Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

17 की उम्र में हत्यारा बन गया था वीरप्पन, अंडरकवर ऑपरेशन में पुलिस के हाथों मारा गया

शिकार, तस्कर, हत्या और डकैती जैसे कई अवैध अपराध वीरप्पन के नाम हैं. ऐसा कहा जाता है कि उसने 184 लोगों का खून किया है. कई जानी मानी हस्तियों की किडनैपिंग से लेकर पुलिस अधिकारियों के काफिले को बम से उड़ाने का भी आरोप उसके माथे पर था.

17 की उम्र में हत्यारा बन गया था वीरप्पन, अंडरकवर ऑपरेशन में पुलिस के हाथों मारा गया

Tuesday October 18, 2022 , 6 min Read

इंडिया में जितनी लोकप्रियता किसी नेता, अभिनेता, कलाकार, खिलाड़ी की रही है उतनी ही कुछ चुनिंदा गैंगस्टर, डकैत, लुटेरों की भी रही है. इनमें से ही एक नाम है डकैत, तस्कर, किडनैपर और खूनी वीरप्पन का. 90 के दशक को पलटकर देखें को एक पूरा दौर वीरप्पन के अपराधों के नाम रहा है.

वीरप्पन ने अपनी 41 साल की जिंदगी में अवैध गतिविधियों का रेकॉर्ड ही तौड़ दिया. अवैध शिकार से लेकर तस्करी बच्चों की किडनैपिंग या फिर मर्डर जैसे खतरनाक कामों में वो उस्ताद हो चुका था. पुलिस दिन रात उसकी तलाश में लगी रहती थी और फिर तभी 18 अक्टूबर, 2004 में वो पुलिस के हाथों मारा गया. निर्देशक राम गोपाल वर्मा ने कुख्यात हत्यारे तस्कर वीरप्पन पर कहानी पर फिल्म भी बनाई. आइए जानते हैं इंडिया के मोस्ट वॉन्टेड पर्सन वीरप्पन के बारे में…

कर्नाटक में जन्म

कूसे मुनीसामी वीरप्पन 18 जनवरी, 1952 को कर्नाटक के गोपीनाथम परिवार में पैदा हुआ था. उसका पूरा परिवार भी शिकार और तस्करी के लिए जाना जाता था. ऐसे माहौल में रहने की वजह से वीरप्पन पर भी उसका असर हुआ. वह बड़े-बड़े सेवी गौंडर जैसे शिकारियों, तस्करों के साथ समय बिताने लगा. इसका नतीजा ये हुआ कि बचपन से ही उसका दिमाग भी इन्हीं शिकारियों, डकैतों, और तस्करों की तरह काम करने लगा. उसने 10 साल की उम्र में अपना पहला शिकार किया. सेवी उसने इतना खुश हो गया कि उसने वीरप्पन को एक बंदूक ही दे दी.

सेवी से मिली इस तारीफ ने वीरप्पन के मन में अवैध कामों के लिए और इज्जत भर दी. वीरप्पन कम उम्र में ही हाथी के दांत और चंदन की तस्करी और शिकार में और धुंआधार तरीके से घुस चुका था. धीरे-धीरे शिकारियों की दुनिया में उसने अपना नाम बना लिया.

17 साल की उम्र में पहला मर्डर

18 की उम्र में आते आते वह अवैध कामों में इतना पारंगत हो गया कि उसके रास्ते में जो भी आता वो सीधे उसे बंदूक से उड़ा देता. चाहें वो कोई पुलिस ऑफिसर हो या वन अधिकारी या खबरी. उसने 17 साल की उम्र में एक वन सुरक्षा कर्मी की गोली मारकर हत्या कर दी और यह उसका पहला मर्डर था. 

veer

ऐसा माना जाता है कि उसने करीबन 184 लोगों का खून किया है, 2000 हाथियों को मारकर करीबन 88,000 पाउंड हाथी के दांत निकालकर उनकी तस्करी की. चंदन की तस्करी के लिए कई वन सुरक्षा कर्मियों की भी जान ली, जहां से उसे करीबन 10000 टन चंदन अवैध रूप से स्मगल किया. पुलिस को वीरप्पन को उसके साथियों के साथ पकड़ने में 20 साल लग गए.

पुलिस के लिए सिरदर्द

उसे सबसे पहले 1972 में गिरफ्तार किया गया था. दूसरी गिरफ्तारी 1986 में हुई थी, तब उसे बूडीपाडा फॉरेस्ट गेस्ट हाउस में रखा गया था जहां से वह संदिग्ध परिस्थिति में फरार भी हो गया. ऐसी भी कहानी है कि एक बार किसी तरह वो स्पेशल टास्क फोर्स के कब्जे में आ गया और अधिकारियों ने उसे गन पॉइंट पर भी ले लिया था. तभी उसने एक फोन करने की मांग रखी और उसने किसी बड़े मंत्री को फोन मिलाया जिसके बाद उसे जाने दिया गया.

