बाढ़ क्यों आती है?
2019 के दौरान किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि पिछले 60 वर्षों में, भारत के कई क्षेत्रों में, खास तौर से मध्य भारत में बारिश और बाढ़ की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है. हालांकि ऐसी घटनाओं के बजाय, बारिश और बाढ़ अधिक आने वाले इलाकों का विस्तार हुआ है.
अभी सोशल मीडिया पर बेंगलुरु में आई बाढ़ की तस्वीरें वायरल हो रही हैं. बताया जा रहा है कि इस अचानक आई बाढ़ से शहर का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है और वहां काम कर रही कंपनियों को अच्छा-खासा नुकसान हुआ है. बेंगलुरु में आई यह बाढ़, भारत के शहरों में आने वाली पहली बाढ़ नहीं है. देश के विभिन्न हिस्से बाढ़ से प्रभावित होते रहते हैं और इसमें बड़े-बड़े शहर भी शामिल हैं. जब बाढ़ आती है तो जान-माल की काफी क्षति होती है. उतरता हुआ पानी कई सवाल छोड़े जाता है, जैसे- बाढ़ आखिर क्यों आती है?
बाढ़ तब आती है जब पानी समुद्रों, महासागरों, तालाबों, झीलों, नहरों, या नदियों समेत तमाम जल निकायों से ओवरफ्लो हो जाता है, जिससे सूखी जमीन जलमग्न हो जाती है. बाढ़ खास तौर से भारत में सबसे आम और गंभीर प्राकृतिक मौसमी घटना है, जिससे जीवन, संपत्ति और आजीविका का भारी नुकसान होता है.
2021 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, पिछले 50 सालों में भारत में मौसम से संबंधित आकस्मिक मृत्यु, में बाढ़ और चक्रवातों से सबसे अधिक जान गयी है. सालाना होने वाली मौसम संबंधित मृत्यु में लगभग 75% मृत्यु इन दोनों घटनाओं के कारण होती है.
आपदाओं की शुरुआती पहचान और चेतावनी देने की प्रणाली के साथ आपदा प्रबंधन में विकास के बावजूद, पिछले दो दशकों में ओडिसा, असम, बिहार, केरल, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में इन आपदाओं के कारण मृत्यु दर बहुत अधिक रही है.
बाढ़ आने का कारण
बाढ़ आने के कई कारण हो सकते हैं. बाढ़ पांच प्रकार की होती हैं, फ्लैश फ्लड यानि अचानक आने वाली बाढ़. तटीय बाढ़, नदी (फ्लूवियल) बाढ़, तालाब (प्लवियल) बाढ़, और शहरी बाढ़.
फ्लैश फ्लड तेजी से बढ़ने वाली ऐसी बाढ़ होती है जिसका अनुमान नहीं होता है. अचानक भारी बारिश या हिमनद झील में विस्फोट के कारण बहते पानी का स्तर बढ़ जाता है. तटीय बाढ़ तब आती है जब ज्वार के साथ भारी तूफान के कारण समुद्र का जल स्तर बढ़ जाता है. इस वजह से समुद्र का पानी तट से सटे सामान्य रूप से सूखे इलाके में आ जाता है. नदियों में बाढ़ आमतौर पर तब आती है जब नदियां, लंबे समय तक भारी वर्षा के साथ बढ़ जाती हैं. ऐसी स्थिति में नदी के किनारे और आसपास के क्षेत्रों में बाढ़ आती है. तालाब या प्लवियल बाढ़ समतल क्षेत्रों में तब आती है जब लंबे समय तक बारिश होने के बाद पानी की निकासी नहीं हो पाती. नदी या नहर के माध्यम से पानी निकल नहीं पाता और जमीन में पानी अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है.
शहरी बाढ़ तब आती है जब किसी शहर का सीवेज और नहर तटीय बाढ़, नदी की बाढ़ या भारी बारिश के कारण आए पानी के तेज प्रवाह को संभाल नहीं पाते हैं. ज़्यादातर मामलों में, शहरी बाढ़ का कारण शहरों में जल निकासी की ख़राब व्यवस्था और निचले इलाकों जैसे झील के किनारे पर अतिक्रमण है.
