देश की वो वीरांगनाएं, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में मोर्चा संभाला
भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा ज़रूर होती है। लक्ष्मी बाई की तरह ही कई ऐसी वीरांगनाएं इस धरती पर पैदा हो चुकी हैं, जिन्होंने भारत को आजाद कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। चलिए बात करते हैं उन्हीं वीरांगनाओं की...
857 के पहले स्वातंत्र्य समर से लेकर 1947 में देश आजाद होने तक ये महिलाएं डटी रहीं और जब आजाद भारत की अपनी लोकतांत्रिक सरकार बनी उस वक्त भी नए भारत के नींव निर्माण में उन्होंने अपना शत प्रतिशत योगदान दिया।
भारत वीर सपूतों की धरती है और यहां आजादी की लड़ाई में कई वीरांगनाओं ने भी अपना बलिदान दिया था। इसकी मिट्टी से होनहार, बहादुर सुत भी पैदा हुए हैं और सुता भी। भारत तकरीबन एक सदी तक अंग्रेजों का गुलाम रहा। इस गुलामी की बेड़ियों को काटने के लिए हिंदुस्तान की वीरांगनाओं ने अपनी जान की बाजी लगा दी।
1857 के पहले स्वातंत्र्य समर से लेकर 1947 में देश आजाद होने तक ये महिलाएं डटी रहीं और जब आजाद भारत की अपनी लोकतांत्रिक सरकार बनी उस वक्त भी नए भारत के नींव निर्माण में उन्होंने अपना शत प्रतिशत योगदान दिया। आज हम बात करेंगे उन्हीं वीरांगनाओं की, जिनके बलिदान और देश-निर्माण में योगदान के लिए हम सदा उनके ऋणी रहेंगे
कित्तूर की रानी चेन्नम्मा
रानी चेन्नम्मा उन भारतीय शासकों में से हैं जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए सबसे पहली लड़ाई लड़ी थी। 1857 के विद्रोह से 33 साल पहले ही दक्षिण के राज्य कर्नाटक में शस्त्रों से लैस सेना के साथ रानी ने अंग्रेजों से लड़ाई की और वीरगति को प्राप्त हुईं। आज भी उन्हें कर्नाटक की सबसे बहादुर महिला के नाम से याद किया जाता है।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा ज़रूर होती है। आपने शायद ही किसी ऐसे भारतीय के बारे में सुना होगा जो झांसी की रानी के बहादुरी भरे कारनामे सुनते-सुनते न बड़ा हुआ हो। झांसी की रानी सन 1857 के विद्रोह में शामिल रहने वाली प्रमुख शख्सियत थीं। रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी और वह अपनी वीरता के किस्सों को लेकर किंवदंती बन चुकी हैं।
बेगम हजरत महल
बेगम हजरत महल 1857 के विद्रोह के सबसे प्रतिष्ठित चेहरों में से एक हैं। बेगम हजरत महल की हिम्मत का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने मटियाबुर्ज में जंगे-आज़ादी के दौरान नजरबंद किए गए वाजिद अली शाह को छुड़ाने के लिए लार्ड कैनिंग के सुरक्षा दस्ते में भी सेंध लगा दी थी। उन्होंने लखनऊ पर कब्ज़ा किया और अपने बेटे को अवध का राजा घोषित किया। इतिहासकार ताराचंद लिखते हैं कि बेगम खुद हाथी पर चढ़ कर लड़ाई के मैदान में फ़ौज का हौसला बढ़ाती थीं।
ऐनी बेसेंट
थियोसोफिकल सोसाइटी और भारतीय होम रूल आंदोलन में अपनी विशिष्ट भागीदारी निभाने वाली ऐनी बेसेंट का जन्म 1 अक्टूबर, 1847 को तत्कालीन यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड के लंदन शहर में हुआ था। भारत आने के बाद भी ऐनी बेसेंट महिला अधिकारों के लिए लड़ती रहीं। महिलाओं को वोट जैसे अधिकारों की मांग करते हुए ऐनी बेसेंट लागातार ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखती रहीं। भारत में रहते हुए ऐनी बेसेंट ने स्वराज के लिए चल रहे होम रूल आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
भीकाजी कामा
