इंटरनेट-व्हाट्सएप से जुड़ी दो बातों ने भारत समेत पूरी दुनिया में बेचैनी फैलाई
इंटरनेट और व्हाट्सएप अब मानवाधिकारों की हिफाजत के भी सबसे ताकतवर माध्यम बन चुके हैं। जब भी इंटरनेट सेवाएं बाधित-स्थगित की जाती हैं; मालवेयर के माध्यम से व्हाट्सएप-फोन में घुसकर जासूसी की जाती है, हलचल मच जाती है। फिलहाल, इंटरनेट-व्हाट्सएप से जुड़ी ऐसी दो बातों ने पूरे विश्व में बेचैनी फैला दी है।
संयुक्त राष्ट्र, इंटरनेट की उपलब्धता को मूलभूत मानवाधिकार करार दे चुका हैं। अभी हाल ही में जून 2018 से मई 2019 के बीच विश्व के सभी देशों के इंटरनेट स्वतंत्रता के ताजा आकड़ों पर फोकस फ्रीडम हाउस की एक ताज़ा 'फ्रीडम ऑन द नेट' (एफओटीएन) रिपोर्ट में बताया गया है कि कश्मीर में हस्तक्षेप के मामले में पाकिस्तान चाहे जितनी शोशेबाजी करता रहे, पिछले नौ वर्षों से वह इंटरनेट स्वतंत्रता के मामले में बहुत पीछे यानी 100 में 26वें स्थान पर है। पाकिस्तान ग्लोबल लेवल पर इंटरनेट और मीडिया की स्वतंत्रता में भी दस सबसे खराब देशों में से एक है। इस रिपोर्ट के बाद पाकिस्तान की खूब छीछालेदर हुई है।
मानवाधिकार से जुड़ा दूसरा सबसे गंभीर मामला ह्वाटसएप जासूसी का है। हाल ही में भंडाफोड़ हुआ है कि कई दर्जन भारतीय पत्रकारों, वकीलों और कार्यकर्ताओं के फोन इजराइल में विकसित एक मालवेयर के माध्यम से हैक कर लिए गए। इसी संबंध में विगत 29 अक्तूबर को कैलिफोर्निया की अमेरिकी अदालत में व्हाट्सऐप और उसकी मूल कंपनी फेसबुक ने इजराइली साइबर इंटेलिजेंस फर्म एनएसओ के खिलाफ एक मुकदमा दायर करा दिया। व्हाट्सऐप का आरोप है कि एनएसओ ने दुनियाभर में करीब 1,400 मोबाइल फोनों की जासूसी के लिए उसके मैसेजिंग प्लेटफॉर्म का उपयोग किया। उस दौरान सभी फोन में डिवाइस हैकिंग टूल 'पेगासस' को इंस्टॉल किया गया।
इस हैकिंग टूल का नाम यूनानी पौराणिक कथाओं में वर्णित पंख वाले घोड़े पेगासस के नाम पर रखा गया। उस शिकायत में भारत के नाम का विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया गया था, पर कई भारतीय एक्टिविस्ट और पत्रकार आगे आए और बताया कि उन्हें चेतावनी के संदेश मिले हैं कि मई में अत्याधुनिक जासूसी तकनीक की मदद से उनकी निगरानी हुई। यह मानवाधिकारों की आजादी का सीधे-सीधे उल्लंघन और हनन है। जिन लोगों की जासूसी की गई, उनमें दिल्ली, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ आदि में सक्रिय मानवाधिकार कार्यकर्ता शामिल थे।
केंद्रीय आइटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने व्हाट्सऐप स्वतंत्रता और मानवाधिकारों से जुड़े इस मामले पर स्पष्टीकरण तलब करते हुए पूछा है कि व्हाट्सऐप कंपनी लाखों भारतीयों की गोपनीयता की रक्षा के लिए क्या कर रही है? आगामी 18 नवंबर से शुरू होने जा रहे संसद के शीतकालीन सत्र में पेगासस का मुद्दा भी प्रमुखता से उठाए जाने की उम्मीद है। कांग्रेस का दावा है कि प्रियंका गांधी की भी जासूसी हुई है। सबसे बड़ी बात तो ये है कि एनएसओ कंपनी ने जासूसी का माध्यम बने 390 करोड़ रुपए की कीमत वाले पेगासस को भारत की किस एजेंसी को बेचा और इसके निशाने पर कौन लोग थे?
उल्लेखनीय है कि आज से लगभग तीन वर्ष पहले यूएई के एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के फोन में इसकी खोज के बाद से पेगासस ने पूरे साइबर जगत को अपनी क्षमताओं से चौंका दिया था। अपराधियों और आतंकवादियों को ट्रैक करने के लिए विकसित यह मालवेयर न केवल अपने लक्ष्य के स्मार्टफोन की सारी गतिविधियों को पकड़ सकता है, बल्कि यह फोन को एक सुनने के उपकरण (लिसनिंग डिवाइस) में बदल देता है। एनएसओ अब सरकारों को साइबर इंटेलिजेंस और एनालिटिक्स सॉल्यूशन मुहैया कराने वाली एक वैश्विक अग्रणी कंपनी है, जिसका राजस्व पिछले साल 25 करोड़ डॉलर तक पहुंच गया था।
हमारे देश में केवल दस केंद्रीय एजेंसियां टेलीफोन टैप कर सकती हैं- इंटेलिजेंस ब्यूरो, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, राष्ट्रीय जांच एजेंसी, रिसर्च ऐंड एनालिसिस विंग (रॉ), सिग्नल इंटेलिजेंस निदेशालय, दिल्ली पुलिस आयुक्त, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड और राजस्व खुफिया निदेशालय। इन एजेंसियों को भी टैपिंग के लिए अदालत के आदेश और एक नामित प्राधिकारी, जो कि आमतौर पर केंद्रीय गृह सचिव होते हैं, से अनुमति लेनी पड़ती है। इन प्रक्रियाओं के पालन के बावजूद सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम-2000 मालवेयर के उपयोग को तो कत्तई प्रतिबंधित करता है।
मालवेयर ने फोन-टैपिंग एजेंसियों की अब तक की हर बाधा, एन्क्रिप्टेड कम्युनिकेशन, टारगेट के जरिए सिम कार्ड बदलना, मोबाइल फोन प्रोवाइडर्स को साथ लेने की आवश्यकता, टारगेट को एक मैलेसियस लिंक भेजना जिस पर क्लिक करके टारगेट को उसे डाउनलोड करना होता था, को असफल कर चुका है। बस एक मिस्ड कॉल देकर पेगासस को किसी भी स्मार्टफोन में इंस्टॉल किया जा सकता है।
डिवाइस में पैठ बना लेने के बाद मालवेयर उस फोन के उपयोगकर्ता की हर गतिविधि की जासूसी करने लगता है। उस दौरान वह होस्ट कंप्यूटर को फाइलें, तस्वीरें, दस्तावेज आदि भेजता रहता है। मालवेयर की खुद को नष्ट कर लेने की क्षमता यह सुनिश्चित कर देती है कि यह इस्तेमाल के बाद अपना कोई निशान पीछे न छोड़ता है। एक खुफिया अधिकारी ने तो पेगासस को 'साइबरस्पेस का परमाणु हथियार' कहा है।