इस भारतीय स्टार्टअप की बदौलत स्पेस में सैटलाइट भेजने की लागत हुई कम, भेजा जा सकता है अधिक सामान!
दशकों से, पूरे विश्व में सिर्फ़ सरकारी एजेंसियां ही अंतरिक्ष संबंधी शोध इत्यादि से जुड़ी रही हैं। नोडल एजेंसियां या सरकार द्वारा सहायता प्राप्त संस्थान जैसे कि नासा (एनएएसए), ईएसए और इसरो (आईएसआरओ) ही अंतरिक्ष के अध्ययन से जुड़े रहे हैं। पिछले कुछ सालों में, कुछ प्राइवेट कंपनियों जैसे कि एलॉन मस्क की स्पेस एक्स, जेफ़ बेज़ोस की ब्लू ओरिजिन ने भी इस क्षेत्र में प्रवेश किया है। इन विदेशी प्राइवेट कंपनियों के साथ-साथ अब भारतीय कंपनियां भी स्पेस टेक्नॉलजी के क्षेत्र में हाथ आज़माने उतर रही हैं। इस क्षेत्र में काम करने के दौरान अंतरिक्ष में किसी भी वस्तु को भेजने की लागत सबसे बड़ी चुनौती के रूप में उभरकर सामने आती है। बेंगलुरु के स्टार्टअप, बेलट्रिक्स एयरोस्पेस ने इस चुनौती का एक कारगर और किफ़ायती विकल्प खोज निकाला है।
इस लागत में एक बड़ा हिस्सा ईंधन और वज़न का होता है। सैटलाइट का वज़न, जितना कम होता है, लागत उतनी ही कम आती है। कम वज़न वाली सैटलाइट से अधिक सामग्री स्पेस में ले जाई जा सकती है। एक ऐरोनॉटिकल इंजीनियर रोहन एम गनपती इस क्षेत्र की संभावनाओं का आकलन करने के बाद, पहले से मौजूद फ़्यूल प्रॉपल्सन तकनीक का बेहतर विकल्प विकसित करना चाहते थे, लेकिन यह काम वह सिर्फ़ अपने दम पर नहीं कर सकते थे। कुछ वक़्त बाद ही, रोहन के पारिवारिक दोस्त यशष करनम और कॉलेज के दो जूनियर्स, सागर और विवेक भी रोहन की टीम का हिस्सा बने। सभी ने मिलकर, 2015 में बेलट्रिक्स एयरोस्पेस की शुरुआत की।
रोहन ने कोयंबटूर के हिन्दुस्तान कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नॉलजी से ऐरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। 2012 में, अपनी पढ़ाई के दूसरे वर्ष के दौरान, उन्होंने एमपीटी के विकास की दिशा में प्रयास शुरू कर दिए थे। इस वर्ष ही उन्हें, एक इवेंट के दौरान जिंदल ग्रुप के रिसर्च ऐंड डिवेपलपमेंट विभाग के प्रमुख से मिलने का मौक़ा मिला। कुछ वक़्त बाद उनकी मुलाक़ात, जेएसडब्ल्यू ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर सज्जन जिंदल से भी हुई और रोहन ने उन्हें अपने प्रोजेक्ट के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
सज्जन जिंदल को रोहन का आइडिया बेहद पसंद आया और वह रोहन को अनुदान देने के लिए तैयार हो गए। यही समय था, जब रोहन और उनके अन्य तीन सहयोगी साथ आए और कोयंबटूर में अपना ऑफ़िस शुरू किया। 2016 में, सोसायटी फ़ॉर इनोवेशन ऐंड डिवेलपमेंट की मदद से इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस (आईआईएससी) में काम करने के लिए बेलट्रिक्स को अनुमति मिलने के बाद, कंपनी को बेंगलुरु शिफ़्ट कर दिया गया। यहां पर बेलट्रिक्स की टीम को अपने प्रोजेक्ट के लिए ज़रूरी हर संसाधन मुहैया कराया गया। हाल में, पद्म विभूषण विजेता परमाणु वैज्ञानिक एम श्रीनिवासन, एयरोस्पेस और न्यूक्लियर इंजीनियर डॉ. उगुर गुवेन और ऐक्सिमेट्रिक इंक (यूएसए) के प्रेज़िडेन्ट डॉ. गुरु प्रसाद, बेलट्रिक्स के सलाहकार बोर्ड में शामिल हैं।
इसी तरह, बेलट्रिक्स की टीम की मुलाक़ात ईसरो के चेयरमैन एएस किरन कुमार के साथ हुई और टीम ने उन्हें अपने प्रोजेक्ट के बारे में बताया। इसरो के चेयरमैन ने उन्हें प्रेज़ेंटेशन के आमंत्रित किया। लंबे समय तक रीव्यू करने के बाद इसरो ने बेलट्रिक्स को सप्लायर के तौर पर चुना।
