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हरिजन: एक अखबार जिसने जात-पांत में बंटे देश को जोड़ने का काम किया

1933 में आज ही के दिन महात्‍मा गांधी के संपादन में हरिजन समाचार पत्र का संपादन शुरू किया था.

हरिजन: एक अखबार जिसने जात-पांत में बंटे देश को जोड़ने का काम किया

Saturday February 11, 2023 , 5 min Read

महात्‍मा गांधी के व्‍यक्तित्‍व के बहुत सारे आयामों से हम वाकिफ हैं. 19 साल की उम्र में गुजरात से हजारों मील दूर इंग्‍लैंड कानून की पढ़ाई करने वाला एक नौजवान. दक्षिण अफ्रीका में स्‍थानीय भारतीयों के अधिकार और समानता की लड़ाई लड़ने वाले एम. के. गांधी. फिर वतन वापसी के बाद भारत की आजादी की लड़ाई का नेतृत्‍व करने वाले महात्‍मा गांधी.

लेखक गांधी, आंदोलनकारी गांधी, संन्‍यासी गांधी, संत गांधी, महात्‍मा गांधी. इन सारी पहचानों के बीच उनकी एक और पहचान का जिक्र कम ही होता है और वह है पत्रकार और संपादक गांधी.  

19 साल की उम्र में जब वे इंग्‍लैंड पढ़ने गए तो वहां शाकाहार की वकालत करने वाला एक साप्‍ताहिक मुखपत्र प्रकाशित होता था. नाम था- “द वेजीटेरियन.” 21 साल के नौजवान गांधी ने इस अखबार के लिए कुछ लेख लिखे. वो लेख शाकाहार के बारे में थे.   

इंग्‍लैंड प्रवास के दौरान किया गया लेखन का यह एकमात्र काम था. इसके अलावा वो सिर्फ कभी-कभार अपने परिवारजनों और मित्रों को पत्र लिखते थे.

उनके वास्‍तविक लेखन और पत्रकारीय काम की शुरुआत दक्षिण अफ्रीका जाने के बाद ही शुरू हुई.

1904 में उन्‍होंने दक्षिण अफ्रीका में एक अखबार का संपादन शुरू किया. नाम था- “इंडियन ओपिनियन.” यूं तो मनसुखलाल इसके पहले संपादक थे, लेकिन इस अखबार को अपनी असली आवाज और कलेवर महात्‍मा गांधी के नेतृत्‍व में मिला.

19वीं सदी में दक्षिण अफ्रीका और हिंदुस्‍तान दोनों ही अंग्रेजों के अधीन था. अंग्रेज बड़ी संख्‍या में भारतीयों को कामगार और मजदूर बनाकर अफ्रीका ले गए. अंग्रेजों के शोषण, उनकी विभाजनकारी और भेदभावपूर्ण नीतियों के बीच भारतीयों का जीवन मुश्किल था और गांधी के नेतृत्‍व में वही भारतीय अब अपने अधिकारों के लिए मुखर हो रहे थे.

इतिहास गवाह है कि सत्‍ता के दमन के खिलाफ विरोध का सुर सबसे पहले कागज के पन्‍नों पर उतारा गया है. लेनिन, माओ, मार्क्‍स, फिदेल, मार्टिन लूथर किंग और महात्‍मा गांधी, सभी ने सबसे पहले दमन के खिलाफ अपनी आवाज उठाने, बदलाव के विचार को जन-जन तक पहुंचाने के लिए अखबार निकाला. 

दक्षिण अफ्रीका में “इंडियन ओपिनियन.” ने यही काम किया. अंग्रेजी सत्‍ता के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करने का काम. सत्‍ता की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध लोगों को जागरूक करने का काम.

गांधी के पत्रकारीय लेखन की खासियत यह थी कि उसमें कोई भाषायी कौशल नहीं होता था. वह बहुत सरल-सीधे शब्‍दों में दो-टूक बात कहते और इस तरह कहते कि सीधे पढ़ने वाले के दिल में लगती थी. यही वजह थी कि गांधी के संपादन में इंडियन ओपिनियन दक्षिण अफ्रीका की इंडियन कम्‍युनिटी के बीच काफी पॉपुलर हो गया था.

गांधी ने इस अखबार के साथ एक और प्रयोग किया था. पहले के संपादक अखबार का आर्थिक खर्च विज्ञापनों के भरोसे उठाते थे. गांधी ने अखबार को मिलने वाले सारे विज्ञापन बंद कर दिए. उन्‍हें लगता था कि विज्ञापन अखबार की जगह खा रहे हैं और इस जगह का इस्‍तेमाल लोगों तक सूचनाएं और विचार फैलाने के लिए होना चाहिए.

