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सीमा सिंह: पत्रकारिता छोड़ बनीं आंत्रप्रेन्योर, अपनी कंपनी 'रूट्स टेल' के माध्यम से पूरी दुनिया में पेश कर रही हैं हथकरघा और हस्तशिल्प का बेहतरीन उदाहरण

बेहद दिलचस्प है Roots Tale की निदेशक सीमा सिंह की कहानी

सीमा सिंह: पत्रकारिता छोड़ बनीं आंत्रप्रेन्योर, अपनी कंपनी 'रूट्स टेल' के माध्यम से पूरी दुनिया में पेश कर रही हैं हथकरघा और हस्तशिल्प का बेहतरीन उदाहरण

Wednesday December 18, 2019 , 6 min Read

"दिल्ली की रहने वाली महिला उद्यमी सीमा सिंह, जो कि आकाशवाणी के लिए वॉइस आर्टिस्ट रहीं और साथ ही न्यूज एंकर और पत्रकार भी रही हैं। सीमा ने तीन साल पहले यानि कि 17 दिसंबर 2016 को रूट्स टेल की नींव रखी। सीमा की कंपनी रूट्स टेल भारतीय बाजार में हथकरघा और हस्तशिल्प से  बनी साड़ियों और कलाकृतियों से अपनी अलग पहचान बनाने के साथ-साथ अमेरिका, लंदन और दुबई में भी अपनी कारीगरी का परचम लहरा रही है।"

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फोटो क्रेडिट: फेसबुक

सीमा सिंह का जन्म बिहार के समस्तीपुर में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। सीमा बताती हैं कि इनके पिताजी दिल्ली यूनिवर्सिटी में नौकरी करते थे। सीमा ने दिल्ली में रहते हुए ही अपनी पढ़ाई पूरी की। दिल्ली यूनिवर्सिटी से हिंदी विषय में एमए किया। अपने बचपन को याद करते हुए वह बताती हैं कि उन्हें गर्मियों की छुट्टियों में अपने पैतृक गांव समस्तीपुर जाकर अपने कल्चर को जानना, समझना, खेतों में जाना बेहद पसंद था। शायद यही वजह है कि देशी कलाकृतियां उनमें रची बसी है जिन्हें निखारकर वे आज Roots Tale के जरिए दुनिया के सामने पेश कर रही हैं।


सीमा कहती हैं,

“मैं किसान की बेटी हूँ, हमने सीखा है कि सपनों को देखा नहीं जाता उन्हें बोया जाता है। मेरे खून में मजदूरी करना ही लिखा था और शुरु से ही मैं मजदूरी करती रही हूँ। “

सीमा अपने कॉलेज के समय से ही ऑल इंडिया रेडियो से जुड़ गई थीं। वे रेडियो चैनल एफएम गोल्ड के लिए कार्यक्रम प्रेजेंटर रहीं। सीमा को न्यूज़ एंकर्स बड़े प्रभावित करते थे। जैसे-जैसे काम का विस्तार होता गया वैसे-वैसे ही उन्हें अवसर मिलते गए।


सीमा बताती हैं कि रेडियो के बाद उन्होंने जैन टीवी में बतौर वॉइस ओवर आर्टिस्ट शुरुआत की। सीमा ने इस चैनल में मात्र 3 महीने काम किया है और इस दौरान उन्होंने प्रोडक्शन का पूरा काम समझ लिया। 


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पति और बच्चों के साथ सीमा

आगे सीमा बताती हैं कि उन्होंने पत्रकारिता के लिए कोई फॉर्मल ट्रेनिंग नहीं ली थी। वे मासकॉम के किसी इंस्टीट्यूट नहीं गई थी। जो वे करती गईं उसी से सीखती रहीं। सीमा का कहना है कि जो हम इंस्टीट्यूट में पढ़ते हैं और जो हम कार्यक्षेत्र में करते हैं उसमें 70-30% रेशियो रहता है।


उनके अनुसार काम करके हम जो सीखते हैं वो 70% होता है और इंस्टीट्यूट जो सिखाते हैं वो केवल 30% होता है। वे व्यवहारिक ज्ञान के असर को ज्यादा मानती हैं।


लेकिन साल 1999 में मंदी के दौर में उन्हें जैन टीवी से अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। इसके बाद सीमा ने BAG Films & Media Ltd. के लिए बतौर रिपोर्टर काम किया। कुछ समय बाद सीमा ने सहारा समय के लिए पत्रकारिता करनी शुरु की और बाद में सहारा इंडिया परिवार के लिए बतौर प्रोड्यूसर/एंकर काम किया। इसके बाद सीमा ने कुछ NGO, डेवलपिंग सेंटर, महिलाओं और बच्चों के लिए डॉक्यूमेंट्रीज भी बनाईं। सीमा बताती हैं कि उनकी शादी होने के बाद वे अपने पति के साथ कुछ समय के लिए अमेरिका चली गईं।