कंपनी का दावा है कि उन्होंने सैटलाइट्स के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक प्रॉपल्सन सिस्टम (भारत में विकसित) तैयार किया है, जिसे कंपनी ने माइक्रोवेव प्लाज़्मा थ्रस्टर्स (एमपीटी) नाम दिया है। एमपीटी की मदद से, उपभोक्ता अपेक्षाकृत कम लागत में अधिक सामग्री अंतरिक्ष में भेज सकते हैं। कंपनी के फ़ाउंडर्स का दावा है कि यह तकनीक पूरी तरह से ईको-फ़्रेडली है और हाल में इस्तेमाल हो रही इलेक्ट्रिक प्रॉपल्सन तकनीक का बेहतर विकल्प है।
कंपनी के चीफ़ ऑपरेटिंग ऑफ़िसर, यशष गर्व के साथ कहते हैं, " इसरो, इलेक्ट्रिक प्रॉपल्सन तकनीक को संयुक्त रूप से विकसित करने के लिए सिर्फ़ हमारे स्टार्टअप के साथ ही मिलकर काम कर रहा है।"
आपको बता दें कि मुख्य रूप से दो तरह के सैटलाइट प्रॉपल्सन सिस्टम्स होते हैं- एक प्राइमरी प्रॉपल्सन और सेकंड्री प्रॉपल्सन। प्रॉपल्सन सिस्टम की मदद से सैटलाइट की गति को बढ़ाया जाता है। प्रॉइमरी प्रॉपल्सन से रॉकेट को उठाया जाता है और सैटलाइट को ऑर्बिट (कक्षा) में प्रवेश कराया जाता है। सेकंड्री प्रॉपल्सन, केमिकल या इलेक्ट्रिक थ्रस्टर्स की मदद से तैयार किया है, जिसकी मदद से सैटलाइट अपनी कक्षा में स्थिति और ओरिएंटेशन को बनाकर रखता है।
सेकंड्री प्रॉपल्सन में इलेक्ट्रिक थ्रस्टर्स, केमिकल थ्रस्टर्स से अधिक प्रभावी होते हैं क्योंकि उनमें केमिकल थ्रस्टर्स की अपेक्षा ईंधन की खपत काफ़ी कम होती है। इस वजह से ईंधन का वज़न कम हो जाता है और अधिक सामग्री को स्पेस में भेजा जा सकता है।
बेलट्रिक्स द्वारा विकसित एमपीटी, आधुनिक क़िस्म का इलेक्ट्रिक प्रॉपल्सन सिस्टम है। हाल में मौजूद इलेक्ट्रिक प्रॉपल्सन तकनीकों से इतर, इसमें कोरोज़न नहीं होता। कोरोज़न की समस्या की वजह से सैटलाइट की आयु कम हो जाती है। एमपीटी की वैधता अन्य मौजूदा तकनीकों से तीन गुना तक अधिक होती है, जिस वजह से यह अधिक किफ़ायती विकल्प बन जाता है।
आईआईएससी स्थित ऑन्त्रप्रन्योरशिप सेंटर ऑफ़ एसआईडी के चेयरमैन, सीएस मुरली का कहना है, "हेल्थकेयर हो स्पेस, हर सेक्टर में सिर्फ़ भारतीय कंपनियां ही बेहतर भारत के विकास में हाथ बंटा सकती हैं। इतने प्रतियोगी समय में भारत अपनी ज़रूरतों के लिए विदेशी कंपनियों पर निर्भर नहीं रह सकता। ऐसे में, डीआरडीओ और इसरो पर छोटी कंपनियों को भी इस सेक्टर में हाथ आज़माने के लिए प्रेरित करने की जिम्मेदारी बनती है।" बेलट्रिक्स एयरोस्पेस के अलावा, पिछले कुछ सालों में कई और स्टार्टअप्स जैसे कि ध्रुव स्पेस, टीम इंडस, एस्ट्रोम, सैटश्योर और ऐस्ट्रोगेट आदि ने भी इस सेक्टर में कदम रखा है।
रोहन कहते हैं कि भारतीय ईकोसिस्टम को अभी परपक्व होने में 5 सालों का और वक़्त भी लग सकता है। विदेशी कंपनियों के होने के बावजूद, हमारे पास इसरो को अपना प्रॉपल्सन सिस्टम बेचने की अधिक संभावना है। सरकारी नीतियों की मदद से हमें यह सहूलियत मिलती है। सैटलाइट प्रॉपल्सन की तकनीक के साथ-साथ, कंपनी लॉन्च व्हीकल्स पर भी काम कर रही है, जो अभी अपने शुरुआती चरण में है। रोहन कहते हैं, "हमारा उद्देश्य है कि हम छोटे सैटलाइट लॉन्च व्हीकल्स और स्पेसक्राफ़्ट प्रॉपल्सन के क्षेत्रों में सबसे आगे निकल कर दिखाएं।"
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