पुणे की महिलाओं के लिए वरदान बने उल्का सादलकर के ये अनोखे सुविधा घर
"उल्का सादलकर ने महिलाओं की असुविधाओं से परेशान होकर उनकी बेहतरी के लिए पुणे (महाराष्ट्र) में एक दर्जन से अधिक बसों में 'ती स्वास्थ्य गृह' नाम से एक अनूठी पहल की है। रोजाना सुबह से ही इन बसों के पास महिलाओं का तांता लगा रहता है। सादलकर बेंगलुरू, इंदौर, मुंबई, चेन्नई में भी ये व्यवस्थाएं बनाने जा रही हैं।"
अपने एक अनूठे प्रयोग से पुणे (महाराष्ट्र) की उल्का सादलकर हमारे देश की महिलाओं के लिए बड़ी इंस्पिरेशन बन चुकी हैं। वह हर वक़्त महिला सशक्तिकरण पर ही माथा-पच्ची कर अपनी हर अनूठी पहल से आधी आबादी की जिंदगी संवारने के प्रयास करती रहती हैं। उनकी कंपनी 'साराप्लास्ट' ने हाल ही में एक ऐसा काम किया है, जिससे पूरे महाराष्ट्र की महिलाएं भौचक्की रह गई हैं। उन्होंने एक करोड़ रुपए खर्च कर महिलाओं के लिए 'ती स्वास्थ्य' गृह नाम से एक दर्जन से अधिक बसों में ऐसे सुविधा घर बनवाएं हैं, जिनमें वॉशरूम से लेकर बच्चों के डायपर बदलने, उन्हें दूध पिलाने तक की व्यवस्थाएं हैं। उन बसों में सहयोग के लिए महिला कर्मचारी और टेक्नीशियंस भी नियुक्त हैं। इन सुविधाओं के बदले हर आम महिला से पांच रुपए फीस ली जाती है।
इस समय पुणे में रोजाना लगभग दो-तीन सौ महिलाएं इस सुविधा घर (ती स्वास्थ्य) का इस्तेमाल करती हैं। मराठी में महिला को 'ती' कहते हैं। 'ती स्वास्थ्य' का मतलब है- महिलाओं का स्वास्थ्य गृह। सादलकर बताती हैं कि पुणे में तो अभी सौ स्थानों पर ऐसी बसें उपलब्ध कराने की योजना है। निकट भविष्य में उनकी कंपनी 'साराप्लास्ट' राजीव खैर की साझेदारी से बेंगलुरू, इंदौर, मुंबई, चेन्नई आदि के नगर निगमों से मिलकर वहां की भी आम महिलाओं के यह सुविधा मुहैया कराने जा रही है।
सेनिटेशन उद्योग से जुड़ीं सादलकर बताती हैं कि नगर निगम से कबाड़ बसें उपलब्ध कराए जाने के बाद हर बस पर नौ-दस लाख रुपए खर्च कर सुविधाघर बना दिया जाता है, जिसमें वॉशबेसिन, वेस्टर्न और इंडियन टॉयलेट, डायपर बदलने और शिशुओं को दूध पिलाने की अलग-अलग जगहें, सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीन, सेंसर वाले नल, आईना, स्वच्छता की जानकारी देने वाली एलईडी स्क्रीन, कैफे, ऑर्गेनिक फूड बिक्री, सोलर पैनल से उपकरण चलाने आदि की व्यवस्थाएं हैं।
महिलाओं की घर से बाहर टॉयलेट जाने की समस्या दूर करने के लिए उन्होंने पूरे देश में पहली बार पुणे में ऐसी अनोखी पहल की है। आज के माहौल में किसी भी महिलाओं को कदम-कदम पर असामान्य स्थितियों से गुजरना पड़ता है। खासकर दूर-दराज के और पिछड़े इलाकों में तो महिलाओं के लिए टॉयलेट की सुलभता और भी कठिन है। गांव-देहात और छोटे कस्बों में साफ-सुथरे पब्लिक टॉयलेट खोजना तो नामुमकिन सा होता है। ऐसे इलाकों में पीरियड्स के दिनो में तो महिलाओं को ऐसी सुविधा न होने से नर्क जैसी यातना से गुजरना होता है।
सादलकर बताती हैं कि महिलाओं की इन्ही सब परेशानियों ने उनको इस अनोखे आंत्रप्रन्योर के लिए विवश किया। फिर उन्होंने राजीव खेर के साथ मिलकर महिलाओं के लिए टॉयलेट्स की उपलब्धता का यह बस वाला आइडिया निकाला। पुरानी बसें वैसे भी स्क्रैप में बेच दी जाती हैं। वह तो उनको बस इंटेलिजेंटली यूज लायक बनवा लेती हैं। दरअसल, यह काम शुरू करने से पहले सादलकर और खेर ने कभी पढ़ा था कि पुरानी बसों को रेस्टरूम बनाकर बेसहारा लोगों की मदद की जाती है। फिर क्या था, वे उसी तरह बसों को रेप्लिकेट कराने में जुट गए।
सादलकर की कोशिशें आज स्वच्छ भारत अभियान का भी अहम हिस्सा बन चुकी हैं। अब तक उल्का ऐसे एक दर्जन से अधिक 'हेल्थ सेंटर' की व्यवस्थाएं बना चुकी हैं। इस इंतजाम का सबसे ज्यादा गरीब तबके की महिलाएं फायदा उठा रही हैं। उनके हर स्वास्थ्य केंद्र पर दिन भर महिलाओं का तांता लगा रहता है। वहां सफाई के बारे में जागरूक करने के लिए वीडियो भी चलते रहते हैं।