भारत में महिलाओं के आंत्रप्रेन्योर बनने की राह में है कौन सी दीवार और वो दीवार कैसे गिर सकती है
भारत में कुल 5.85 करोड़ आंत्रप्रेन्योर्स हैं, जिसमें महिलाएं सिर्फ 80.5 लाख हैं यानि 13.76 फीसदी. यह संख्या कैसे बढ़ सकती है. महिलाएं परंपरा की चारदीवारी से निकलकर कैसे बन सकती हैं बिजनेस वुमेन.
स्टार्टअप और आंत्रप्रेन्योर्स की आजकल काफी बात होती है. भारतीय यूनीकॉर्न की संख्या 100 के पार हो चुकी है, रोज नए स्टार्टअप बन रहे हैं. अब बिजनेस करने के लिए जरूरी नहीं कि आपके परिवार में चार पीढि़यों से व्यवसाय की परंपरा हो. बहुत सारे नए लोग लीक को तोड़कर बिजनेस की दुनिया में कदम रख रहे हैं और सफलता के झंडे भी गाड़ रहे हैं.
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि स्टार्टअप फाउंडर्स और आंत्रप्रेन्योर्स की इस लंबी फेहरिस्त में कितनी महिलाएं हैं? मिनिस्ट्री ऑफ स्टैटिसटिक्स एंड प्रोग्राफ इंप्लीमेंटेशन (Ministry of Statistics and Programme Implementation) का छठा इकोनॉमिक सेंसस का डेटा सामने है. ये डेटा कह रहा है कि भारत में कुल आंत्रप्रेन्योर्स में महिलाओं की संख्या महज 13.76 फीसदी है. 58.5 मिलियन यानि 5.85 करोड़ कुल आंत्रप्रेन्योर्स हैं और उनमें महिला आंत्रप्रेन्योर्स सिर्फ 80.5 लाख हैं.
ग्लोबल एंटरप्रेन्योरशिप एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (Global Entrepreneurship and Development Institute) के अनुसार, भारत महिला उद्यमिता सूचकांक में 20 प्रतिशत से नीचे है. दुनिया के विकसित देशों जैसे अमेरिका और यूके के मुकाबले यह संख्या बहुत कम है. यहां तक कि ब्राजील, रूस और नाइजीरिया जैसे विकासशील देशों के मुकाबले भी भारत काफी पीछे है.
भारत में आखिर ऐसा क्या है, जो महिलाओं के आंत्रप्रेन्योर बनने की राह में बाधा है. उन बाधाओं को कैसे दूर किया जा सकता है. महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने, उन्हें सशक्त बनाने के लिए क्या जरूरी कदम उठाए जाने की जरूरत है.
आइए उसके कारणों और उपायों पर एक नजर डालते हैं.
आर्थिक मदद का अभाव
यह बात दीगर है कि भारत में महिलाओं की आर्थिक स्थिति पुरुषों के मुकाबले बहुत कमजोर है. उन्हें आर्थिक सहयोग और मदद भी नहीं हासिल है. भारत के अधिकांश राज्यों में जमीन, संपत्ति और विरासत में मिली संपदा पर महिलाओं का हम नहीं होता. हालांकि कानून उन्हें यह अधिकार देता है, लेकिन यह कानूनी अधिकार जमीनी हकीकत में नहीं बदल पाता. उसकी बड़ी वजह यह सदियों से चली आ रही परंपरा और विश्वास है कि संपत्ति का वारिस लड़का होता है और लड़कियों को दहेज के रूप में संपत्ति का एक हिस्सा दे दिया जाता है.
अधिकांश संपदा पर पुरुषों का मालिकाना होने के कारण उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से एक ठोस जमीन मिल जाती है. उनके पास क्रेडिट सपोर्ट से लेकर रिस्क लेने तक की क्षमता होती है. अगर आप अपना कोई बिजनेस शुरू करना चाहते हैं, तो लोन लेने के लिए भी आपके पास पर्याप्त क्रेडिट सपोर्ट होना चाहिए. साथ ही इतनी आर्थिक सहूलियत कि आप रिस्क ले सकें.
महिलाओं के आंत्रप्रेन्योर बनने की राह में यह सबसे बड़ी बाधा है कि उनके पास क्रेडिट सपोर्ट और रिस्क लेने की क्षमता नहीं होती. इसलिए ग्रामीण और शरीर क्षेत्रों में रह रही फर्स्ट टाइम आंत्रप्रेन्योर महिलाओं की राह में यह सबसे बड़ी बाधा है.
उपाय : चूंकि महिलाओं के पास ठोस प्रॉपर्टी सपोर्ट नहीं है और संपत्ति में बराबर अधिकार पाने की लड़ाई एक लंबी सामाजिक और सांस्कृतिक लड़ाई है, इसलिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि महिलाओं को कोई बिजनेस शुरू करने के लिए शुरुआती पूंजी कैसे मिले.
इसके लिए वैकल्पिक उपाय ढूंढने की जरूरत है. देश भर में महिलाओं को बिजनेस लोन मुहैया कराने के लिए वैकल्पिक तरीके खोजे जाएं. इस प्रक्रिया को ज्यादा आसान और पारदर्शी बनाया जाए. साथ ही बड़ी पूंजी और बड़े इंवेस्टमेंट की बजाय हमें विमेन फ्रेंडली फायनेंशियल प्रोडक्ट्स की जरूरत है. जैसे छोटे, सामूहिक लोन.
