जब लंदन के एयरपोर्ट पर सुधा मूर्ति को कहा गया था 'कैटल क्लास' और बदले में मिला था करारा जवाब
'क्लास का अर्थ आपके पास बहुत सारा पैसा होना नहीं है. पैसा हासिल कर आप अपने आप क्लास भी पा जाएं, यह सोच अब पुरानी हो चुकी है.'
बात साल 2015-16 की है. इन्फोसिस फाउंडेशन (Infosys Foundation) की चेयरपर्सन सुधा मूर्ति (Sudha Murty) लंदन के हीथ्रो इंटरनेशनल हवाई अड्डे पर बेंगलुरु के लिए फ्लाइट पकड़ने के लिए मौजूद थीं. आमतौर पर वह विदेश यात्रा के दौरान साड़ी पहनती हैं लेकिन उस दिन उन्होंने सलवार कमीज पहनी हुई थी. बोर्डिंग अनाउंसमेंट के बाद सुधा मूर्ति भी कतार में शामिल हो गईं, वह कतार बिजनेस क्लास वाले यात्रियों की थी.
सुधा मूर्ति के सामने एक महिला इंडो-वेस्टर्न सिल्क आउटफिट और हाई हील्स पहने खड़ी थी, साथ ही उसके पास Gucci हैंडबैग था. वह काफी अच्छे से तैयार थी. उसके साथ उसकी एक दोस्त भी थी और वह भी सिल्क की महंगी साड़ी, पर्ल नेकलेस, मैचिंग ईयरिंग्स और डायमंड बैंगल्स पहने हुए थी.
ऐसे शुरू हुआ वाकया
अचानक से सुधा मूर्ति के सामने खड़ी महिला ने पलटकर उनकी ओर देखा. उसने पूछा, 'क्या मैं आपका बोर्डिंग पास देख सकती हूं, प्लीज?' सुधा मूर्ति अपना पास उसे दिखाने ही वाली थीं लेकिन तुरंत ही उन्हें ध्यान आया कि यह महिला एयरलाइन इंप्लॉई नहीं दिख रही है. तो उन्होंने पूछा, 'क्यों?' इस पर उस महिला ने कहा, 'यह लाइन केवल बिजनेस क्लास वाले यात्रियों के लिए है.' उसने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ यह बात कही और इकनॉमी क्लास वाली कतार की ओर अंगुली से इशारा करते हुए बोली, 'आपको वहां जाकर खड़ा होना चाहिए.'
यह सुनकर पहले तो सुधा मूर्ति का मन उसे यह बताने का हुआ कि उनके पास बिजनेस क्लास की टिकट है लेकिन फिर अगले ही पल उन्होंने यह विचार छोड़ दिया. वह जानना चाहती थीं कि आखिर उस महिला ने ऐसा क्यों सोचा कि वह बिजनेस क्लास के लिए पात्र नहीं हैं. इसलिए उन्होंने पूछा, 'मुझे वहां क्यों खड़ा होना चाहिए?'
महिला बताने लगी बिजनेस क्लास टिकट के फायदे
उस महिला ने लंबी सांस ली और कहा, 'मैं समझाती हूं. इकनॉमी क्लास और बिजनेस क्लास की टिकट की कीमत में भारी अंतर है. बिजनेस क्लास की टिकट, इकनॉमी क्लास की टिकट के मुकाबले लगभग ढाई गुना महंगी होती है...' तभी उसकी दोस्त ने बीच में बोलते हुए कहा, 'मेरे ख्याल से तीन गुना महंगी.' फिर उस पहले वाली महिला ने आगे कहा, 'बिल्कुल सही. इसलिए बिजनेस क्लास टिकट के साथ कुछ सुविधाएं रहती हैं.'
अब सुधा मूर्ति ने थोड़ी शरारत करने की सोची और इन सबसे अनजान होने का नाटक करते हुए कहा, 'सच में? आप किस तरह की सुविधाओं की बात कर रही हैं?' अब वह महिला थोड़ी तंग होती हुई नजर आई. उसने कहा, 'हमें दो बैग साथ में ले जाने की इजाजत होती है लेकिन आप केवल एक ही बैग साथ ले जा सकते हैं. हम दूसरी, कम भीड़ वाली कतार से फ्लाइट बोर्ड कर सकते हैं. हमें बेहतर खाना और सीट मिलती हैं. हम सीट को एक्सटेंड कर सकते हैं और उन पर लेट सकते हैं. हमें हमेशा टेलीविजन स्क्रीन मिलती हैं और कम यात्रियों के होने के बावजूद चार वॉशरूम रहते हैं.'
