विभा सिंह परमार: रंगमंच अदाकारा और कला के लिए सकारात्मक मिसाल
ये कहानी है उत्तर प्रदेश के बरेली शहर की रहने वाली विभा सिंह परमार की, जो एक रंगमंच अदाकारा हैं और रंगमंच को ही अपना जीवन मानती है। विभा एक जुनूनी रंगमंच कलाकार होने के साथ लेखिका और पत्रकार भी हैं। टीवी, रेडियो, पोर्टल्स जैसी कई जगहों को अपनी कला के सहयोग से रोशन कर चुकी है। विभा थिएटर को सिर्फ़ मन की शांति ही नहीं बल्कि कला के लिए एक सकारात्मक मिसाल बनाने का हौसला रखती हैं।
बचपन और शुरुआती शिक्षा
विभा सिंह परमार का जन्म 27 अप्रैल, 1993 को उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में हुआ। इनके पिताजी का नाम श्री जंगबहादुर सिंह और माताजी का नाम श्रीमती ऊषा सिंह हैं। विभा की स्कूली शिक्षा बरेली के रिक्खी सिंह गर्ल्स इंटर कॉलेज से हुई है।
विभा बताती हैं,
“इंटरमीडियट की परीक्षा पास करने के बाद मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि आगे कौन सी पढ़ाई करूं, क्या विषय चुनूं? हालांकि मुझे हमेशा से राजनीति शास्त्र और हिंदी विषय प्रिय रहे हैं। इसी उठा पटक में मेरी बड़ी बहन आभा ने पापा से कहलवा कर मध्य प्रदेश के भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में मास कम्युनिकेशन के कोर्स में एडमिशन दिलवा दिया। सच पूछिए, इतने अलग कोर्स में प्रवेश पाकर मैं खुश भी थी और डरी हुई भी। लेकिन धीरे-धीरे मैं ढल गई।”
पत्रकारिता और ‘फाइव डब्ल्यू वन एच’
तीन साल की पत्रकारिता की पढ़ाई में उन्हें सबसे अच्छा लगता है बोलना, शब्दों का रखरखाव और इसके साथ ही ‘फाइव डब्ल्यू वन एच’ को वे अपने वास्तविक जीवन में उतारने लगी।
विभा बताती हैं,
“जब मास्टर्स करने के लिए माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में आई तो शुरुआती दिनों में मेरा मन पढ़ाई और किताबों में नहीं लगता था। मगर बाद में विषय की किताबें छोड़कर मैं शेरों-शायरी, कविताएं, कहानी, उपन्यास को पढ़ने लग गई। मुझे इन सबके साथ कैमरे के सामने आना, अभिनय देखना अच्छा लगता था।”
रंगमंच के प्रति लगाव
रंगमंच के प्रति लगाव और उससे जुड़कर अभिनय करने के बारे में पुछने पर वे बताती हैं,
“कमाल का लॉ ऑफ अट्रैक्शन लगा कि वर्तमान में मैं रंगमंच में अभिनय कर पा रही हूं।”
आगे वे बताती हैं,
“रंगमंच में आने के लिए मैंने बहुत सोचा था, 2015 में मास्टर्स कम्प्लीट करने के बाद मैंने भोपाल में रहकर करीब सात महीने तक रीजनल चैनल स्वराज एक्सप्रेस में एंटरटेनमेंट बीट पर बतौर स्क्रिप्ट राइटर काम किया।”
मगर नौ घंटे एक ऑफिस में एक ही काम में पूरा दिन बिता देना उन्हें अजीब लगने लगा।
विभा कहती हैं,
“मेरे अंदर की रचनात्मकता ख़त्म सी हो रही थी तब एक दिन मैंने जॉब छोड़ दी और वापस अपने घर बरेली लौट आई।”
लेकिन वो कहते हैं ना ‘सब अपनी किस्मत लिखवा कर लाते हैं।’ एक दिन विभा को रंगमंच की एक वर्कशॉप करने के लिए बुलाया गया।
विभा बताती हैं,
“बहुत सारे प्रश्नों को सोचकर मैंने सोचा, चलो कर लेते हैं। जीवन में रिस्क ज़रूरी है, बिना रिस्क लिए हम कुछ भी नहीं कर सकते। जब तैरना आएगा तभी हम समंदर की गहराई माप सकते हैं और मैं चली गई 2017 से अब तक रंगमंच कर रही हूं।”
तीन दोस्तों के साथ शुरु की नाट्य संस्था
विभा और उनकी तीन सहेलियों ने मिलकर भोपाल में तृषा नाट्य एवं लोक कला साहित्य समिति संस्था की शुरुआत की।
विभा कहती है,
