'महिलाएं न करें आवेदन'...जब इस लाइन को पढ़ सुधा मूर्ति ने गुस्से में सीधे JRD टाटा को लिख दिया था खत
1974 का अप्रैल महीना चल रहा था. एक दिन लेक्चर-हॉल परिसर से हॉस्टल के रास्ते में सुधा की नजर नोटिस बोर्ड पर लगे एक विज्ञापन पर पड़ी...
बात साल 1974 की है... उस वक्त इन्फोसिस फाउंडेशन (Infosys Foundation) की चेयरपर्सन सुधा मूर्ति (Sudha Murty), युवा सुधा कुलकर्णी थीं और अपने कॉलेज के दिनों में थीं. वह IISc बेंगलुरु से कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स के फाइनल ईयर में पढ़ रही थीं. तब IISc बेंगलुरु, टाटा इंस्टीट्यूट (Tata Institute) के नाम से जाना जाता था. सुधा पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट में अकेली लड़की थीं और उनके रहने का ठिकाना लेडीज हॉस्टल था. उनके साथ की अन्य लड़कियां विज्ञान के विभिन्न विभागों में रिसर्च कर रही थीं. सुधा मूर्ति के हाथ में अमेरिका में पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप थी और वह वहां जाने के लिए तैयार थीं.
1974 का अप्रैल महीना चल रहा था. एक दिन लेक्चर-हॉल परिसर से हॉस्टल के रास्ते में सुधा की नजर नोटिस बोर्ड पर लगे एक विज्ञापन पर पड़ी. विज्ञापन प्रसिद्ध ऑटोमोबाइल कंपनी टेल्को [अब टाटा मोटर्स] में एक स्टैंडर्ड जॉब के लिए था. विज्ञापन में कहा गया था कि कंपनी को युवा, होनहार, मेहनती और उत्कृष्ट शैक्षणिक पृष्ठभूमि वाले इंजीनियरों की जरूरत है. लेकिन विज्ञापन के नीचे एक लाइन भी लिखी थी- 'महिला उम्मीदवारों को आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है (Lady candidates need not apply).'
गुस्से में हो गईं आगबबूला
युवा सुधा को टेल्को (Tata Engineering and Locomotive Company) की उस नौकरी में कोई दिलचस्पी नहीं थी, यहां तक कि उन्हें भारत में नौकरी में ही दिलचस्पी नहीं थी. लेकिन विज्ञापन के आखिर में लिखी लाइन पढ़कर उन्हें बेहद गुस्सा आया. उन्होंने इस भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने की ठानी. यह पहली बार था, जब सुधा लैंगिक भेदभाव के खिलाफ खड़ी हो रही थीं. संबंधित नौकरी में दिलचस्पी न होने के बावजूद सुधा ने इसे एक चुनौती की तरह देखा. वह अपनी पढ़ाई में अधिकांश पुरुष साथियों की तुलना में काफी अच्छी थीं लेकिन तब उन्हें यह पता नहीं था कि जिंदगी में कामयाब होने के लिए केवल एकेडेमिक एक्सीलेंस काफी नहीं है. टेल्को का जॉब नोटिस पढ़ने के बाद सुधा ने तय कर लिया था कि वह टेल्को के मैनेजमेंट के सर्वोच्च व्यक्ति को कंपनी द्वारा किए जा रहे अन्याय के बारे में सूचित करेंगी.
सीधा JRD टाटा को लिख डाला लेटर
सुधा ने टेल्को के शीर्ष अधिकारी को सूचना देने की ठान तो ली लेकिन तब उन्हें पता नहीं था कि टेल्को किसकी अगुवाई में चल रही है. फिर उन्होंने सोचा कि यह टाटा परिवार का ही कोई व्यक्ति होगा. सुधा को यह मालूम था कि उस वक्त JRD टाटा, टाटा समूह के प्रमुख के पद पर हैं. यह और बात है कि उस समय टेल्को के चेयरमैन सुमंत मूलगांवकर थे. लेकिन चूंकि सुधा को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी तो उन्होंने सीधा JRD टाटा को लेटर लिखने का फैसला किया. उन्होंने एक पोस्टकार्ड लिया और लिखा, 'महान टाटा (टाटा परिवार) हमेशा अग्रणी रहे हैं. वे, वे लोग हैं जिन्होंने भारत में बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर उद्योग जैसे लोहा व इस्पात, रसायन, कपड़ा और लोकोमोटिव को शुरू किया. उन्होंने 1900 से भारत में उच्च शिक्षा की देखभाल की है और उन्होंने ही इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस को स्थापित किया. सौभाग्य से मैं वहां पढ़ती हूं, लेकिन मुझे आश्चर्य है कि टेल्को जैसी कंपनी कैसे लिंग के आधार पर भेदभाव कर रही है.'
