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दिल्‍ली के उपहार सिनेमा हॉल में 1997 की उस शाम क्‍या हुआ था?

उपहार सिनेमा ट्रेजेडी के शिकार लोगों ने दिल्‍ली के सबसे ताकतवर बिल्‍डर के खिलाफ 25 साल लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी.

दिल्‍ली के उपहार सिनेमा हॉल में 1997 की उस शाम क्‍या हुआ था?

Tuesday January 17, 2023 , 5 min Read

13 जून, 1997 की वो दोपहर किसी आम दोपहर की तरह ही थी. एक नई हिंदी फिल्‍म बॉर्डर उसी दिन रिलीज हुई थी. दिल्‍ली के ग्रीन पार्क इलाके में‍ स्थित उपहार सिनेमा हॉल उन दिनों शहर का सबसे पॉपुलर सिनेमा हॉल हुआ करता था. रिलीज वाले दिन ही फिल्‍म हाउसफुल थी. शो शुरू होने से पहले ही सारी टिकटें बिक चुकी थीं.

साढ़े तीन बजे का शो शुरू हुआ. फिल्‍म चलते हुए तकरीबन दो घंटे हुए थे कि हॉल के बेसमेंट में लगे एक ट्रांसफार्मर में जोर का धमाका हुआ और आग लग गई. आग देखते ही देखते पूरे बेसमेंट में और फिर ऊपर के फ्लोर्स पर भी फैलने लगी. उस वक्‍त हॉल में तकरीबन 900 लोग बैठे फिल्‍म देख रहे थे. आग लगने के बाद हॉल में अफरातफरी मच गई. सब जान बचाकर भागने की कोशिश करने लगे. उस भगदड़ में 100 से ज्‍यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो गए.

सबसे दर्दनाक दृश्‍य रहा ऊपर बालकनी वाले हिस्‍से का, जिसे हॉल के प्रबंधकों ने बंद करके बाहर से ताला लगा दिया था. बालकनी में बैठे लोग भाग नहीं पाए और आग के धुंए में घुटने के कारण उनकी मौत हो गई.

उस दिन हॉल में फिल्‍म देखने आए लोगों में बच्‍चे, बूढ़े, औरतें, जवान लड़के-लड़कियां सभी शामिल थे. कोई अपना बर्थडे मनाने आया था तो कोई यूं ही सिनेमा का आनंद लेने. 22 साल के सुदीप का उस दिन जन्‍मदिन था. वही दिन उसकी डेथ एनीवर्सरी भी बन गया.

यह ट्रेजेडी ऐसी अनगिनत कहानियों की गवाह है, जिस कहानी का किरदार कोई नहीं बनना चाहेगा. बाद में उपहार अग्निकांड में मरे लोगों के परिजनों ने मिलकर एक एसोसिएशन बनाई, जिसका नाम था द एसोसिएशन ऑफ विक्टिम्‍स ऑफ उपहार फायर ट्रेजेडी (The Association of Victims of Uphaar Fire Tragedy). इस एसोसिएशन ने उपहार सिनेमा के मालिक अंसल ब्रदर्स के खिलाफ कोर्ट में 25 साल लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी.

आइए देखते हैं उस घटना और फिर कोर्ट की पूरी टाइमलाइन.  

13 जून 1997: साउथ दिल्‍ली के पॉश ग्रीन पार्क इलाके में स्थित उपहार सिनेमा हॉल में हिंदी फिल्म बॉर्डर की स्क्रीनिंग चल रही थी. 3 बजे का शो था. इस शो के बीच तकरीबन पांच बजे सिनेमा हॉल के बेसमेंट में लगे ट्रांसफार्मर में आग लग गई और यह आग देखते ही देखते पूरे सिनेमा हॉल में फैल गई. इस आग में दम घुटने से 59 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज्‍यादा लोग हॉल में मची भगदड़, आग और धुंए के कारण गंभीर रूप से घायल हो गए.

22 जुलाई: पुलिस ने उपहार सिनेमा हॉल के मालिक दिल्‍ली के ताकतवर और नामी बिल्‍डर सुशील अंसल और उनके बेटे प्रणव अंसल की गिरफ्तारी का वॉरंट जारी किया. वो दोनों उस वक्‍त मुंबई में थे. 22 जुलाई की शाम मुंबई में उन्‍हें दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा द्वारा हिरासत में ले लिया गया.

24 जुलाई: उपहार अग्निकांड केस दिल्ली पुलिस से सीबीआई को ट्रांसफर हो गया.

15 नवंबर: सीबीआई ने इस अग्निकांड के लिए दोषी 16 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की. इस चार्जशीट में सुशील और गोपाल अंसल का नाम शामिल था.

10 मार्च 1999: सत्र न्‍यायालय में मुकदमे की कार्रवाई शुरू हुई.  

27 फरवरी, 2001: अभियुक्‍तों पर आईपीसी की धारा 304 ए (लापरवाही के कारण मौत), 304 (गैर इरादतन हत्या) और 337 लगाई गई और इनके तहत आरोप तय हुए.  

23 मई: अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों की रिकॉर्डिंग शुरू हुई.

4 अप्रैल, 2002: दिल्ली हाई कोर्ट ने निचली अदालत से दिसंबर तक इस मामले की सुनवाई को समाप्त करने के लिए कहा.

2003: दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में पीड़ितों के परिजनों को मुआवजे के रूप में 18 करोड़ रुपए दिए जाने का आदेश दिया.  

सितंबर 2004: कोर्ट में आरोपी के बयानों को दर्ज किए जाने की शुरुआत हुई.

नवंबर 2005: बचाव पक्ष के गवाहों के बयानों की रिकॉर्डिंग शुरू हुई.

 

अगस्त 2007: सीबीआई की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे अदालत में पेश हुए और फैसले को सुरक्षित रखा गया.  

20 नवंबर 2007 : न्‍यायालय ने इस मामले में सभी 12 आरोपियों को दोषी करार दिया. सुशील और गोपाल अंसल, दोनों को दो साल जेल की सजा सुनाई गई.

4 जनवरी 2008: दिल्ली हाई कोर्ट ने अंसल बंधुओं और दो अन्य आरोपियों को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया.

सितंबर 2008: सुप्रीम कोर्ट ने तिहाड़ जेल भेजे गए अंसल बंधुओं की जेल की सजा रद्द कर दी.  

 

दिसंबर 2008: दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें अंसल बंधुओं को दोषी ठहराया गया था. लेकिन इसके साथ ही हाईकोर्ट ने ने अंसल बंधुओं की सजा दो साल से घटाकर एक साल कर दी.

2009: अंसल बंधुओं की सजा बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई.

2013: सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर आदेश को सुरक्षित रखा.

2014: सजा को लेकर जजों के बीच मतभेद था. इसलिए यह मामला फिर तीन जजों की बेंच को भेजा गया.

2015: सजा पर सुनवाई शुरू हुई. सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं पर 30-30 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया.  

फरवरी 2017: सुप्रीम कोर्ट ने गोपाल अंसल को एक साल जेल की सजा सुनाई.  


Edited by Manisha Pandey