भीकाजी कामा को उनके प्रेरक और क्रांतिकारी भाषणों के लिए तथा भारत और विदेश दोनों में लैंगिक समानता की वकालत करने के लिए जाना जाता है। एक वरिष्ठ नेता की तरह इन्होंने कुछ महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की। 22 अगस्त 1907, स्टटगार्ट, जर्मनी में अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट सम्मेलन में, कामा ने ध्वज फहराया जिसे उन्होंने आजादी का प्रथम ध्वज कहा।
सुचेता कृपलानी
भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल रहने वाली सुचेता गांधीजी के करीबियों में से एक थीं। उस दौरान वे कई भारतीय महिलाओं के लिए रोल मॉडल रहीं और स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के लिए उन्हें प्रेरित करने में सफल रहीं। इन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता संग्राम में तथा 1946-47 में विभाजन के दंगों के दौरान सांप्रदायिक तनाव शमन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय संविधान सभा में ‘वंदे मातरम’ भी गाया था।
सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू कई महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं। ‘भारत कोकिला’ के नाम से प्रख्यात श्रीमती नायडू ने एक उत्साही स्वतंत्रता कार्यकर्ता और एक कवि के रूप में सन 1930-34 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया था। श्रीमती नायडू 1905 में स्वतंत्र भारत की पहली महिला गवर्नर बनी। इनकी अंग्रेजी में कविताओं के संग्रह आज भी महत्वपूर्ण भारतीय लेखन में मिलते है।
अरुणा आसफ अली
कांग्रेस पार्टी की सक्रिय सदस्य रह चुकीं अरुणा आसफ अली न सिर्फ देख की स्वतंत्रता के लिए लड़ीं बल्कि तिहाड़ जेल के राजनैतिक कैदियों के अधिकारों की लड़ाई भी लड़ी। उन्होंने नमक सत्याग्रह में भाग लिया और लोगों को अपने साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उनकी लड़ाई के जज़्बे के चलते उन्हें कैद कर लिया गया था। लेकिन उन्हें जेल की दीवारें भी अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ने से नहीं रोक पाई और उन्होंने वहां रह कर कैदियों की स्थिति को सुधारने के लिए तिहाड़ जेल के अंदर ही विरोध प्रदर्शन व हड़तालें की, जिसके कारण ही तिहाड़ के कैदियों की हालत में सुधार आया।
कमला नेहरू
कमला विवाह के बाद जब इलाहाबाद आईं तो एक सामान्य कम उम्र की नई नवेली दुल्हन भर थीं लेकिन समय आने पर यही शांत स्वाभाव की महिला लौह स्त्रीव साबित हुई, जो धरने-जुलूस में अंग्रेजों का सामना करती, भूख हड़ताल करती और जेल की पथरीली धरती पर सोती थीं। नेहरू के साथ-साथ कमला नेहरू और फ़िर इंदिरा की प्रेरणाओं में देश की आज़ादी ही सर्वोपरि थी. कमला नेहरू ने स्वतंत्रता संग्राम में अपने पति जवाहरलाल नेहरू का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया। असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर शिरकत की थी।
डॉ. लक्ष्मी सहगल
पेशे से डॉक्टर लक्ष्मी सहगल ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर प्रमुख भूमिका निभाई थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अटूट अनुयायी के तौर पर वे इंडियन नेशनल आर्मी में शामिल हुईं थीं। उन्हें वर्ष 1998 में पद्म विभूषण से नवाजा गया था।
दुर्गा बाई देशमुख
दुर्गा बाई देशमुख महात्मा गांधी के विचारों से बेहद प्रभावित थीं। उन्होंने महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया व भारत की आजादी में एक वकील, समाजिक कार्यकर्ता, और एक राजनेता की सक्रिय भूमिका निभाई।