बाढ़ की गंभीरता को निर्धारित करने वाले वायुमंडलीय कारण
2019 के दौरान किए गए एक सर्वे अध्ययन में पाया गया कि पिछले 60 वर्षों में, भारत के कई क्षेत्रों में, खास तौर से मध्य भारत में बारिश और बाढ़ की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है. इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस के सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक एंड ओशनिक स्टडीज (CAOS) से अरिंदम चक्रवर्ती एक लेख में बताते हैं, ‘1980 के दशक के बाद एक ही समय में बहुत अधिक बारिश होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं. यदि हम प्रति वर्ग किलोमीटर में, अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्रों को जोड़ दें, तो हम देख सकते हैं कि ऐसे क्षेत्रों का विस्तार हुआ है. इस अध्ययन के लेखकों में से एक चक्रवर्ती आगे कहते हैं कि यह जानकारी आपदा को कम करने और उसके प्रबंधन के लिए प्रासंगिक है. उन्हें लगता है कि वेदर मॉडल का परीक्षण यह देखने के लिए किया जाना चाहिए कि क्या इनके सहारे ऐसी घटनाओं की भविष्यवाणी की जा सकती है.
2020 के एक और हालिया प्रकाशन में, जिसमें 2019 के दौरान किए गए अध्ययन को विस्तार से बताया गया है. इसमें पिछले दो दशकों में हुए कुछ सबसे विनाशकारी बाढ़ की जानकारी दी गयी है. अगस्त 2018 में केरल की बाढ़, दिसंबर 2015 में चेन्नई की बाढ़, जून 2013 में उत्तराखंड की बाढ़, जून 2010 में लेह की बाढ़, और 2005 में मुंबई की बाढ़, की वजह एक ही थी. ये सभी घटनाएं स्थानीय और अस्थायी रूप से हुईं बड़े पैमाने पर भारी बारिश के कारण हुई.
किए गए शोधों से पता चलता है कि इन कारणों के अलावा चक्रवातों का आकार और उनके आने का समय बाढ़ की तीव्रता को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इस वर्ष क्लाइमेट रेजिलिएशन एंड सस्टेनेबिलिटी के एक अध्ययन में कहा गया है कि भविष्य में अम्फान जैसे सुपर साइक्लोन (जो 2020 में भारत और बांग्लादेश में आए थे) एक मीटर से अधिक की तूफानी बाढ़ का कारण बन सकते हैं. इसका मतलब यह होगा कि ऐसी बाढ़ों से प्रभावित लोगों की संख्या अम्फान से प्रभावित लोगों की तुलना में 2.5 गुना अधिक होगी.
इस साल जून 2022 के एक और हालिया अध्ययन से पता चलता है कि बाढ़ की तीव्रता का अनुमान लगाने में चक्रवात के आने का समय भी अहम है. शोध से पता चलता है कि मानसून से पहले आने वाले चक्रवातों में शुष्क भूमि के कारण गंभीर बाढ़ की संभावना कम होती है.
‘जब चक्रवात मानसून के साथ ओवरलैप करते हैं या मानसून के ठीक बाद आते हैं, तो बाढ़ आने की संभावना बढ़ जाती है. चक्रवात फैलिन इसका एक उदाहरण है. इस अध्ययन से जुड़ें लेखक, आईआईटी-गांधीनगर के विमल मिश्रा, मोंगाबे-इंडिया के एक लेख में बताते हैं, ‘समय के साथ जब आगे बढ़ते हैं, जैसे कि अक्टूबर के महीने में, बाढ़ की संभावना अधिक होती है. चक्रवात भारी बारिश लेकर आता है, इससे बाढ़ आने की संभावना होती है. क्योंकि मानसून की बारिश से भूमि में पहले से ही बहुत अधिक नमी जमा हो जाती है.’
हालांकि, यह स्पष्ट है कि बाढ़ की तीव्रता को प्रभावित करने में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की बड़ी भूमिका है. ये दोनों मानवजनित चुनौतियां हैं.