विज्ञापन से होने वाली आय बंद हुई तो अखबार का सारी आर्थिक खर्च गांधी के सिर आ गया. उन्‍होंने अपनी आय का एक बड़ा हिस्‍सा (तकरीबन 26000 रुपए) अखबार में लगा दिए. यह उस जमाने में बहुत बड़ी रकम थी. लेकिन इसका नतीजा ये हुआ कि जो अखबार पहले बमुश्किल 300 कॉपी भी नहीं बिक पाता, अब उसकी बिक्री बढ़कर 20 हजार हो गई. अखबार की बिक्री बढ़ने से आय भी बढ़ गई.

गांधी को समझ में आ गया था कि अखबार जनता तक  अपने विचार फैलाने का सबसे बड़ा माध्‍यम है. हिंदुस्‍तान लौटने के बाद भी उन्‍होंने यह काम जारी रखा और भारत में यंग इंडिया और हरिजन नाम से दो अखबारों का संपादन शुरू किया.     

यंग इंडिया से हरिजन तक का सफर

लाला लाजपत राय ने 1916 में ‘यंग इंडिया’ नाम से एक अखबार का प्रकाशन शुरू किया था. 1919 में गांधी ने इसके संपादन की जिम्‍मेदारी संभाली. यंग इंडिया एक तरह से आजादी के दौर में प्रकाशित सबसे पॉपुलर अखबार था, जिसकी प्रतियां घर-घर जाती थीं. यह अखबार देश के अवाम को अंग्रेजी सत्‍ता के खिलाफ आजादी और स्‍वराज्‍य की मांग के लिए तैयार कर रहा था.

1933 में जब महात्‍मा गांधी जेल में थे तो वहीं से उन्‍होंने हरिजन अखबार के प्रकाशन की शुरुआत की. शुरू-शुरू में यह एक राजनीतिक अखबार न होकर सांस्‍कृतिक अखबार ज्‍यादा था. हरिजन का अर्थ है – हरि यानि ईश्‍वर के लोग. गांधी ने समाज के दलित, वंचित और जाति व्‍यवस्‍था में हाशिए पर ढकेल दिए गए लोगों को हरिजन कहकर बुलाया था.

एक आना में बिकने वाले इस साप्‍ताहिक अखबार में गांधी जेल से हर हफ्ते तीन लेख लिखते थे क्‍योंकि उन्‍हें सिर्फ तीन लेख लिखने की ही इजाजत थी. उन्‍होंने साफ निर्देश दिया था कि जब तक यह अखबार पूरी तरह स्‍थापित न हो जाए, तब तक इसमें कोई राजनीतिक विमर्श नहीं होगा.

इस अखबार में गांधी दैनिक जीवन से जुड़े आचार-व्‍यवहार, नैतिकता, जीवन दर्शन, सांस्‍कृतिक और सामाजिक आचरण से संबंधित लेख लिखते. शुरू में यह अखबार सिर्फ हिंदी में ही प्रकाशित होता था. गांधी ने कहा था कि जब तक यह अखबार पूरी तरह आत्‍मनिर्भर नहीं हो जाता, तब तक अंग्रेजी में इसका प्रकाशन नहीं किया जाएगा.

सिर्फ तीन महीने के भीतर हरिजन की दस हजार कॉपियां बिकने लगीं. हिंदी, उर्दू, तमिल, तेलगू, गुजराती, मराठी, कन्नड़, उड़िया और बंगाली भाषा में इसका प्रकाशन होने लगा.  

यंग इंडिया जहां अंग्रेजों के दमन और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठा रहा था, वहीं हरिजन ने भारतीय समाज के भीतर व्‍याप्‍त बुराइयों, छुआछूत और भेदभाव की कठोर शब्‍दों में आलोचना शुरू की.

गांधी ने लिखा कि अगर हम अपने ही समाज की गंदगी को साफ नहीं कर सकते तो हमें कोई अधिकार नहीं कि हम दूसरी की फैलाई गंदगी पर सवाल उठाएं. गांधी ने यहां तक लिखा कि अगर हमारा देश जाति के आधार पर आपस में एक-दूसरे को ही घृणा की नजर से देखता रहेगा तो अंग्रेजों का मुकाबला कभी नहीं कर पाएगा. 

यह कहना संभवत: अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जैसे यंग इंडिया ने भारत को राजनीतिक रूप से एकजुट करने का काम किया था, उसी तरह हरिजन ने देश को सांस्‍कृतिक रूप से एकजुट करने का काम किया.


Edited by Manisha Pandey