कौन हैं कमल हासन और इंद्रजीत सिंह को चुनाव में पटखनी देने वाली ये महिलाएं, जिन्हें बीजेपी ने बनाया चुनाव समिति का सदस्य
सबल, मुखर, आत्मविश्वास से भरी और चुनावी मैदान में जादू दिखाने वाली सुधा यादव और वनाथी श्रीनिवासन को बीजेपी ने संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में जगह दी है.
बीजेपी ने अपने संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में इस बार दो महिलाओं को स्थान दिया है. सुधा यादव और वनाथी श्रीनिवासन अब आगामी लोकसभा चुनावों में बीजेपी के लिए रणनीतियां तैयार करती दिखाई देंगी. अब तक सिर्फ सुषमा स्वराज को ही इसमें जगह मिली थी. उनके बाद यह दूसरी बार है कि एक साथ दो महिला इस बोर्ड और समिति का हिस्सा बनी हैं.
आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने अपनी तैयारियां अभी से शुरू कर दी हैं और पार्लियामेंट्री बोर्ड और चुनाव समिति में बड़ा फेरबदल किया है.
कौन हैं सुधा यादव
सुधा यादव पूर्व लोकसभा सदस्य और वर्तमान में बीजेपी की नेशनल सेक्रेटरी हैं. 2004 में वह बीजेपी के टिकट पर हरियाणा के महेंद्रगढ़ से जीतकर लोकसभा पहुंची थीं. लेकिन उनकी कहानी बस इतनी नहीं है. उन्होंने राजनीति में आने का फैसला अपने जीवन की सबसे कठिन और चुनौतीपूर्ण घड़ी में किया था.
सुधा यादव के पति सुखबीर यादव BSF में डिप्टी कमाडेंट थे. 1999 में कारगिल की जंग के दौरान पर पाकिस्तानी घुसपैठियों को रोकने की कोशिश में शहीद हो गए. सुधा पर मानो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा.
सुधा आईआईटी रूढ़की से पढ़ी हुई हैं. हरियाणा सरकार ने युद्ध में शहीद हुए लोगों की विधवाओं के लिए विशेष कोटे के तहत सुधा यादव को लेक्चरर की नौकरी दे दी. उनका जीवन चल रहा था. तभी बीजेपी ने उनसे अपनी पार्टी के टिकट पर महेंद्रगढ़ से चुनाव लड़ने का निवेदन किया. वहां उनके विरोधी थे राव इंद्रजीत सिंह, जो खुद एक शाही घराने से ताल्लुक रखते थे.
सुधा ने साफ इनकार कर दिया. उनकी जिंदगी में पहले ही काफी उथल-पुथल थी. पति की मौत के बाद परिवार एक तरह से बिखर सा गया था. उन पर दो छोटे बच्चों की जिम्मेदारी थी. साथ ही सुधा के पीछे कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं थी. उन्हें सियासत का कोई अनुभव नहीं था.
लेकिन फिर कुछ ऐसे हालात बने कि उन्होंने बीजेपी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. प्रधानमंत्री मोदी 2004 के चुनाव में हरियाणा के चुनाव प्रभारी थे. सुधा को राजनीति में लाने का काफी श्रेय उन्हें जाता है.
आखिरकार महेंद्रगढ़ से बीजेपी के टिकट पर सुधा चुनावी मैदान में तो उतर आईं, लेकिन उनके सामने सबसे बड़ा संकट पैसों का था. बीजेपी भी तब इतनी समृद्ध पार्टी नहीं हुआ करती थी. सुधा के सामने मैदान में जो शख्स था, वह न सिर्फ सत्तासीन पार्टी से ताल्लुक रखता था, बल्कि खुद भी शाही परिवार से आता था.
आखिरकार मोदी के आह्वान पर बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने चुनाव के लिए चंदा जुटाना शुरू किया और देखते ही देखते साढ़े सात लाख रुपए जमा हो गए. सुधा यादव की चुनावी रैलियों में खूब भीड़ जमा हुई. जनता बदलाव चाह रही थी. सुधा के रूप में उन्हें बदलाव की किरण दिखाई दी. उन्होंने सुधा यादव को भारी बहुमत से जिताया. राव इंद्रजीत सिंह करीब डेढ़ लाख वोटों से हारे थे. लेकिन 2004 के चुनावों वाला जादू वो फिर कभी दोहरा नहीं सकीं.
कौन हैं वनाथी श्रीनिवासन
52 वर्षीय वनाथी श्रीनिवासन तमिलनाडु की रहने वाली हैं और पेश से वकील व राजनेता हैं. 1993 से चेन्नई हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रही हैं. तमिलनाडु विधानसभा की सदस्य वनाथी वर्तमान में बीजेपी की महिला विंग की नेशनल प्रेसिडेंट हैं. तमिलनाडु विधानसभा में बीजेपी की महिला सदस्यों की संख्या सिर्फ 4 है और वनाथी उनमें से एक हैं.
वनाथी ने अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत स्टूडेंट पॉलिटिक्स से की और वह भारतीय विद्यार्थी परिषद की सदस्य रहीं. उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से लॉ में मास्टर्स किया है. उनके पति के परिवार का संघ के साथ जुड़ाव पुराना है. वनाथी की उपलब्धियों की सूची में सबसे बड़ी उपलब्धि ये है कि उन्होंने तमिलनाडु के पिछले विधानसभा चुनावों में दक्षिण के जाने-माने अभिनेता और राजनीतिज्ञ कमल हासन को हरा दिया था.
वनाथी सिर्फ राजनीतिज्ञ ही नहीं हैं, बल्कि सामाजिक न्याय और बराबरी के मुद्दों पर भी काफी मुखर होकर बोलती रही हैं. खासतौर पर महिलाओं और ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों के लिए उन्होंने काफी लड़ाई लड़ी है. उनका एक एनजीओ है, जिसका नाम है थमराई शक्ति ट्रस्ट. यह संगठन महिलाओं के विकास और बराबरी के लिए काम करता है.
वनाथी कई बार अपनी पार्टी की विचारधारा के खिलाफ जाकर भी कुछ मुद्दों पर स्टैंड लेती रही हैं. 2014 में उन्होंने ट्रांसजेंडर के मुद्दे पर एक किताब लिखी. पार्टी का रुख इस विषय पर तब तक साफ नहीं था. एक तरह से देखा जाए तो पारंपरिक सोच की वकालत करने वाली बीजेपी इसके खिलाफ ही थी. लेकिन वनाथी ने अपना नजरिया साफ कर दिया.
उन्होंने कहा कि ट्रांसजेंडर समुदाय को भी समाज में सम्मान और बराबरी से जीने का हक है. हमें कोई अधिकार नहीं कि हम उन्हें जज करें या उनके बारे में फैसला सुनाए. वनाथी ट्रांसजेंडर महिला खिलाडि़यों के सेक्स डिटरमिनेशन टेस्ट के खिलाफ भी कैंपेन करती रही हैं.
Edited by Manisha Pandey