इतने में उस महिला की दोस्त बोली, 'हमारे बैग्स के लिए प्रायोरिटी चेक इन फैसिलिटी होती है, जिसका अर्थ है कि अराइवल पर वे पहले आते हैं और हमें उसी फ्लाइट के लिए अधिक फ्रीक्वेंट फ्लायर माइल्स भी मिलते हैं.' इसके बाद उस पहले वाली महिला ने कहा, 'अब जब आप अंतर जान गई हैं तो आप इकनॉमी क्लास वाली लाइन में जा सकती हैं.' इतना होने के बाद सुधा मूर्ति ने कहा, 'लेकिन मैं वहां नहीं जाना चाहती.'
तब सुनने को मिला कैटल क्लास शब्द
इसके बाद वह महिला अपनी दोस्त की ओर पलटी और बोली, 'इन कैटल क्लास लोगों के साथ बहस करना मुश्किल है. स्टाफ को आने दो और वही इसे बताएगा कि कहां जाना है. यह हमारी नहीं सुनने वाली है.' सुधा मूर्ति यह सुनकर नाराज नहीं हुईं, बल्कि 'कैटल क्लास' शब्द ने उन्हें अतीत की एक घटना याद दिला दी. वह किस्सा कुछ यूं है कि एक दिन उन्होंने बेंगलुरु में अपनी होम सिटी में एक डिनर पार्टी का आयोजन किया. कई स्थानीय सिलेब्रिटीज और प्रभावशाली लोग उसमें आए. सुधा मूर्ति अपने कुछ मेहमानों से कन्नड़ में बात कर रही थीं, तभी एक आदमी उनके पास आया और बेहद धीरे व स्पष्ट अंग्रेजी में कहा, 'May I Introduce myself? I am...' सुधा मूर्ति समझ चुकी थीं कि वह आदमी सोचता है कि उन्हें अंग्रेजी समझने में दिक्कत है. उन्होंने मुस्कुराते हुए उस आदमी को कहा, 'आप मेरे साथ अंग्रेजी में बात कर सकते हैं.' तब उस आदमी ने माफी मांगते हुए कहा कि चूंकि उसने सुधा मूर्ति को कन्नड़ में बात करते हुए सुना, इसलिए उसे लगा कि सुधा अंग्रेजी के साथ सहज नहीं हैं. तब सुधा मूर्ति ने उसे बताया कि वह अपनी भाषा में बात करने को शर्मिंदगी नहीं मानती हैं. वह केवल तभी अंग्रेजी में बात करती हैं, जब कोई कन्नड़ नहीं समझ सकता.
इसके बाद एयरपोर्ट पर क्या हुआ
बोर्डिंग के लिए सुधा मूर्ति का नंबर आया और उनके आगे वाली दोनों महिलाओं को लग रहा था कि अब सुधा मूर्ति को दूसरी लाइन में भेजा जाएगा. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. जब सुधा मूर्ति ने अपना बोर्डिंग पास अटेंडेंट को दिखाया तो उसने उनका स्वागत किया और सुधा मूर्ति आगे बढ़ गईं. पहले उन्होंने इस बात को यहीं खत्म करने की सोची लेकिन फिर इरादा बदलकर उचित जवाब देने की सोची. वह उन दोनों महिलाओं के पास वापस आईं और कहा, 'आपने मुझे कैटल क्लास कहा. क्लास का अर्थ आपके पास बहुत सारा पैसा होना नहीं है. दुनिया में पैसा कमाने के बहुत सारे गलत तरीके हैं. आप कंफर्ट और लग्जरी खरीदने के लिए पर्याप्त अमीर हो सकते हैं लेकिन वह पैसा न ही क्लास को बयां करता है और न ही आपको इसे खरीदने में सक्षम बनाता है. मदर टेरेसा एक क्लासी महिला थीं. भारतीय मूल की महान गणितज्ञ मंजुला भार्गव भी एक क्लासी महिला थीं. पैसा हासिल कर आप अपने आप क्लास भी पा जाएं, यह सोच अब पुरानी हो चुकी है.'
