महज़ 31 साल की उम्र में शहीद हुए मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के आखिरी शब्द थे "आप यहीं रुको, मैं ऊपर जाकर संभालता हूं"
नवंबर, 2008 को आतंकवादियों ने मुंबई के ताज होटल में लोगों को बंधक बना लिया था. चार दिनों तक चले इस हमले में 15 पुलिसकर्मियों और 2 एनएसजी सहित कम से कम 174 लोगों की जान चली गई. इनमें से एक थे मेजर संदीप उन्नीकृष्णन (Sandeep Unnikrishnan). मरणोपरांत उन्हें भारत के सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार, अशोक चक्र से सम्मानित किया गया.
मेजर संदीप उन्नीकृष्णन 1995 में National Defence Academy (NDA) में शामिल हुए थे. उनका चयन NDA के 94th कोर्स के लिए हुआ, जिसमे वे Oscar Squadron का हिस्सा थे. NDA में 3 साल की और IMA में 1 साल की प्री-कमीशन ट्रेनिंग पूरी करने के बाद 1999 में उनकी नियुक्ति बिहार रेजीमेंट की सातवीं बटालियन के लेफ्टिनेंट के रूप में हुई.
उस दौरान कारगिल युद्ध चल रहा था. लेफ्टिनेंट संदीप को कारगिल युद्ध में फॉरवर्ड पोस्ट पर तैनाती दी गई. कारगिल युद्ध में ‘ऑपरेशन विजय’ के दौरान उन्होंने अपने जज्बे और साहस का परिचय दिया. साल 2003 में संदीप को लेफ्टिनेंट से कैप्टन बना दिया गया. इसके बाद साल 2005 में संदीप मेजर बना दिए गए.
इस बीच उन्हें 2002 के गुजरात दंगों के दौरान NSG में चयनित किया गया था. फिर वो ट्रेनिंग ऑफिसर बने. इंस्ट्रक्टर ग्रेडिंग जो भारतीय सेना में सर्वश्रेष्ठ ग्रेडिंग मानी जाती है, उन्होंने प्राप्त की. इसके अलावा हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल, गुलमर्ग में प्रशिक्षण के बाद सियाचिन में अपनी सर्विसेज दी. इसके बाद, उन्हें जम्मू-कश्मीर और राजस्थान के कई स्थानों पर, भारतीय सेना में नियुक्त किया गया. मेजर संदीप इस दौरान Counter Insurgency Operation का हिस्सा रहे.
ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडो
26 नवंबर 2008 की रात को दक्षिण मुंबई में कई प्रतिष्ठित इमारतों पर हमला किया गया था. जिन इमारतों में बंधक बनाए गए थे उनमें से एक 100 साल पुराना ताजमहल पैलेस होटल था. मेजर उन्नीकृष्णन ताजमहल से बंधकों को सुरक्षित छुड़ाने के लिए ऑपरेशन में तैनात 51 स्पेशल एक्शन ग्रुप (51 SAG) के टीम कमांडर थे.
अंदर कितने आतंकवादी थे? किस कमरे में कितने लोग थे? उनके पास ऐसी कोई जानकारी नहीं थी. ताज होटल एक ऐसी इमारत थी जिसके अंदरुनी हिस्से की जानकारी टीम में किसी को नहीं थी. ऊपर से, उनके पास होटल का कोई नक्शा नहीं था. साथ ही आतंकी समय-समय पर आगजनी भी कर रहे थे.
मेजर उन्नीकृष्णन 10 कमांडो के जत्थे के साथ होटल में दाखिल हुए और सीढ़ी के जरिए छठी मंजिल पर पहुंचे. जैसे ही टीम सीढ़ियों से नीचे उतरी, उन्हें तीसरी मंजिल पर कुछ अथितियों को बंधक बनाए रखे जाने का शक हुआ. टीम ने दरवाजा तोड़ने का फैसला किया और जब ऐसा किया तो टीम को आतंकवादियों की ओर से फायरिंग का सामना करना पड़ा. अपराधियों द्वारा की गई गोलियों की बौछार मेजर उन्नीकृष्णन के सहयोगी कमांडो सुनील यादव को लगी. कमांडो यादव को रेस्क्यू करने की व्यवस्था करने के लिए मेजर उन्नीकृष्णन ने अपराधियों को गोलाबारी में उलझाने की कोशिश की.
उसके बाद मेजर संदीप ने अकेले आतंकवादियों का पीछा करने का फैसला किया और अपने साथियों से कहा था "आप यहीं रुको, मैं ऊपर जाकर संभालता हूं." फायरिंग चल रही थी. आतंकवादियों से हुई मुठभेड़ के दौरान संदीप काे गाेली लगी और वे शहीद हो गए.
उनके असाधारण साहस और नेतृत्व को सम्मानित करते हुए पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया जिसमें हजारों लोग इकट्ठा हुए.
मेजर संदीप उन्नीकृष्णन को उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत अशोक चक्र पुरस्कार प्रदान किया गया.
बेंगलुरु में 4.5 किमी की एक सड़क का नाम उनके नाम पर है.
जोगेश्वरी-विक्रोली लिंक पर इंडियन एजुकेशन सोसाइटी के प्रवेश द्वार पर उनकी मूर्ति स्थापित की गई है.