क्यों केरल की रीमादेवी एक साथ पैदा हुईं चारों बेटियों की शादी भी एक साथ करेंगी?
तिरुवनंतपुरम (केरल) में एक ही दिन जनमे पांच भाई-बहनों में से चार बहनों की शादी एक साथ, एक ही दिन होगी। उनका जन्म 18 नवंबर 1995 को हुआ था। अब इसी महीने नवंबर 2019 में वे पांचों 24 वर्ष के हो चुके हैं। इस समय बहनें फैशन डिजाइनर, एनेस्थेसिया टेक्नीशियन, ऑनलाइन राइटर और भाई सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।
देश-दुनिया में आबादी के घनत्व की बातें अपनी जगह हैं और अलग-अलग सामाजिक संस्कृतियों में घर-परिवार-गृहस्थी की बातें अपनी जगह। जनसंख्या का घनत्व रोकने के लिए ही सत्तर के दशक में इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक देश पर इमेरजेंसी थोप कर ऐतिहासिक पराजय का सामना किया। आबादी की रफ्तार कमतर कहां हुई। उसके ठीक बीस साल बाद केरल में एक मां ने एक साथ पांच (कुइंटुप्लेट) बच्चों को जन्म दिया। जिंदगी की तमाम उठा-पटक से गुजरते हुए आज वे पांचों बच्चे चौबीस साल के युवा हो चुके हैं।
हालात से टूट चुके पिता ने तो आत्महत्या कर ली लेकिन मां ने बमुश्किल उन्हे पाल-पोस कर बड़ा किया है। वह अप्रैल 2022 में अपनी चारो बेटियों की एक साथ शादी करने की तैयारी में हैं। बहनें उथराजा, उथारा, उथम्मा, उथरा और भाई उथराजन, पांचों इस समय नौकरी कर रहे हैं। बहन उथारा कहती हैं कि अब वे चारो बहनें अपने भाई को बहुत मजबूत होते हुए देखना चाहती हैं। मां रीमादेवी कहती हैं कि उसे अभी बहुत आगे जाना है।
तिरुवनंतपुरम (केरल) में एक ही दिन जनमे पांच भाई-बहनों में से चार बहनों की शादी एक साथ, एक ही दिन होगी। चारो गुरुवायूर के श्रीकृष्ण मंदिर में 26 अप्रैल 2022 को अपने हाथ पीले करेंगी। चारो बहनें उथराजा, उथारा, उथम्मा, उथरा और उनका भाई उथराजन का जन्म 18 नवंबर 1995 को हुआ था। जिस दिन इनका जन्म हुआ, उसी दिन पिता ने घर का नाम ‘पंच रत्नम’ रख दिया। मां रीमादेवी ने उसी दिन इच्छा जताई थी कि सभी चार बहनों की शादी वह एक साथ करेंगी। वह बताती हैं कि पति की अचानक मौत के बाद वह असहाय हो गई थीं। फिर उन्होंने सोचा कि वह अब अपने बच्चों के लिए जिएंगी। अभी तक उनके सभी बच्चों को एक जैसा लालन-पालन मिला है।
रीमादेवी के अनुसार अब वह भगवान की कृपा और प्रियजनों के सहयोग के कारण अपनी बेटियों की एक साथ शादी करने जा रही हैं। इस समय चारो बेटियों की शादी के छोटे-छोटे सामान इकट्ठे करते जाने का वह जतन करती रहती हैं। बेटे को अभी और आगे बढ़ना है, इसलिए वह थोड़ा इंतजार करेगा।
मां रीमादेवी बताती हैं कि उनके पति जन्म के बाद नौ वर्षों तक इन पांचों बच्चों को हमेशा इनकी जरूरतों की एक जैसी चीजें मुहैया कराते रहे। ऐसे सामानों में स्कूली बैग से लेकर छाता और ड्रेस तक शामिल हुआ करते थे। बच्चों के जन्म के नौ साल बाद वर्ष 2004 में जब रीमादेवी हृदय रोग से पीड़ित हो गईं तो उनका परिवार भारी आर्थिक संकट से गुजरने लगा। परेशानियों से तंग आकर पिता ने एक दिन आत्महत्या कर ली। घर के मुखिया की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी रीमादेवी पर आ गई। कुछ लोगों की मदद से तिरुवनंतपुरम की सहकारी बैंक में उनको चतुर्थ वर्ग की सरकारी नौकरी मिल गई। इस तरह परिवार की फिर से स्थिति सुधरने लगी।
इस समय रीमादेवी पेसमेकर के सहारे जीवित हैं। रीमादेवी बताती हैं कि अब इस महीने नवंबर 2019 में ये भाई-बहन चौबीस वर्ष के हो चुके हैं। इन चारो बहनों में से एक फैशन डिजाइनर, दो एनेस्थेसिया टेक्नीशियन और एक ऑनलाइन लेखक और भाई सॉफ्टवेयर इंजीनियर बन चुका है।