल रहा होगा.” इनकी स्पष्ट राय है कि अगर विभिन्न प्रजातियों की पक्षियां किसी एक जगह पर हो तो इसका फ़ायदा फसल को निश्चित ही होगा और यह तथ्य वैज्ञानिक रूप से साबित किया जा चुका है. हालांकि, वो यह भी कहते हैं कि सर्वोदय नगर मामले में इसके ठोस असर को समझाने के लिए व्यापक रिसर्च करनी होगी, लेकिन फ़ायदे से इनकार नहीं किया जा सकता है.

सर्वोदय नगर में कई तरह की प्रजातियां

अर्जुन राम बताते है कि उनके बागान में कौवा, गोरैया, मैना, कोयल, तोता आदि प्रजाति के पक्षी आते हैं. एक स्थानीय पत्रकार विजय कुमार से बात हुई तो उनका कहना था कि गया के टिकारी अनुमंडल में उन्हें काफी साल हो गए थे मैना पक्षी को देखे हुए, लेकिन इस बाग में उन्हें मैना समेत बड़ी संख्या में पक्षी देखने को मिलते हैं. संभव है कि मौसम के हिसाब से भी पक्षी आते होंगे, जिनके बारे में अर्जुन राम जैस लोगों को पूरी जानकारी न हो. इसलिए यह जरूरी है की सर्वोदय नगर के इन बागान मालिकों (बहेलियों) को एक केस स्टडी बना कर पक्षी वैज्ञानिकों को इस तथ्य की वैज्ञानिक पुष्टि करनी चाहिए कि पक्षी और फसल उत्पादन के बीच क्या, कितना और कैसा संबंध है. इस लिहाज से इन बहेलियों ने समाज के साथ-साथ कृषि विज्ञान क्षेत्र के लिए भी एक प्रयोग स्थल मुहैया करा दिया है, जिसके लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए.

बिहार स्थित रामसर स्थल कांवर झील की एक तस्वीर। यहां प्रवासी पक्षी आते हैं। तस्वीर- वैभव/विकिमीडिया कॉमन्स

बिहार स्थित रामसर स्थल कांवर झील की एक तस्वीर. यहां प्रवासी पक्षी आते हैं. तस्वीर - वैभव/विकिमीडिया कॉमन्स

अर्जुन राम और उनके दर्जनों साथी आज से तीन-चार साल पहले तक पक्षियों का शिकार करते थे. यहां तक कि उनके बागान में आने वाली पक्षियों का भी शिकार बाहर से आ कर बहेलिये कर लेते थे और ये लोग रोकते नहीं थे. लेकिन, अब शिकार का काम इन लोगों ने पूरी तरह बंद कर दिया है. वजह ये रही कि बीच के कुछ सालों में इनके बागान के फलों की फसल खराब हो गई. शिकार के कारण पक्षियों की आमद कम हो गई थी. इन्हें समझ आया कि पक्षी रहते थे तो फसल की सुरक्षा होती थी. इस बात को जब इन लोगों से समझा तो शिकार पर पूरी तरह रोक लगी दी गई. अब वो बाहर से आने वाले बहेलियों को भी शिकार नहीं करने देते.

बता दें कि भूदान आंदोलन भारत में काफी प्रसिद्ध रहा है. और इस मायने में विवादास्पद भी कि इसमें दान दी गई जमीन आखिर गरीबों को क्यों नहीं मिली? सिर्फ बिहार के पास भूदान से 6,48,593.14 एकड़ जमीन मिली थी. इसमें से 2,56,658.94 एकड़ जमीन भूमिहीनों के बीच वितरित की गई. अभी भी 5,749.73 एकड़ जमीन इसलिए नहीं बांटी जा सकी है क्योंकि यह वितरण के लिए अनफिट माना (विवादास्पद) गया है. इसके अलावा, पहले से वितरित जमीनों पर मालिकाना हक़ को ले कर भी कई जगह विवाद की खबरें आती रहती है.

लेकिन, बिनोवा भावे के सर्वोदय आंदोलन से जुडा सर्वोदय नगर में इसी भूदान आंदोलन से मिले जमीन के एक टुकड़े ने आज वैश्विक पर्यावरण, पड़ों को बचाने की दिशा में एक नया संदेश दिया है. जमीन के इस टुकड़े ने पक्षी का शिकार करने वाले बहेलिया समाज की जिंदगी पूरी तरह बदल दी है.

(यह लेख मूलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)

बैनर तस्वीर: पटना पक्षी अभयारण्य के पास उड़ते पक्षी. तस्वीर - विराग शर्मा/विकिमीडिया कॉमन्स