कहानी अभी बाकी है....
इस वाकये के घटने के कुछ घंटों बाद एक बार फिर सुधा मूर्ति और वे दोनों महिलाएं आमने सामने थे. ऐसा एक मीटिंग में हुआ, जो एक सरकारी स्कूल के जीर्णोद्धार के लिए इन्फोसिस फाउंडेशन की ओर से फंड पाने के सिलसिले में रखी गई थी. जाहिर है कि सुधा मूर्ति को इन्फोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन के रूप में देख उन महिलाओं के होश उड़ गए थे. दिलचस्प बात यह थी कि वे महिलाएं, जो एयरपोर्ट पर महंगे कपड़ों में, महंगे हैंडबैग और हील्स के साथ थीं, उन्हीं में से एक उस मीटिंग में खादी की साधारण सी साड़ी में और दूसरी एक साधारण सलवार कमीज में थी. सुधा मूर्ति के मुताबिक, 'दरअसल आपके कपड़ों को लेकर आज भी घिसी-पिटी धारणाएं समाज में मौजूद हैं. जैसे लोगों से उम्मीद की जाती है कि वे शादी के दिन सिल्क के शानदार कपड़ों में नजर आएं, उसी तरह सोशल वर्कर्स के बारे में बोरिंग और डल ड्रेसअप की धारणा है. यही कारण था कि वह महिला मीटिंग में सादी, नीरस, खादी की साड़ी में नजर आ रही थी.'
इसके बाद और भी दिलचस्प बात आई सामने
जिस स्कूल के जीर्णोद्धार के लिए फंड की मांग की जा रही थी, उसमें सुधा मूर्ति को कैटल क्लास बोलने वाली महिला की कॉफी एस्टेट के वर्कर्स के बच्चे पढ़ने जाते थे. लिहाजा वही महिला फंड की डिमांड करते हुए प्रेजेंटेशन दे रही थी. स्कूल में कोई सुविधा नहीं थी, न ही स्कूल की छत थी और न ही पीने के लिए पानी. टीचर्स भी नहीं थे. स्कूल में पढ़ने वाले सभी बच्चे एस्टेट वर्कर्स के ही थे और स्कूल को उस महिला के पिता ने सैंक्शन कराया था. सुधा मूर्ति ने इन्फोसिस फाउंडेशन की ओर से उनकी मदद करने से इनकार कर दिया. इसकी वजह उन्होंने यह बताई कि फाउंडेशन ऐसे लोगों की मदद करती है, जिनका कोई गॉडफादर या गॉडमदर न हो, जिसके सिर पर छत न हो, जिसकी आय का कोई निश्चित ठिकाना न हो जैसे कि डेली वेज वर्कर. जबकि एस्टेट वर्कर्स के बच्चों के स्कूल के मामले में, एस्टेट मालिक उनकी मदद करने में सक्षम हैं और यह उनका कर्तव्य है.
अगर फाउंडेशन उनकी मदद करती है तो आगे चलकर यह एक तरह से एस्टेट मालिकों की मदद होगी, जो कि फाउंडेशन की पॉलिसी नहीं है. उस मीटिंग में सुधा मूर्ति ने आगे कहा, 'इन्फोसिस फाउंडेशन की इंटर्नल पॉलिसी है कि वह उन्हीं प्रॉजेक्ट में वंचितों के लिए काम करती है, जहां सभी फायदे सीधे और पूर्ण रूप से केवल वंचितों को मिलें. शायद यह कॉन्सेप्ट कैटल क्लास की समझ से परे है.' इसके बाद उन दोनों महिलाओं को समझ नहीं आया कि कैसे प्रतिक्रिया दें और फिर सुधा मूर्ति ने मीटिंग खत्म कर दी.
(सुधा मूर्ति इन्फोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन होने के साथ-साथ बिजनेसवुमन, एजुकेटर, लेखिका और फिलान्थरोपिस्ट भी हैं. यह अंश सुधा मूर्ति की साल 2017 में पब्लिश हुई किताब 'Three Thousand Stitches: Ordinary People, Extraordinary Lives'से लिया गया है.)