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कभी थे एटीएम के सिक्योरिटी गार्ड, आज महिने में कमाते हैं साढ़े 3 लाख रुपये

एक चौकीदार के संघर्ष और सफलता की दिलचस्प कहानी

कभी थे एटीएम के सिक्योरिटी गार्ड, आज महिने में कमाते हैं साढ़े 3 लाख रुपये

Thursday December 19, 2019 , 5 min Read

कुमार गौरव, जो कि अपने भरपूर जोश और जज्बे के साथ जुलाई, 2005 में IAS के एग्जाम की तैयारी करने के लिए देश की राजधानी दिल्ली आए, उस समय उनके सामने इस अनजान शहर में कई सारी समस्याएं सामने आई लेकिन गौरव ने कभी भी हिम्मत नहीं हारी।

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फोटो क्रेडिट: सोशल मीडिया

गरीबी में बीता बचपन 

कुमार गौरव का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ। परिवार की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी। गौरव के पिताजी की चाय की दुकान थी जिससे उनके पिता अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। गौरव के परिवार में से कोई भी ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था।


गौरव के पिता को जब पता चला की गौरव IAS के एग्जाम की तैयारी कर रहें हैं तो उन्होंने गौरव को परिवार की स्थिति सुधारने और IAS के एग्जाम की अच्छे से तैयारी करने के लिए उन्हें दिल्ली भेजने की ठानी।


शुरुआती समस्याओं के बारे में गौरव बताते हैं कि अपने पिता की बात मानते हुए जुलाई, 2005 में वे IAS के एक्जाम की तैयारी करने के लिए गोरखपुर से दिल्ली आ गए और दिल्ली आने के बाद उनके सामने खाने-पीने और रहने जैसी कई समस्याएं आ खड़ी हुई। गौरव जो रुपये घर से लाये थे वे भी रोजमर्रा में खर्च हो रहे थे।


गौरव उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं,

"जब मुझे रहने के लिए घर नहीं मिल रहा था तब मैंने जैसे-तैसे सभी छोटी-बड़ी समस्याओं से लड़ते हुए खुद के रहने के लिए जगह की व्यवस्था की और एक नवनिर्मित मकान में रहने के लिए जगह मिल गई फिर वहीं रहकर मैंने अपनी IAS की तैयारी को जारी रखा।"

कुमार गौरव ने बताया कि दिल्ली में उनके रहने, खाने-पीने, कोचिंग और पढ़ाई का पूरा खर्चा उनके पिता दुकान पर चाय बेचकर उठाते थे।

ज़रूरत में परिवार की ढाल बन उठाई जिम्मेदारियां  

गौरव के दिल्ली में रहने के लगभग 2 साल बाद गोरखपुर में उनके परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने लगी। उनके पिता भी बीमार रहने लगे। जिस कारण उनके पिता अपने बेटे की पढाई की जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ होने लगे।


गौरव बताते हैं,

"पढ़ाई और रोज़मर्रा के खर्च के लिए हर महीने सही समय पर रुपये नहीं मिलते थे। जब मैंने घर की स्थिति के बारे में अपने घरवालों से पूछा तो उन्होंने पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा।"

इस तरह 6 महीने बीत जाने के बाद जब उनकी मां ने उन्हें बताया कि उनकी पढ़ाई के लिए अब घर की पूरी जमापूंजी खर्च हो गई है। अब उनके पिता का स्वास्थ्य भी सही नहीं रहता है और उन्हें दिल्ली से वापस घर लौट आने को कहा।

जब करनी पड़ी सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी

कुमार गौरव बताते हैं कि वे जानते थे कि जिस तरह से उनके IAS के एग्जाम की तैयारी दिल्ली में चल रही थी उस तरह से वे घर में पढ़ाई नहीं कर पाते। क्योंकि घर में और भी कई तरह की परेशानियां होती। जिससे वे अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते। तब उन्होंने अपने घर गोरखपुर न लौटने का निश्चय किया और यहीं दिल्ली में ही रहकर अपनी IAS की तैयारी और खुद के रोजमर्रा के खर्चे चलाने के लिए नौकरी करने के बारे में सोचा।


नौकरी के लिए उन्होंने फाइरवाल सिक्यूरिटी कंपनी में इंटरव्यू दिया और वहां उन्हें सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी मिली। उनकी ड्यूटी दिल्ली के जनकपुरी इलाके में एक बैंक के ATM में रात्रि के 10:00 बजे से प्रात: 6:00 बजे तक लगी। कुमार गौरव बताते हैं कि उन्होंने सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई को भी जारी रखा।

ये था जीवन का अहम फैसला

कुमार गौरव बताते हैं जब उन्होंने आईएएस का एक्जाम दिया तो उनका परिणाम ज्यादा अच्छा नहीं आया और इसका उन्हें बेहद दुख भी हुआ। तब उनके सामने केवल दो विकल्प थे, पहला- या तो वे 3,200/- रुपये महीने की आमदनी वाली सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते रहें जो आगे चलकर ज्यादा से ज्यादा 20,000/- रुपये महिने तक ही हो जाती, दूसरा कि वे कोई ऐसा काम करें जिससे उनकी आमदनी अच्छी हो सके और वे अपने घर की आर्थिक स्थिति को सुधारते हुए घर के प्रति अपनी जिम्मेदारी उठाएं।


गौरव बताते हैं,

“तब मैंने टीचर की नौकरी करनी शुरू की, क्योंकि यही एक ऐसा काम था जो वे बेहतर तरीके से कर सकते थे और यही उनकी ज़िंदगी का सबसे अहम फैसला था। “
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कोचिंग संस्थान के छात्रों के साथ कुमार गौरव

बदलाव का असर और सफर

कुमार गौरव बताते हैं कि उन्होंने कई कोचिंग संस्थानों में अपना रेज़्यूमे दिया और जल्द ही उन्हें एक कोचिंग संस्थान से सुबह के 8 बजे से शाम के 8 बजे तक की क्लासेज लेने का ऑफर मिला जिसके एवज में उन्हें बतौर सैलरी 20 हजार रुपये प्रतिमाह मिलती थी। इसके बाद उन्होंने दिल्ली में अन्य कोचिंग संस्थानों से भी बात की और उन कोचिंग संस्थानों में भी उन्हें 2000 रुपये प्रतिघंटे के हिसाब क्लासेज मिलने लगी।


उन दिनों को याद करते हुए कुमार गौरव बताते हैं,

“उन दिनों प्रतिदिन मैं करीब 15-18 घंटे की क्लासेज लेता था और अपनी ज़िंदगी को और बेहतर बनाने में लगा हुआ था।"


इन दिनों गौरव दिल्ली में Sure60 गुरूकुल नाम से अपना खुद का कोचिंग सेंटर चलाते हैं, जिसका हेड ऑफिस मुखर्जी नगर में और इसकी एक ब्रांच शाहदरा दिल्ली में भी है। आज अपने कोचिंग सेंटर के माध्यम से गौरव अनगिनत ज़रूरतमंद और काबिल बच्चों को सफलता की राह दिखा रहे हैं। अब तक 360 से अधिक बच्चों की ज़िंदगी में गौरव ज्ञान की रौशनी फैला चुके हैं।