“रंगमंच पर अभिनय करने में बहुत मज़ा आता है। बस जितने पैसे हमारे पास होने चाहिए वो नहीं है, पर दिल कहता है कि एक दिन वो दिन भी आएगा जब हमारे पास इतना पैसा होगा जिससे हम थिएटर में आने वालों को बता सके कि थिएटर सिर्फ़ शौकिया तौर पर नहीं करते। इसको करने का जुनून हमें कहीं और जुड़ने नहीं देता।”
ताकि कला के लिए सकारात्मक मिसाल बन सके रंगमंच
विभा कहती हैं,
"मैं थिएटर में टिके रहने के लिए एकरिंग कर रही हूं ताकि अर्निंग हो सके जिससे मुझमें अवसाद ना आए या फ़िर हमें ऐसा प्लेटफॉर्म मिल सके जिससे थिएटर को सिर्फ़ मन की शांति ही नहीं बल्कि कला के लिए एक सकारात्मक मिसाल बनाया जा सके।"
रंगमंच की समस्याएं
रंगमंच को लेकर विभा कहती हैं,
“सच में रंगमंच में अभिनय कर मैं खुश हो जाती हूं। वहीं पर कभी-कभी अवसाद घेर लेता है कि रंगमंच में सब कुछ है मगर पैसों की मार आपको दर-दर भटकने के लिए मजबूर कर देती है।”
विभा को लेकर मित्रों और सहयोगियों की राय
लता सांगड़े, तृषा नाट्य संस्था में विभा की सहयोगी (थिएटर आर्टिस्ट, और अध्यापिका) बताती हैं,
“विभा किसी भी चरित्र को लेकर बहुत चिन्तन करती हैं, बहुत खोजती है। चरित्र के बारे में गहन डिस्कशन करती जो उसे एक खास अभिनेत्री बनाने की तरफ ले जा रहा है।”
पूजा गुप्ता, थिएटर आर्टिस्ट और तृषा नाट्य संस्था में विभा की सहयोगी बताती हैं,
“सिर्फ़ कहने भर को नहीं वाक़ई में विभा एक मेहनती लड़की है। सीखने के जुनून ने उसे हमेशा बेहतर विद्यार्थी और एक अच्छा इंसान बनाया है। विभु (विभा) की लेखनी से मैं हमेशा प्रभावित रही हूं। इतनी छोटी उम्र से औरत की व्यथा को बारीकी से व्यक्त करना एक अनोखी कला है। हां, मैंने उसके प्रेम संबंधी लेखन पे हमेशा विरोध जताया पर उसने हर तरह से स्वयं को सुधारने का प्रयत्न करती हैं।”
विभा के मित्र और थियेटर आर्टिस्ट अभिषेक किरार बताते हैं,
“विभा से मेरा परिचय साल 2017 में हुआ था जब हम साथ में प्रसिद्ध व्यंग्यकार "हरिशंकर परसाई" की कहानी "एक लड़की पाँच दीवाने" का नाट्य अभ्यास भोपाल में सुश्री पूजा गुप्ता जी के निर्देशन में कर रहे थे। और उसके बाद हमने कई नाटकों में साथ काम किया। मंच पर काम करते हुए मैंने उन्हें हमेशा ही एक निर्दोष और जुझारू बच्चे सा ही पाया है जो हर संभव अपनी किसी ज़िद को पूरी करने की कोशिश करता है।”
विभा की मित्र अनुपमा शर्मा, जो कि एक मोटिवेटर और फ्रीलांस लेखिका हैं, कहती हैं,
“कहते हैं सच्चा कलाकार वही होता है जो अच्छा इंसान भी हो... ये बात विभा पर सटीक बैठती है। विभा से मेरा परिचय हुए लगभग छह साल से ऊपर हो चुके है इस दौरान मुझे कई बातें और लेखन जगत की बारीकियां उनसे सीखनें को मिली।”
स्वाति गुप्ता, एनबीटी में कार्यरत और विभा की मित्र, कहती हैं,
“डांस और अभिनय के प्रति विभा का जुनून ही उसे खास बनाता है। रंगमच पर वे किसी किरदार को सिर्फ़ निभाती ही नहीं है बल्कि जीतीं भी है। विभा की सबसे बड़ी ख़ूबी है उसका दार्शनिक स्वभाव, जो विपरीत परिस्थितियों में भी उसे ख़ुश रखता है।”
विभा की मित्र चांदनी रायकुंवर जो कि भोपाल के बंसल न्यूज़ चैनल में कार्यरत हैं, बताती हैं,
“विभा अपनी इच्छाओं को जिती है चाहे वह थियेटर में उनका कोई कैरेक्टर हो या उनकी राइटिंग स्कील। विभा कैरेक्टर या विषय की गंभीरता को महसूस करके उसे अपने अभिनय या अपने शब्दों में सार्थक करती है।”
आपको बता दें कि विभा सिंह परमार की लिखी कविताएं और कहानियां आए दिन लोकल समाचार पत्रों में प्रेषित होती रहती हैं।