जब वीरप्पन ने सरकार का ध्यान खींचा

1987 में एक वाकये ने दक्षिण से लेकर उत्तर भारत तक सबका ध्यान वीरप्पन की तरफ खींचा. दरअसल उसने स्तयमंगलम जिले के वन अधिकारी चिदंबरम को किडनैप किया और उनकी जान भी ले ली. इसके बाद 1991 में एक सीनियर आईएफएस अधिकारी पंडिल्लापल्ली श्रीनिवास की हत्या और 1992 में पुलिस दल पर घात लगाकर हमले किए जिसके बाद उसका नाम और भी लिया जाने लगा. 90 का दशक वीरप्पन की दहशत से जाना जाने लगा. वीरप्पन आम लोगों को भी मारने में हिचकता नहीं था. उसने कई लोगों को पुलिस का खबरी होने की शंका में मार डाला.

पालर ब्लास्ट के बाद बढ़ गई दहशत

palar

1993 में तो उसने जो किया वह तो और भी भयानक था. हुआ ये कि 41 पुलिस और वन अधिकारियों की एक टीम वीरप्पन द्वार मारे गए बंडारी शख्स की जांच के लिए भेजी गई थी जो गोविंदापड़ी में छिपी थी. मगर वीरप्पन को इसकी भनक पहले ही लग चुकी थी और उसने पुलिस के रास्ते में लैंडमाइन बिछा दी.

जैसे ही टीम मलाई महादेश्वरा हिल्स पहुंची एक बहुत बड़ा धमाका हुआ और 22 अधिकारियों की मौत हो गई. यह हादसा पालर ब्लास्ट के नाम काफी चर्चित हुआ. वीरप्पन को पकड़ने के लिए कई अभियान चले मगर कोई कामयाबी नहीं. मगर समय के साथ उसका गैंग छोटा होता गया. 1992 के आखिर तक तो पुलिस ने 5 करोड़ का इनाम घोषित कर दिया. 

कई जानी मानी हस्तियों की किडनैपिंग

वीरप्पन अपनी मांगों को पूरा करने के लिए जाने माने लोगों का अपहरण करने के लिए जाना जाता था. अवैध शिकार और तस्करी ने उसे बहुत सारा पैसा दिलाया, और पैसे के साथ मिली उसे पावर. उसने बड़े बड़े लोगों के साथ अपनी पहचान बनाई और इस तरह वो अपने क्राइम से बच निकलता.

जुलाई 2000 में, वीरप्पन ने दक्षिण भारतीय अभिनेता राजकुमार को एक गांव से अपहरण कर लिया, जहां वह एक गृह-प्रवेश समारोह में भाग लेने गए थे. फिरौती में, वीरप्पन ने तमिल को कर्नाटक की दूसरी आधिकारिक भाषा बनाने की मांग की. साथ में कुछ तमिल चरमपंथियों की रिहाई जो कावेरी जल विवाद में तमिलनाडु के जेल में थे. हालांकि, ऐसा माना जाता है कि 20 करोड़ रुपये की मोटी फिरौती के बाद, उसने राजकुमार को 108 दिनों के बाद बिना किसी नुकसान के रिहा कर दिया.

अगस्त 2002 में, कर्नाटक के पूर्व मंत्री एच नागप्पा का चामराजनगर जिले में उनके गांव के घर से अपहरण कर लिया गया था. कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल की स्पेशल टास्क फोर्स भी नागप्पा को नहीं बचा पाई. ऐसा माना जाता है कि 90 के दशक के दौरान कई सालों तक वीरप्पन ने कई पुलिस अधिकारियों और जानी-मानी हस्तियों का अपहरण किया था, जिसके लिए फिरौती का अनाधिकृत रूप से भुगतान किया गया.

ऐसी ही एक कांड उसने जुलाई 1997 में किया. उसने चामराजनगर जिले के बुरुडे जंगलों में 9 वन अधिकारियों का अपहरण किया मगर सभी बंधकों को बिना किसी नुकसान के छोड़ दिया गया था. 2002 में, पुलिस ने उसके गिरोह के सदस्यों से कुल 33 लाख रुपये बरामद किए, जिसे जंगल के अलग-अलग हिस्सों में दफनाया गया था.

ऑपरेशन कोकून

वीरप्पन इतने अपराध कर चुका था कि उसे पकड़ना पुलिस के साथ कई राज्य सरकारों के लिए भी चुनौती बन गया था. अंत में उसे पकड़ने के लिए एक अंडरकवर ऑपरेशन रचा गया. 18 अक्टूबर 2004 को, एक अंडरकवर पुलिसकर्मी ने वीरप्पन और उसके साथियों को इलाज के लिए धर्मपुरी ले जाने के बहाने एम्बुलेंस में आने के लिए फुसला लिया. तभी तमिलनाडु स्पेशल टास्क फोर्स ने वाहन को घेर लिया और आखिरकार वीरप्पन पकड़ लिया गया.

वीरप्पन के सहयोगी चंद्रे गौदार, सेतुकुली गोविंदन और सेथुमणि भी ऑपरेशन में मारे गए. वीरप्पन के शव को तमिलनाडु में मेट्टूर के पास मूलक्कडु में दफनाया गया था. ऐसा माना जाता है कि उसकी मृत्यु की खबर पर गोपीनाथम के ग्रामीणों ने पटाखे जलाकर खुशी मनाई.


Edited by Upasana