शक्ति सामंत: स्टार बनने की हसरत से मुंबई आया नौजवान एक दिन स्टार मेकर बन गया
राजेश खन्ना और शम्मी कपूर को सुपरस्टार बनाने की श्रेय शक्ति सामंत को जाता है.
आज हिंदी सिनेमा के एक बहुत बड़े निर्देशक की जयंजी है. वो निर्देशक, जिन्होंने राजेश खन्ना और शम्मी कपूर जैसे अभिनेताओं को सुपरस्टार बनाया. 13 जनवरी, 1926 में बंगाल के बर्द्धमान जिले के एक छोटे से गांव में जन्मा यह शख्स यूं तो खुद स्टार बनने की हसरत से ही मुंबई आया था, लेकिन तकदीर कुछ यूं रही कि वह दूसरों को स्टार बनाने वाले स्टार डायरेक्टर बन गया.
हम बात कर रहे हैं शक्ति सामंत की, जिन्होंने आराधना, अमर प्रेम, कश्मीर की कली, बरसात की रात, आनंद आश्रम, हावड़ा ब्रिज, कटी पतंग और अमानुष जैसी कालजयी फिल्में बनाईं.
राजेश खन्ना की चारों सुपरहिट फिल्में आराधना, आनंद आश्रम, अमर प्रेम और कटी पतंग के हीरो राजेश खन्ना थे. आराधना राजेश खन्ना के कॅरियर की पहली सुपरहिट फिल्म थी, जिसने उन्हें रातोंरात शोहरत और सफलता की बुलंदी पर पहुंचा दिया था. इस फिल्म के लिए शक्ति सामंत और शर्मिला टैगोर दोनों को फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था.
शक्ति सामंत का कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहीं था. वह वह सिनेमा के शौकीन थे. शक्ल-सूरत ठीकठाक थी. सो फिल्मों में हीरो बनने का ख्याब रखते थे. इस ख्वाब के साथ वो मुंबई आ गए. यहां शुरू में काफी संघर्ष था. तो उन्होंने मुंबई से कोई 200 किलोमीटर दूर पुणे के रास्ते में दापोली नामक जगह पर एक स्कूल टीचर की नौकरी कर ली.
1948 में उन्हें फिल्मों में पहला ब्रेक मिला, लेकिन बतौर एक्टर नहीं, बल्कि बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर. सतीश निगम राज कपूर के साथ सुहाने दिन नाम की एक फिल्म बना रहे थे. उन्होंने शक्ति सामंत को अपना असिस्टेंट रख लिया.
बतौर स्वतंत्र डायरेक्टर सामंत की पहली फिल्म थी बहू, जो 1954 में बनी थी. फिल्म में ऊषा किरण, शशिकला, प्राण और करण देवन भूख्य भूमिकाओं में थे. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल रही. इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक इंसपेक्टर (1956), शीरू (1956), डिटेक्टिव (1957) और हिल स्टेशन (1957) जैसी हिट फिल्में बनाईं.
इन फिल्मों की सफलता के बाद 1957 में उन्होंने अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी शुरू की- शक्ति फिल्म्स. इस बैनर के तले बनी पहली फिल्म थी हावड़ा ब्रिज, जिसमें अशोक कुमार और मधुबाला मुख्य भूमिकाओं में थे. इस फिल्म के लिए शक्ति सामंत ने मधुबाला को सिर्फ एक रुपए में साइन किया था. वो नए प्रोड्यूसर थे. उनके पास देने को ज्यादा पैसे नहीं थे. लेकिन अशोक कुमार और मधुबाला, दोनों को उन पर पूरा यकीन था कि शक्ति सामंत की फिल्म है तो कमाल ही होगी.
फिल्म सुपरहिट रही. उसके बाद तो शक्ति सामंत ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
शक्ति सामंत की फिल्मों की पूरी फेहरिस्त उठाकर देख लीजिए. सिनेमा के शौकीनों ने वो फिल्में जरूर देखी होंगी. हर फिल्मों हिंदी सिनेमा की नायाब विरासत है. और सिर्फ फिल्में ही नहीं, बल्कि उन फिल्मों की संगीत भी नायाब है.
कहते हैं, शक्ति सामंत अपनी फिल्मों के म्यूजिक पर बहुत ध्यान देते हैं. गीत लिखने और उसका संगीत देने वालों के साथ काफी वक्त बिताते और गीत के बनने की एक पूरी प्रक्रिया में हर स्तर पर साझेदार होते थे.
याद है फिल्म अमर प्रेम का वो अमर गाना.
'चिंगारी कोई भड़के, तो सावन उसे बुझाए, सावन जो अगन लगाए तो उसे कौन बुझाए.'
इस गाने की बनने के पीछे भी एक यादगार वाकया है. आनंद बख्शी को शक्ति सामंत की फिल्म के लिए गाना लिखना था. शक्ति सामंत रोज उन्हें फोन करके तगादा करते. एक दिन तो वो सीधे उनके घर ही जा पहुंचे. पता चला कि आनंद बख्शी कहीं पार्टी में हैं तो डायरेक्टर साहब सीधे पार्टी में धमक गए. बाहर खड़े होकर आनंद बख्शी के निकलने का इंतजार करने लगे.
जब वो बाहर आए तो उनसे कहा तो वो गाने की सिचुएशन और उसका इमोशन समझाने लगे. तभी हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गई और तेज हवा चलने लगी. आनंद बख्शी साहब अपनी सिगरेट जलाने की कोशिश कर रहे थे. जितनी बार वो माचिस की तीली जलाते, वो हवा से बुझ जाती. तभी एक चिंगारी जली. एक माचिस में और दूसरी आनंद बख्शी साहब के दिमाग में. उन्होंने शक्ति सामंत से कागज-कलम मांगी और गाने का मुखड़ा कागज पर उतार दिया.
'चिंगारी कोई भड़के, तो सावन उसे बुझाए, सावन जो अगन लगाए तो उसे कौन बुझाए.'
एक कालजयी गीत तैयार हो गया.
कमाल जरूर आनंद बख्शी साहब की कलम का था, लेकिन इसके पीछे शक्ति सामंत की मेहनत और लगन भी थी.
Edited by Manisha Pandey