10 दिन के अंदर आया एक टेलिग्राम
सुधा ने JRD टाटा को लिखा पोस्टकार्ड पोस्ट कर दिया और इसके बारे में भूल गईं. 10 दिनों के अंदर ही, उन्हें एक टेलिग्राम प्राप्त हुआ. उस टेलिग्राम में कहा गया था कि सुधा को कंपनी के खर्च पर टेल्को की पुणे फैसिलिटी में एक इंटरव्यू के लिए आना है. टेलिग्राम पाकर सुधा हैरान रह गईं. उनके हॉस्टल के साथियों ने उन्हें फ्री में पुणे जाने और सस्ते में पुणे की प्रसिद्ध साड़ियां खरीदने के मौके का फायदा उठाने को कहा. जैसा कि टेलिग्राम में सुधा को कहा गया था, वह इंटरव्यू के लिए पिंपरी कार्यालय में पहुंचीं. इंटरव्यू वाले पैनल में छह लोग थे. जैसे ही सुधा कमरे में एंटर हुईं, उन्होंने किसी को धीरे से यह कहते हुए सुना कि यह वही लड़की है, जिसने JRD को लिखा था. तब तक सुधा इस बात को मन ही मन पक्का कर चुकी थीं कि उन्हें नौकरी नहीं मिलेगी और इस एहसास ने उनके दिमाग से सारे डर खत्म कर दिए. इंटरव्यू शुरू होने से पहले ही सुधा यह मान चुकी थीं कि पैनल पक्षपाती है. लेकिन यह उनकी गलतफहमी थी.
इंटरव्यू में क्या हुआ
जब इंटरव्यू शुरू हुआ तो पैनल ने तकनीकी प्रश्न पूछे और सुधा ने उन सभी का जवाब दिया. इंटरव्यू के दौरान एक बुजुर्ग सज्जन ने स्नेही स्वर में सुधा से कहा, 'क्या आप जानती हैं कि हमने क्यों कहा कि महिला उम्मीदवारों को आवेदन करने की जरूरत नहीं है? इसका कारण यह है कि हमने कभी भी शॉप फ्लोर पर किसी महिला को नियुक्त नहीं किया है. यह को-ऐड कॉलेज नहीं है, यह एक फैक्ट्री है. जहां तक एकेडेमिक्स की बात है, तो आप पहले स्थान पर हैं. हम इसकी सराहना करते हैं, लेकिन आप जैसे लोगों को रिसर्च लैबोरेटरीज में काम करना चाहिए.'
सुधा एक छोटे शहर हुबली की एक युवा लड़की थीं. उन्हें बड़े कारपोरेट घरानों के तरीकों और उनकी मुश्किलों के बारे में तब तक पता नहीं था. बुजुर्ग सज्जन की बात पर उन्होंने जवाब दिया, 'लेकिन आपको कहीं से तो शुरुआत करनी होगी, नहीं तो कोई भी महिला कभी भी आपकी फैक्ट्रियों में काम नहीं कर पाएगी.' आखिरकार एक लंबे इंटरव्यू के बाद सुधा को नौकरी मिल गई और उनकी जिंदगी बदल गई. उन्होंने डेवलपमेंट इंजीनियर के तौर पर पुणे में कंपनी को जॉइन किया. बाद में मुंबई व जमशेदपुर में भी काम किया. सुधा मूर्ति, टाटा मोटर्स (Tata Motors) की पहली महिला इंजीनियर थीं. उन्होंने 1982 में टेल्को को छोड़ा, जब उनके पति एनआर नारायणमूर्ति पुणे में इन्फोसिस की शुरुआत करने जा रहे थे.
सुधा मूर्ति की नजर में JRD टाटा एक महान व्यक्ति
आज कई इंडस्ट्री सेगमेंट्स में शॉप फ्लोर पर महिलाएं काम करती हैं. जब भी सुधा मूर्ति इस बदलाव देखती हैं तो उन्हें JRD टाटा याद आते हैं. वह उन्हें महान व्यक्तियों में रखती हैं. सुधा मूर्ति के मुताबिक, बेहद व्यस्त व्यक्ति होने के बावजूद, JRD ने न्याय की मांग करने वाली एक युवा लड़की द्वारा लिखे गए एक पोस्टकार्ड को महत्व दिया. जबकि उन्हें रोज हजारों लेटर मिलते होंगे. वह उस पोस्टकार्ड को फेंक सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. उन्होंने एक ऐसी अनजान लड़की के इरादों का सम्मान किया, जिसके पास न तो प्रभाव था और न ही पैसा. साथ ही उसे अपनी कंपनी में मौका दिया. JRD टाटा ने ओनली मेल इंप्लॉइज पॉलिसी को बदला.
(यह अंश https://www.tata.com/ पर उपलब्ध साल 2019 में JRD Tata के लिए सुधा मूर्ति द्वारा लिखे गए एक लेख 'Appro JRD' से लिया गया है.)