प्लास्टिक की बोतलों से झाड़ू बनाकर पर्यावरण की रक्षा कर रहे ये बाप-बेटे
मणिपुर सरकार ने बीते साल 2019 में राज्य में प्लास्टिक की थैलियों पर पाबंदी लगाने की घोषणा की थी। प्लास्टिक से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को देखते हुए यह फैसला लिया गया था। लेकिन प्लास्टिक बैन के साथ एक दिक्कत ये भी है कि पुराने प्लास्टिक को रिसाइकिल करना बेहद जरूरी हो जाता है। मणिपुर की राजधानी इंफाल से सटे इलाके चिंगखू अवांग के रहने वाले 58 वर्षीय उषम कृष्णा सिंह ने प्लास्टिक की बोतलों को रिसाइकिल करने का एक नया और अनोखा तरीका खोज निकाला है।
उषम प्लास्टिक की बेकार बोतलों से झाड़ू बनाने के काम में लगे हुए हैं। उन्होंने अपने बेटे के साथ मिलकर यह काम शुरू किया था। इसके लिए उन्होंने सिर्फ 20,000 रुपये का निवेश किया था और अब तक वे 500 से ज्यादा झाड़ू बना चुके हैं। एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया, 'मणिपुर में लोकतक झील यहां की जीवनदायिनी झील मानी जाती है। जिसमें अब सारा कचरा फेंका जाता है। इस कचरे से जलीय जीवों और वनस्पति को काफी नुकसान पहुंचता है। जिसका सीधा असर झील के पारिस्थिकी तंत्र पर पड़ता है।'
झील को बचाने के लिए ही ऊषम के दिमाग में प्लास्टिक की बोतलों से झाड़ू बनाने का आइडिया आया। वैसे उषम जल आपूर्ति विभाग में पंप ऑपरेटर के तौर पर काम करते हैं। यह विभाग सरकार के जन स्वास्थ्य डिपार्टमेंट के अंतर्गत आता है। उनका बेटा दुकान पर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मत करताथा। जिसकी मदद लेकर उषम ने खराब और बेकार पड़ी बोतलों का इस्तेमाल करने का आइडिया खोजा।
उषम बताते हैं कि एक झाड़ू बनाने में लगभग 30 खाली बोतलों की जरूरत होती है। वे एक लीटर की प्लास्टिक की बोतलों को पहले पतले आकार में काट लेते हैं औऱ फिर मोबाइल रिपेयरिंग में काम आने वाली हॉट एयर गन की मदद से बोतलों में बांस फिट कर देते हैं। इस तरह से झाड़ू तैयार हो जाती है। एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक शुरुआत में वे एक दिन में सिर्फ दो झाड़ू ही बना पाते थे, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मोटर की मदद से वे अब हर रोज 20 से 30 झाड़ू तैयार कर लेते हैं।
प्लास्टिक को रिसाइकिल करके पर्यावरण की रक्षा करने वाले उषम इस काम के साथ-साथ गांव वालों को रोजगार भी मुहैया करा रहे हैं। उन्होंने स्वयं सहायता समूहों की स्थापना की है जिसका नाम 'उषम बिहारी ऐंड मैपक प्लास्टिक रिसाइकिल इंडस्ट्री' रखा। उनके साथ गांव के दस और लोग काम करते हैं। इस काम से उन्हें अच्छी आय हो जाती है। उषम बताते हैं, 'हालांकि रोजगार की स्थापना करना या पैसे कमाना मेरा मकसद नहीं था। मैं प्लास्टिक की बर्बादी रोकना चाहता था, लेकिन अब जब इससे गांव वालों को आय भी हो रही है तो इसलिए मुझे काफी खुशी हो रही है।' अब वे इन प्लास्टिक की मदद से कप और अन्य सामान बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
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