मलेरिया को फैलने से रोकेगी ये तकनीक
Malaria बुखार मच्छरों से होने वाला एक तरह का संक्रामक रोग है. मलेरिया के दौरान बुखार, पसीना आना, शरीर में दर्द और उल्टी जैसी परेशानियां होने लगती है. यह बीमारी फीमेल Anopheles मच्छर के काटने से होती है. फीमेल मच्छर में एक खास प्रकार का जीवाणु पाया जाता है जिसे साइंस की भाषा में प्लाज्मोडियम कहते हैं. इस मच्छर के काटते ही व्यक्ति के शरीर में प्लाज्मोडियम नामक जीवाणु प्रवेश कर जाता है. यह जीवाणु लिवर और रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करके व्यक्ति को बीमार बना देता है. समय पर इलाज न मिलने पर यह बीमारी जानलेवा भी हो सकती है.
बढ़ती बिमारियों के साथ हमारे वैज्ञानिक इन बिमारियों को हराने की दिशा में निरंतर कार्य कर रहे हैं. वैज्ञानिक मच्छरों को जेनिटिकली विकशित बनाने की दिशा में लम्बे समय से काम कर रहे थे. इस दिशा में आखिरकार वैज्ञानिकों को सफलता मिलती नज़र आ रही है. वैज्ञानिक अब मच्छरों को जेनिटिकली विकसित बनाकर उसके अन्दर मलेरिया पैदा करने वाले परजीवियों(parasite) के विकास को धीमा कर सकेंगे. जिससे मलेरिया को फैलने से रुकने में मदद मिलेगी.
वैज्ञानिकों का कहना है, दुनियाभर में 3500 से ज्यादा मच्छरों की प्रजातियां हैं, लेकिन इनमें से कुछ ही मलेरिया फैलाती हैं
वैज्ञानिक मादा मच्छरों के जीन में बदलाव कर रहे हैं, जिससे मछर की प्रजनन करने की क्षमता ख़त्म हो जाए. इसके लिए वैज्ञानिकों में मच्छरों की एनाफिलीज गैम्बी प्रजाति को चुना है. यही प्रजाति सब-सहारा अफ्रीका में मलेरिया फैलाने के लिए जिम्मेदार है.
लन्दन के इम्पीरियल कॉलेज(Imperial College) की ट्रांस्मिसन जीरो टीम ने एक ऐसी तकनीक तैयार की है, जिसे जीन तकनीक के साथ इस्तेमाल कर मलेरिया को फैलने से रोका जा सकता है.
Bill and Melinda Gates Foundation के इंस्टीट्यूट फॉर डिजीज मॉडलिंग के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा मॉडल विकसित किया है, जो विभिन्न अफ्रीकी सेटिंग्स में उपयोग किए जाने पर ऐसी तकनीक के प्रभाव का आकलन कर सकता है.
फीमेल मच्छर जब किसी मलेरिया संक्रमित व्यक्ति को काट लेता है, तब मच्छर के पेट में मलेरिया के परजीवियों की दूसरी श्रेणी की उत्पत्ति होती है और मच्छर अपने संक्रमित सलाइवा के माध्यम से औरों को काटकर मलेरिया से संक्रमित करता है.
वैज्ञानिकों का कहना है की मच्छरों को जेनिटिकली विकसित करने पर उनके पेट में एक कंपाउंड पैदा होगा जो मलेरिया को फ़ैलाने वाले परजीवियों का खात्मा करदेगा और इस तरह मलेरिया को फ़ैलने से रोका जा सकता है.
हालांकि, केवल 10 प्रतिशत मच्छर ही इतने लंबे समय तक जीवित रहते हैं, कि उनमे परजीवी संक्रामक पर्याप्त रूप से विकसित हो सके. वैज्ञानिकों की टीम परजीवीयों को पेट में विकसित होने में लगने वाले समय की सीमा को भी बढाने की दिशा में काम कर रही है.