टाटा-मिस्त्री मामला: रतन टाटा, टाटा न्यास, समूह की कंपनियां पहुंची उच्चतम न्यायालय
टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा, टाटा घराने के कुछ न्यासों तथा टाटा समूह की कुछ कंपनियों ने भी साइरस मिस्त्री को पुन: नियुक्त करने के राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।
समूह की धारक कंपनी टाटा संस पहले ही इस फैसले को न्यायालय में चुनौती दे चुकी है।
टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन टाटा ने साइरस मिस्त्री मामले में शुक्रवार को अलग से उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की। इससे पहले टाटा संस एनसीएलएटी के फैसले के खिलाफ बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी। टाटा संस 110 अरब डॉलर की टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी है। टाटा संस में टाटा ट्रस्ट्स की 65.89 प्रतिशत हिस्सेदारी है। रतन टाटा लंबे समय तक टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन रहे हैं।
रतन टाटा ने अपनी याचिका में कहा है कि मिस्त्री ने अपने समय में निदेशक मंडल के सदस्यों की शक्तियां अपने हाथों में ले ली थीं तथा ‘टाटा ब्रांड’ की छवि खराब कर रहे थे।
रतन टाटा का कहना है कि मिस्त्री ‘‘नेतृत्व में कमी थी’’ क्यों कि टाटा संस का चेयरमैन बन जाने के बाद भी खुद को समय से अपने परिवार के कारोबार से दूर करने को लेकर अनिच्छुक थे, जबकि उनके चयन के साथ यह शर्त लगी हुई थी।
रतन टाटा ने मिस्त्री को पुन: टाटा संस का चेयरमैन नियुक्त करने के राष्ट्रीय कंपनी काननू अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के हालिया आदेश के खिलाफ शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की। इससे पहले टाटा संस बृहस्पतिवार को एनसीएलएटी के उक्त फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दे चुकी है।
रतन टाटा ने कहा,
‘‘मिस्त्री के नेतृत्व में खामियां थीं। वह टाटा संस का चेयरमैन बन जाने के बाद भी समय से खुद को अपने पारिवारिक कारोबार से अलग करने तथा पारिवारिक कारोबार से संबंधित हितों के संभावित टकराव की स्थितियों को दूर करने को तैयार नहीं थे जबकि यह इस पद पर उनकी नियुक्ति की पूर्व शर्त थी।’’
उन्होंने कहा,
‘‘मिस्त्री ने सारी शक्तियां व अधिकार अपने हाथों में ले लिया था। इसके कारण निदेशक मंडल के सदस्य टाटा समूह की ऐसी कंपनियों के परिचालन के मामलों में अलग-थलग महसूस कर रहे थे, जहां टाटा संस का ठीक-ठाक पैसा लगा हुआ था। टाटा संस के निदेशक मंडल ने ऐसे मामलों में लिये गये निर्णयों का विरोध भी किया था।’’
श्री दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट के न्यासियों ने उच्चतम न्यायालय में दायर अपनी याचिकाओं में कहा है कि एनसीएलएटी के निर्णय में गंभीर कानूनी खामियां हैं और दरअसल गलत अवधारणाओं पर आधारित है। यह फैसला ऐसे निष्कर्षों पर आधारित है, जिन्हें स्पष्ट नहीं किया गया है।
टाटा संस में सिर्फ इन दो न्यासों की ही 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी है।
टाटा समूह की कंपनी टाटा टेलीसर्विसेज लिमिटेड ने अपनी याचिका में कहा है कि उसे न तो एनसीएलटी और न ही एनसीएलएटी के समक्ष हुई सुनवाई में पक्ष बनाया गया था। उसे मिस्त्री को उसके निदेशक पद से हटाये जाने के तर्कपूर्ण, वैधानिक फैसले का बचाव करने का मौका ही नहीं दिया गया। उसने कहा कि एनसीएलएटी का फैसला न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत का उल्लंघन है।
रतन टाटा ने जापान की कंपनी दोकोमो के साथ टाटा समूह के असफल संयुक्त कारोबार का उदाहरण देते हुए कहा कि इस मामले को मिस्त्री ने जिस तरह से संभाला, उससे टाटा समूह की प्रतिष्ठा पर आंच आयी।
उन्होंने कहा,
‘‘टाटा संस ब्रांड की पहचान वैधानिक जिम्मेदारियों से भागने की नहीं है। अपनी प्रतिबद्धताओं पर टिके रहना टाटा संस के सर्वश्रेष्ठ मूल्यों में से एक है और इसे लेकर टाटा संस को खुद पर गौरव होता है। दोकोमो के साथ विवाद के कारण टाटा संस की इस प्रतिष्ठा पर असर पड़ा है।’’
प्रतिष्ठित उद्यमी रतन टाटा ने एनसीएलएटी के फैसले को गलत बताते हुए कहा कि एनसीएलएटी ने फैसला सुनाते हुए टाटा संस को दो समूहों द्वारा संचालित कंपनी मान लिया है।
उन्होंने कहा,
‘‘मिस्त्री को टाटा संस का कार्यकारी चेयरमैन पूरी तरह से पेशेवर तरीके से चुना गया था, न कि टाटा संस में 18.4 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाली कंपनी शपूरजी पलोनजी समूह के प्रतिनिधि के तौर पर।’’
उन्होंने याचिका में कहा,
‘‘एनसीएलएटी ने गलत तरीके से यह मान लिया कि शपूरजी पलोनजी समूह का कोई व्यक्ति किसी वैधानिक अधिकार के तहत टाटा संस का निदेशक बन जाता है। यह गलत है और टाटा संस के संविधान के प्रतिकूल है। टाटा संस का संविधान शपूरजी पलोनजी समूह समेत सभी शेयरधारकों के लिये बाध्यकारी है।’’
रतन टाटा ने कहा कि एनसीएलएटी के फैसले में उनके और मिस्त्री के बीच 550 ईमेल का जिक्र किया गया है। उन्होंने कहा कि ये ईमेल मानद चेयरमैन और चेयरमैन साइरस मिस्त्री के बीच के हैं, न कि अदालत में आए व्यक्तियों के बीच ।’’
रतन टाटा ने याचिका में कहा है कि
‘‘यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और निराशाजनक है कि एनसीएलएटी ने बिना सबूत के उनके खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियां कीं जबकि उन्होंने टाटा संस और टाटा समूह की परिचालित कंपनियों को शीर्ष वैश्विक कंपनियों की श्रेणी में लाने के लिए अपनी आधी से अधिक उम्र लगा दी है।’’