तालिबानियों ने अब तक बस औरतों के सांस लेने पर प्रतिबंध नहीं लगाया है
अफगानिस्तान के भीतर रोज बद से बदतर होते जा रहे हैं औरतों के हालात.
अफगानिस्तान महिलाओं के लिए एक ऐसी मुल्क बनता जा रहा है, जिसकी बद्दुआ कोई दुश्मन को भी न दे. एक-एक कर हरेक जगह महिलाओं के लिए प्रतिबंधित होती जा रही है. पहले तालिबान ने सार्वजनिक जगहों, बाजार, शॉपिंग मॉल, जिम, स्विमिंग पूल आदि जगहों पर महिलाओं के जाने पर प्रतिबंध लगाया, फिर सार्वजनिक पार्कों को महिलाओं के लिए प्रतिबंधित किया गया.
अब तालिबान ने एक नया फरमान सुनाते हुए महिलाओं के यूनिवर्सिटी जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है. तालिबान के हायर एजुकेशन मिनिस्टर नेदा मोहम्मद नदीम ने सभी सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों को एक नोटिस जारी किया है. इस नोटिस में कहा गया है कि अब यूनिवर्सिटी को महिलाओं के लिए पूरी तरह प्रतिबंधित किया जा रहा है. नोटिस में कहा गया है कि अगली सूचना जारी किए जाने तक यह नियम लागू रहेगा.
तालिबान के इस फैसले की पूरी दुनिया में निंदा हो रही है. संयुक्त राष्ट्र (UN) ने इस पर गंभीर चिंता प्रकट की है. यूनाइटेड नेशंस के सेक्रेटरी जनरल एंटोनियो गुटेरेश ने कहा कि अफगानिस्तान की महिलाओं और लड़कियों के बुनियादी मानवाधिकारों का हनन है. इसके अलावा अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एंटनी ब्लिंकन ने कहा है कि तालिबान को इंटरनेशनल कम्युनिटी का हिस्सा नहीं माना जा सकता.
तालिबान के इस फैसले से अफगानिस्तान की महिलाओं में बहुत गुस्सा और आक्रोश है.
यह पहली बार नहीं है कि तालिबान ने महिलाओं को लेकर इस तरह का कड़ा और अमानवीय रुख अपनाया है. पिछले साल अगस्त में अमेरिकी सेना की वापसी और तालिबान के हाथों में सत्ता आने के बाद से ही महिलाओं के प्रति अत्याचारों का सिलसिला शुरू हो गया था. अफगानिस्तान पर कब्जा करने के तुरंत बाद ही तालिबान ने एक सरकारी बयान जारी करते हुए कहा था कि अब लड़के और लड़कियां एक साथ नहीं पढ़ सकेंगे.
लड़कियों के लिए सिर्फ महिला या बुजुर्ग शिक्षक ही होंगे. कक्षा में लड़के-लड़कियों के साथ बैठने, स्कूल में साथ घूमने, बात करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया. इतना ही नहीं, तालिबान ने लड़कियों की सेकेंडरी एजूकेशन पर भी बैन लगा दिया गया था.
हाल ही में अफगानिस्तान के विभिन्न राज्यों में लड़कियों ने यूनिवर्सिटी की प्रवेश परीक्षा दी थी. हालांकि नए नियम के मुताबिक उनके इंजीनियरिंग, इकोनॉमिक्स, साइंस और एग्रीकल्चर जैसे विषय पढ़ने पर पाबंदी थी. इसलिए लड़कियों ने दूसरे विषयों की परीक्षा दी थी.
अब वह परीक्षा भी बेकार हो गई क्योंकि नए फरमान के मुताबिक अब तो यूनिवर्सिटी की पढ़ाई पर ही प्रतिबंध है.
शिक्षा ही वह रास्ता है, जिसके लिए एक आम अफगानी लड़की तालिबान की थोपी हुई अपनी दुखद नियति को बदल सकती है. लेकिन तालिबान अब वो रास्ता भी बंद कर देना चाहता है.
तालिबान के हाथ पहले ही अपने देश की हजारों महिलाओं के खून से रंगे हुए हैं. जाने कितनी औरतों को उन्होंने कॉलेज जाने, बिना बुर्का पहने यूनिवर्सिटी जाने, नौकरी करने, पराए पुरुष से बात करने के लिए गोली से उड़ा दिया या कोड़ों की सजा दी.
यह घटना है नवंबर, 2020 की. अफगानिस्तान के गजनी प्रांत में एक 33 साल की महिला को तालिबानियों से सिर्फ इसलिए गोली मार दी क्योंकि वो पुलिस की नौकरी करती थी. खतेरा नाम ही उस महिला की पुलिस के क्राइम ब्रांच में अभी नौकरी लगी ही थी. पहले तो तालिबों ने उसे आगाह किया कि वो नौकरी छोड़की शरीफ औरतों की तरह घर बैठे. जब वो नहीं मानी तो उसे पहले गोली मारी, फिर चाकू से उसकी दोनों आंखें निकाल लीं. खतेरा की जान तो बच गई, लेकिन उसकी आंखों की रौशनी हमेशा के लिए चली गई.
ऐसे ही 38 साल की एक पुलिस ऑफीसर मलालाई काकर को तालिबानियों ने 28 सितंबर, 2008 की सुबह उनके घर के सामने गोली मार दी. मलालाई कांधार पुलिस के क्राइम अगेन्स्ट वुमेन विभाग की हेड थीं.
यह उन औरतों की कहानी है, जो पढ़-लिखकर नौकरी कर रही थीं. तालिबों के राज में घरेलू अनपढ़ औरतों को आए दिन 40 कोड़ों, 50 कोड़ों, 100 कोड़ों की सजा सुनाना तो बहुत मामूली बात है.
ये दो महीने पहले की बात है. अफगानिस्तान की बदख्शां यूनिवर्सिटी के बाहर बुर्का के विरोध में प्रदर्शन कर रही यूनिवर्सिटी की छात्राओं पर तालिबान के अफसरों ने कोड़े बरसाए. यह विरोध तब शुरू हुआ, तब अपना मुंह ठीक से न ढंकने के लिए यूनिवर्सिटी ने महिलाओं को घुसने से रोक दिया.
पूरी दुनिया इस वक्त अफगानिस्तान की औरतों के हालात सिर्फ तमाशबीन बनी देख रही है. बयान जारी किए जा रहे हैं. यूनाइटेड नेशंस, यूएन विमेन से लेकर एमनेस्टी इंटरनेशनल तक सब तालिबान की निंदा कर रहे हैं, महिलाओं के प्रति संवेदना और फिक्र जाहिर कर रहे हैं, अफगानिस्तान को इंटरनेशनल कम्युनिटी का हिस्सा मानने से इनकार कर रहे हैं, तालिबों को आतंकवादी का दर्जा दे रहे हैं, लेकिन ये सब करने से सच नहीं बदल रहा.
अफगानिस्तान के भीतर औरतों की जिंदगी रोज बद से बदतर होती जा रही है.