भारत स्वच्छ स्रोतों से देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने की दिशा में काम कर रहा है: पीयूष गोयल
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने बताया कि ऊर्जा संक्रमण में एक महत्वपूर्ण तत्व कोयले से जुड़े बदलाव हैं. उन्होंने कहा कि पवन या सौर जैसे वैकल्पिक और हरित स्रोत बिजली के रुक-रुक कर आने वाले स्रोत हैं जो पूरे दिन, विशेषकर पीक आवर्स में, स्थायी आधार पर उपलब्ध नहीं होते हैं.
भारत के ऊर्जा क्षेत्र में व्यापक स्तर पर बदलाव हो रहा है और सरकार स्वच्छ स्रोतों से देश की ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने के लक्ष्य पर काम कर रही है. केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग, उपभोक्ता मामले, वस्त्र और खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में नई दिल्ली में ओआरएफ के एनर्जी ट्रांजिशन डायलॉग के पहले संस्करण में यह बात कही.
गोयल ने कहा कि अगले 30 वर्षों में, भारत की अर्थव्यवस्था में भारी वृद्धि देखने को मिलेगी और इससे जीवन के सभी क्षेत्रों में ऊर्जा की मांग में खासी बढ़ोतरी होगी और इसलिए भारत के ऊर्जा क्षेत्र में हो रहे बदलाव के दो आयाम हैं: पिछले उपभोग स्तरों से आगे बढ़ना और इस विकास की जरूरतों को पूरा करने के लिए हम क्या करते हैं. भारत के कई मोर्चों पर काम करने का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि जिन परिस्थितियों में हम हैं, भारत अपनी व्यवस्था में स्वच्छ ऊर्जा को शामिल करके ऊर्जा परिवर्तन की कहानी के लगभग हर पहलू पर अपने लक्ष्यों को आगे बढ़ा रहा है.
कुछ उदाहरणों का हवाला देते हुए, गोयल ने कहा कि भारत स्वच्छ ऊर्जा से जुड़े उपकरणों के उत्पादन को बढ़ावा दे रहा है और हरित हाइड्रोजन और अमोनिया में से जुड़े बदलावों की शुरुआत कर रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार की प्रमुख पहलों में से एक उत्पादन से जुड़ा प्रोत्साहन कार्यक्रम है, जिसने बहुत अच्छा काम किया है. उन्होंने कहा कि यह भारत में विनिर्माण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक सोची समझकर और अच्छी तरह से तैयार की गई सरकारी नीति है. पीएलआई योजना केवल मोबाइल फोन के लिए नहीं, बल्कि वाहनों के कलपुर्जों, विशेष कौशलों, तकनीकी कपड़ों आदि कई क्षेत्रों के लिए है. उन्होंने कहा कि हरित ऊर्जा की बात करें दो भारत में सौर, अत्यधिक दक्ष सौर पीवी विनिर्माण और हरित हाइड्रोजन के निर्माण में कुछ निवेश आ रहे हैं.
गोयल ने बताया कि ऊर्जा संक्रमण में एक महत्वपूर्ण तत्व कोयले से जुड़े बदलाव हैं. उन्होंने कहा कि पवन या सौर जैसे वैकल्पिक और हरित स्रोत बिजली के रुक-रुक कर आने वाले स्रोत हैं जो पूरे दिन, विशेषकर पीक आवर्स में, स्थायी आधार पर उपलब्ध नहीं होते हैं.
उन्होंने कहा कि भारत की बिजली में वार्षिक 8-10 प्रतिशत की वृद्धि की भरपाई दुनिया भर में स्थित सभी परमाणु संयंत्रों द्वारा भी नहीं की सकती है. उन्होंने कहा कि भारत को पुराने पारंपरिक स्रोतों से पारगमन पर ध्यान देने का उपदेश देने से पहले दुनिया को कोयले के लिए वैकल्पिक बेसलोड की इस बहुत गंभीर चुनौती को समझना होगा. उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय पावर ग्रिड के लिए प्रधानमंत्री मोदी का दृष्टिकोण संभावित समाधान है जिसे दुनिया अब स्वीकार कर रही है.
कार्बन टैक्स के मुद्दे पर, गोयल ने कहा कि इसके लिए एक तरह की रिपोर्टिंग की आवश्यकता है जो पिछले महीने शुरू हुई थी और कार्बन सीमा समायोजन प्रणाली की शुरुआत 2026 में हो जाएगी. उन्होंने कहा कि भारत को इसके बारे में चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि सरकार इस मसले पर यूरोपीय संघ और यूरोपीय देशों एवं उनके नेतृत्व के साथ बातचीत कर रही है. उन्होंने कहा कि अगर जिस देश से सामान की आपूर्ति होती है, वह देश कार्बन पर उस स्तर पर कर लगाता है जिस स्तर पर यूरोपीय संघ अपनी घरेलू कंपनियों पर कर लगाता है, तो उन देशों में हमारे निर्यात पर कोई अतिरिक्त कर नहीं लगेगा. इसलिए, यदि हम भारत में ही कर ले लेते हैं, तो कोई अतिरिक्त कर नहीं लगेगा. उन्होंने कहा कि इस तरह से भारत को यूरोप में हमारे निर्यात में कोई कमी नहीं आएगी.
ऊर्जा संक्रमण के वित्तपोषण से जुड़े पहलू पर बोलते हुए, गोयल ने कहा कि राष्ट्रों के लिए तय जिम्मेदारी के मानकों के आधार पर, भारत को वित्तपोषण और प्रौद्योगिकी की उपलब्धता पर काम करना होगा. वैश्विक आबादी में 17 प्रतिशत हिस्सेदारी होने के बावजूद, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन या ओजोन परत की कमी में भारत का योगदान मुश्किल से ढाई प्रतिशत है. उन्होंने कहा कि इस तरह, हम सबसे ज्यादा प्रदूषण करने वाले देश नहीं हैं. उन्होंने कहा कि प्रदूषक भुगतान सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए, यह उम्मीद की गई थी कि विकसित देश कम विकसित देशों और विकासशील दुनिया को संक्रमण के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से बहुत कम लागत पर या शून्य लागत पर दीर्घकालिक या अनुदान-आधारित वित्त पोषण प्रदान करके अतिरिक्त प्रयास करेंगे, लेकिन उन्होंने पूरी दुनिया को निराश किया है.
गोयल ने बताया कि विकसित देश कह रहे हैं कि वे वित्त प्रदान कर रहे हैं और हमें वित्त जुटाने में मदद कर रहे हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि विकसित देशों ने केवल दिखावटी सहानुभूति व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि उनके द्वारा जो मॉडल बनाए गए हैं वे काफी हद तक निजी पूंजी से संबंधित हैं और रियायती वित्त का पहलू पूरी तरह से गायब है. गोयल ने आखिर में कहा कि विकसित दुनिया के पास दुनिया की समस्याओं का समाधान खोजने के लिए बहुत कुछ है और आज दुनिया की वर्तमान स्थिति के लिए वे ही पूरी तरह से जिम्मेदार हैं.