कैसे पड़ी रूट्स टेल की नींव

सीमा बताती हैं कि वे कपड़ों की शौकीन थी साथ ही उन्हें कला से भी बेहद प्रेम था।

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Roots Tale स्टोर

अपने पत्रकारिता के दिनों में भी वे आर्ट एंड कल्चर की ही रिपोर्टिंग करती थी।

कपड़ों और कला के प्रति अपने प्रेम को निखारने और उसे अपना पेशा बनाते हुए उन्होंने हथकरघा और हस्तशिल्प के संगम से कारीगरों से कलाकृतियां बनवाना शुरु किया और इन कलाकृतियों से साड़ियां, दुपट्टे और टी-शर्ट पर बनाए।


उन्होंने पेंटिग्स भी बनवाईं। हस्तकला से बने ये कपड़े और पेंटिग्स ग्राहकों को काफी पसंद आने लगे। इस तरह सीमा ने मधुबनी और मिथिला कला को फैशन से जोड़ दिया।

शुरुआती मुश्किलें

सीमा सिंह बताती हैं कि Roots Tale शुरु करने के लिए उनके पास ज्यादा रकम नहीं थी। इसके लिए उनके पति ने उन्हें काफी सपोर्ट किया। बैंक से लोन लेने के लिए भी उन्होनें कोशिश की लेकिन अथक प्रयासों के बाद भी लोन नहीं मिला। आज Roots Tale का दिल्ली में एक स्टोर है जो उन्होंने अपने बलबूते पर ही बनाया है। इसके लिए उन्हें सरकार, संस्था या किसी बैंक से कोई मदद नहीं मिली। शुरुआत में स्टोर का किराया चुकाने को लेकर भी खासी परेशानियां हुईं।




कैसे रहा अब तक का सफर

सीमा कहती हैं कि उन्होंने 5 साड़ियों और 5 कारीगरों से Roots Tale की शुरुआत की थी। वहीं आज Roots Tale के साथ 60 कारीगर काम कर रहे हैं। इनका पहला रेवेन्यू 5 लाख रुपये था जो आज 28 लाख रुपये है। उनके स्टोर पर साड़ियां, दुपट्टे, हैंडीक्राफ्ट, जैकेट, स्टॉल, सूट, कुर्ता, ज्वैलरी, होम डेकोर जैसे प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं। साथ ही पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के लिए भी कपड़े और एक्सेसीरीज उपलब्ध हैं।   


वे कहती हैं,

“देशभर की सभी कलाकृतियों से कारीगरी करना उनकी कोशिश है। मधुबनी कला से कपड़े और पेंटिग्स करना उनका मुख्य काम है। आर्टफॉर्म का विस्तार करना उनका मकसद है।“

उनके द्वारा जूतियों पे बनाई गई मधुबनी की पेटिंग्स ग्राहकों को काफी पसंद आईं। वे बताती हैं कि वे जब भी दिल्ली हाट में प्रदर्शनी लगाती हैं तो लोग पेपर की कटिंग्स लेकर आते हैं और वैसी ही पेंटिग्स की जूतियों की मांग करते हैं।


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साड़ी पर कला उकेरती कारीगर

सीमा बताती हैं कि Roots Tale के लिए उन्हें अब एक्सपोर्ट (निर्यात) लाइसेंस भी मिल गया है। Roots Tale के प्रोडक्टस वे अमेरिका, लंदन और दुबई एक्सपोर्ट भी करती हैं। वहां के लोगों को भारतीय कलाकृतियों में बने कपड़े, पेंटिंग्स आदि बेहद पसंद आते हैं।

भविष्य की योजनाएं

सीमा बताती हैं कि अभी उनका मुख्य लक्ष्य Roots Tale के ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म (www.rootstale.com) को आगे बढ़ाना हैं। ताकि ग्राहक सीधे उनसे संपर्क कर सकें और खरीदारी कर सकें। जिससे उन्हें बाजार और अन्य ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स से कम दाम में उनके प्रोडक्ट्स मिल सकें। सीमा Roots Tale को अतंर्राष्ट्रीय बाजार में पहचान दिलाने के लिए ज्यादा से ज्यादा प्रोडक्टस एक्सपोर्ट करने की भी रणनीति बना रही हैं।

नए उद्यमियों के लिए सलाह

आज देशभर में नए उद्यमियों को बढ़ावा मिल रहा है। इसको लेकर सरकार द्वारा भी समय-समय पर कई योजनाएं चलाई जा रही है। ऐसे में नए उद्यमियों के लिए सीमा की सलाह है,


"एक ही जन्म मिला है, सिर्फ घर के रख-रखाव और बच्चों की देखभाल में जिंदगी खर्च हो जाए... ऐसा नहीं होना चाहिए। कर्म बेहद जरुरी है। काम करने से मानसिक विकास के साथ-साथ सोचने-समझने की शक्ति भी बढती है। हम अपने अधिकारों के लिए भी सजग रहते हैं। रणनीति बनाकर उस पर क्रियान्वन करने की आदत होनी चाहिए।"


सीमा आगे कहती हैं,

"जोखिम नहीं लेंगे तो काम नहीं होगा। अगर किसी मुहुर्त के इंतजार में रहेंगे तो काम कभी शुरु नहीं होगा। काम करने से ही काम शुरु होता है।"