साथ ही मुख्यधारा और ऑल्टरनेटिव मीडिया को महिला उद्यमियों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. उनके और उनके काम के बारे में बात की जाए. इंवेस्टर्स तक उनकी पहुंच और इंवेस्टर्स की उन तक पहुंच को आसान बनाया जाए. मीडिया इस प्रक्रिया में पुल का काम कर सकता है. इस बारे में वृहद पैमाने पर जागरूकता फैलाने और इंवेस्टर्स और इंवेस्टमेंट के एक बड़े सिस्टम के भीतर एक विमेन फ्रेंडली इकोसिस्टम बनाने की जरूरत है.
छोटे व्यवसाय मालिकों के लिए बाहरी विकास के अवसर पैदा किए जाएं. इससे उनके विकास के साथ-साथ उनका आर्थिक योगदान भी बढ़ेगा. महिला उद्यमियों के विकास का अर्थ है बड़े पैमाने पर नए रोजगार का सृजन. महिला आंत्रप्रेन्योर्स न सिर्फ दूसरी महिलाओं के लिए नौकरी के अवसर पैदा करेंगी, वो उनके लिए प्रेरणा का काम भी करेंगी.
महिला होने की एक बड़ी क्राइसिस ये भी है कि उनके पास पर्याप्त रोल मॉडल्स नहीं हैं. पुरुषों के पास तो बिजनेस करने, सफल होने, पैसा कमाने, बड़ा होने की ढेरों कहानियां और मौके हैं, औरतों के पास नहीं हैं. ऐसे में जो भी लोग इस पूरे स्टार्टअप और न्यू आंत्रप्रेन्योर वर्ल्ड का हिस्सा हैं, उन्हें आपस में मिलकर महिलाओं के लिए एक बेहतर सपोर्टिव इकोसिस्टम बनाने की जरूरत है.
भारत में एक औसत मध्यवर्गीय स्त्री का संघर्ष और चुनौतियां
एक औसत मध्यवर्गीय भारतीय स्त्री कितने मोर्चों पर अकेले संघर्ष कर रही है. वो नौकरी में कमजोर और दोयम दर्जे की स्थिति में है, क्योंकि उसके पास हायर प्रोफेशनल एजूकेशन नहीं है. उसे एक जैसे काम का पुरुषों के मुकाबले कम पैसा मिलता है. साथ ही घर-गृहस्थी की तकरीबन एकतरफा जिम्मेदारी उसके कंधों पर है. उसे परफेक्ट पत्नी भी होना है, बहू भी और मां भी. और इन सबके बीच उसके अपने सपने और महत्वाकांक्षाएं भी हैं. वो नौकरी में आगे बढ़ना चाहती है, अपना बिजनेस करना चाहती है, आंत्रप्रेन्योर होना चाहती है.
यही कारण है कि अगर आप महिला उद्यमियों का डेटा उठाकर देखें तो पाएंगे कि इस काम में सफल होने वाली ज्यादातर महिलाएं थोड़े सक्षम, थोड़े रिसोर्सफुल अपर क्लास से ही ताल्लुक रखती हैं. हालांकि मध्यवर्गीय महिलाएं भी अब आगे आ रही हैं, लेकिन उनके रास्ते में चुनौतियां बहुत ज्यादा हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि इन चुनौतियों को थोड़ा कम करके उसके रास्ते को आसान कैसे बनाया जा सकता है. जिन मिडिल क्लास महिलाओं ने अपने काम में बेहतर प्रदर्शन किया है, थोड़ी सफलता अर्जित की है, उन्हें पहचानने, प्रेरित करने, सपोर्ट देने और उनकी महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने की जरूरत है.
ये करने के लिए कुछ सरल उपाय इस प्रकार हो सकते हैं-
1. जिन महिलाओं में संभावना है, उन्हें आगे और पढ़ने, प्रोफेशनल ट्रेनिंग लेने के लिए प्रेरित किया जाए. दूसरे विकासशील देशों में हायर एजूकेशन में जाने वाली महिलाओं का प्रतिशत भारत के मुकाबले काफी ज्यादा है. जैसे मिस्र और थाइलैंड में 20 फीसदी, मैक्सिको में 16 फीसदी और तुर्की में 10 फीसदी महिलाएं हायर एजूकेशन की दिशा में जाती हैं, जबकि भारत में यह संख्या महज 7 फीसदी है.
2. सभी मीडिया प्लेटफॉर्म में शून्य से शुरुआत करके सफल होने, अपना मुकाम बनाने वाली महिलाओं की कहानियों को प्रमुखता से जगह दी जाए. बात वही है कि महिलाओं को सही रोल मॉडल की जरूरत है.
3. कॉरपोरेट सेक्टर में ह्यूमन रिसोर्स की प्रचलित अवधारणों, पैमानों और तरीकों को बदलने और नई सोच को बढ़ावा देने का काम हो. नई सोच का अर्थ है महिला उद्यमियों को बढ़ावा देना, उन्हें प्रेरित करना, उन्हें मौके देना और उनकी जरूरत के हिसाब से विशेष सहायता भी.
4. पूरी दुनिया में हेल्थकेयर सेक्टर में महिलाओं का बोलबाला है, जहां 70 फीसदी से ज्यादा महिलाएं हैं. न सिर्फ घरों के भीतर, बल्कि केयरगिविंग बिजनेस में भी महिलाओं का आधिपत्य है. लेकिन इसके बावजूद इंवेस्टर महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्टअप में निवेश करने में हिचकिचाते हैं.
जिन क्षेत्रों में महिलाओं का आधिपत्य है, वहां भी यदि नेतृत्व की भूमिका में महिलाएं नहीं हैं, तो इसकी वजह प्रतिभा और क्षमता की कमी नहीं, बल्कि सोच और अवसर की कमी है. इस स्थिति को सजग हस्तक्षेप और प्रयास के साथ दूर किया जा सकता है.
Edited by Manisha Pandey