GDP में 13.5% उछाल के क्या हैं मायने, जानिए हमें खुश होना चाहिए या 'खतरा' अभी टला नहीं है?
क्या वाकई जीडीपी में 13.5 फीसदी की ग्रोथ खुश होने वाली बात है? क्या ये कहा जा सकता है कि देश का विकास हो रहा है? आंकड़ों का गणित समझेंगे तो तस्वीर खुद-ब-खुद साफ हो जाएगी.
भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर लौट रही है. चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून में जीडीपी 13.5 फीसदी बढ़ी है. केंद्रीय सांख्यिकी संगठन सीएसओ की तरफ से जारी ये आंकड़े बहुत ही राहत देने वाले हैं. इन आंकड़ों को देखकर अधिकतर लोगों को एक खुशी सी हो रही है, क्योंकि अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है. पिछली तिमाही में यह आंकड़ा सिर्फ 4.1 फीसदी था, लेकिन क्या वाकई जीडीपी में 13.5 फीसदी की ग्रोथ खुश होने वाली बात है? यहां एक सवाल उठता है कि इस ग्रोथ का मतलब ये समझा जा सकता है कि खतरा अब टल गया है? या ग्लोबल मंदी भारत के लिए एक बड़ा खतरा बनकर इंतजार कर रही है? आइए समझते हैं जीडीपी में 13.5 फीसदी ग्रोथ के मायने.
कुछ मायनों में जीडीपी का उछाल खुशखबरी है
अगर बात दुनिया की करें तो इन दिनों तमाम देश महंगाई से जूझ रहे हैं. ऐसे में दुनिया के बहुत से देशों की अर्थव्यवस्था में रिकवरी नहीं दिखाई दे रही है. अमेरिका में तो मंदी आना लगभग तय हो चुका है, वहां पिछली दो तिमाही से अर्थव्यवस्था में गिरावट देखने को मिल रही है. ब्रिटेन में भी मार्च तिमाही में अर्थव्यवस्था में गिरावट थी और जून में भी गिरावट के ही संकेत मिल रहे हैं. ऐसे में जब दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में गिरावट आ रही है, तो भारत की जीडीपी में 13.5 फीसदी की ग्रोथ दिखना खुशखबरी जैसा ही है. अच्छी बात ये भी है कि यह अब तक की दूसरी सबसे ऊंची ग्रोथ है. वहीं पिछली 4 तिमाही में सबसे बड़ी ग्रोथ है. पिछले साल इसी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 20.1 फीसदी थी.
लेकिन उम्मीद से कम है ये ग्रोथ
भले ही 13.5 फीसदी की जीडीपी ग्रोथ खुशी की बात है, लेकिन यह आंकड़ा अनुमान से कम है. अर्थशास्त्रियों ने अनुमान लगाया था कि यह आंकड़ा 14 फीसदी से अधिक ही रहेगा. रिजर्व बैंक के अनुमान के मुताबिक इसे 16.2 फीसदी के करीब होना चाहिए था. वहीं एसबीआई ने जीडीपी में 15.7 फीसदी ग्रोथ रहने का अनुमान लगाया था. अब एक बड़ा खतरा ये खड़ा हो गया है कि रिजर्व बैंक ने पूरा साल के लिए 7.2 फीसदी का जो अनुमान लगाया था, वह भी शायद ही हासिल हो पाए. अगली तीन तिमाही में रिजर्व बैंक का जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 6.2 फीसदी, 4.1 फीसदी और 4 फीसदी है.
तो क्या ये कहना सही है कि विकास हो रहा है?
अगर बात किसी देश के विकास की करें तो बेशक उसमें जीडीपी का एक अहम रोल होता है, लेकिन सिर्फ जीडीपी के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि विकास हो रहा है. जीडीपी से सिर्फ सामान की खरीद-बिक्री का आंकड़ा सामने आता है, इससे यह नहीं पता चलता कि लोग किस हालत में रह रहे हैं. जीडीपी यह नहीं बताता कि किसी देश के लोगों की सेहत कैसी है और उनके वेलफेयर के लिए क्या काम हो रहा है. जैसे आर्थिक गतिविधियां तेजी से बढ़ती हैं तो जीडीपी बढ़ती है, लेकिन इन गतिविधियों की वजह से बहुत सारा प्रदूषण भी बढ़ता है. इस प्रदूषण का लोगों की सेहत पर बुरा असर होता है, लेकिन जीडीपी में उसका कोई जिक्र नहीं होता. ये भी मुमकिन है कि लोग अधिक काम कर रहे हों, जिससे जीडीपी बढ़ी है. ऐसे में जीडीपी से आप ये नहीं जान सकते हैं कि लोगों को आराम करने का वक्त और परिवार के साथ खुशियां बांटने का वक्त मिल रहा है या नहीं. जीडीपी से यह पता नहीं चल सकता कि लोग खुश हैं या नहीं. ऐसे में जीडीपी को विकास का पैमाना नहीं, बल्कि सिर्फ एक अहम हिस्से की तरह ही देखा जा सकता है.
एक बार ये भी समझ लीजिए कि जीडीपी होती क्या है
जीडीपी यानी ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट किसी भी देश में उत्पादन की जाने वाले सभी प्रोडक्ट और सेवाओं का मूल्य होता है, जिन्हें किसी के द्वारा खरीदा जाता है. इसमें रक्षा और शिक्षा में सरकार की तरफ से दी जाने वाली सेवाओं के मूल्य को भी जोड़ते हैं, भले ही उन्हें बाजार में नहीं बेचा जाए. यानी अगर कोई शख्स कोई प्रोडक्ट बनाकर उसे बाजार में बेचता है तो जीडीपी में उसका योगदान गिना जाएगा. वहीं अगर वह शख्स प्रोडक्ट बनाकर उसे ना बेचे और खुद ही इस्तेमाल कर ले तो उसे जीडीपी में नहीं गिना जाएगा. जानकारी के लिए बता दें कि कालाबाजारी और तस्करी जैसी चीजों की भी गणना जीडीपी में नहीं होती.
जीडीपी से दिखती है देश की अर्थव्यवस्था
अगर किसी देश की जीडीपी बढ़ रही है, मतलब उस देश की अर्थव्यवस्था बढ़ रही है. जीडीपी की गणना के वक्त महंगाई पर भी नजर रखी जाती है. इससे सुनिश्चित होता है कि बढ़ोतरी असर में उत्पादन बढ़ने से हुए है, ना कि कीमतें बढने से. जीडीपी बढने का मतलब है कि आर्थिक गतिविधियां बढ़ गई हैं. ये दिखाता है कि रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं.
ब्लूमबर्ग की बात भी डराती है
ब्लूमबर्ग के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत में अर्थव्यवस्था में सुधार की रफ्तार में तेज गिरावट आ सकती है. एक तो रिजर्व बैंक लगातार ब्याज बढ़ाकर कर्ज महंगा कर रहा है, वहीं दूरी ओर दुनिया में मंदी का डर भारतीय बाजार में मांग पर बुरा असर डाल सकता है. यानी जीडीपी के अच्छे आंकड़ों को देखकर ज्यादा खुश होने के बजाय यह सोचने की जरूरत है कि आगे क्या किया जाए. सरकार को इस दिशा में गहराई से सोचने की जरूरत है.