मानवीय गतिविधियां जिसके कारण आती है बाढ़
जलवायु परिवर्तन के अलावा, कई प्रकार से भूमि का दोहन, बाढ़ के प्रमुख कारण हैं. उदाहरण के लिए, हिमाचल प्रदेश की स्फीति घाटी में अवैध रेत खनन इसके किनारों को बर्बाद कर रहा है और स्फ़ीति नदी के प्रवाह को प्रभावित कर रहा है, नतीजतन घाटी के खेतों में पानी भर गया है. अगस्त 2020 में, महाराष्ट्र के पूर्वी विदर्भ क्षेत्र में अनुचित बांध प्रबंधन से इस क्षेत्र के चार जिलों में बाढ़ आ गई और लगभग 90 हेक्टेयर खेती की जमीन में बड़े पैमाने पर फसल का नुकसान हुआ. अफसोस की बात है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है और न ही ऐसी समस्याओं से जूझने वाला यह भारत का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां किसान और खेतिहर मजदूर तबाह हो रहे हैं.
लगभग उसी समय, कर्नाटक के कोडागु में भारी बारिश हुई जिसके कारण बाढ़ और भूस्खलन हुआ. इसका कारण अवैज्ञानिक तरीके से भूमि का दोहन है, जैसे कि खाई खोदना, रेल लाइनों, बिजली लाइनों और राजमार्गों जैसे गलियारों का विकास और रिसोर्ट आदि का निर्माण.
मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद और बेंगलुरु जैसे प्रमुख शहरों में, हरे-भरे स्थानों (जैसे आर्द्रभूमि, दलदल और मैंग्रोव वन) का नुकसान, शहरी आवासीय और कार्यालयी स्थानों में झीलों और तालाबों का चयन, गाद और नालों का रखरखाव ठीक ढंग से न होना बाढ़ का प्रमुख कारण है. गोवा में बुरी तरह से किए गए राजमार्गों का डिजाइन और इनके बुनियादी ढाचें की परियोजनाओं ने स्थानीय जल निकास को बाधित कर दिया है, जो बाढ़ का कारण है.
ख़राब तरीके से डिजाइन किए गए शहरी विस्तार और निचले इलाकों में आवासीय अतिक्रमण, जहां पानी इकठ्ठा होने की संभावना होती है, शहरी बाढ़ की समस्या को बढ़ाते हैं.
आगे का रास्ता
जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए व्यापक रणनीति के अलावा भारत को अच्छे और मजबूत बाढ़ प्रबंधन की आवश्यकता है. इनमें न केवल केरल और असम जैसे बार-बार बाढ़ की संभावना वाले क्षेत्रों में बेहतर आपदा प्रबंधन शामिल होना चाहिए, बल्कि बाढ़ के मैदानों का उपयोग करने के नियम भी शामिल होने चाहिए. इसके अलावा ख़ास तौर से तटीय शहरों के विस्तार को प्राकृतिक पारिस्थितिक और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बेहतर ढंग से डिजाइन करने की आवश्यकता है.
इन आवश्यकताओं और बफर जोन के महत्व के बारे में जानने के बावजूद, कम लागत वाले आवास के लिए मुंबई में साल्ट पैन खोलने की परियोजना प्रस्तावित की गई है. कभी आर्द्र भूमि माने जाने वाले ये सॉल्ट पैन न केवल मुंबई में बाढ़ के लिए महत्वपूर्ण प्राकृतिक अवरोध हैं, बल्कि क्षेत्र की नाजुक और संवेदनशील पारिस्थितिकी का भी हिस्सा हैं. ऐसी विकासात्मक योजनाओं के अलावा, पुणे की प्रस्तावित नदी कायाकल्प जैसी परियोजना, अवैज्ञानिक रूप से ऐसी ही समस्या से ग्रस्त है. इसी तरह, बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने वाला भारत सरकार का नदी कायाकल्प कार्यक्रम, शहरी अतिविकास, प्रदूषण और नदी-तट के कटाव मुद्दों का सामाधान करने में असफल हैं, जो सूखती और ख़त्म होती नदियों के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है.
हालांकि बाढ़ को रोकने के लिए कुछ प्रयास किए गए हैं. चेन्नई में पल्लिकरनई मार्श, पुडुचेरी केनी कुलम और अडयार नदी पर केंद्रित संरक्षण परियोजनाएं बाढ़ और सूखे दोनों के लिहाज से महत्वपूर्ण कदम हैं. दलदल, आर्द्रभूमि और झीलें भारी वर्षा की अवधि के दौरान पानी को संग्रहित करने के लिए स्पंज की तरह काम करती हैं. बारिश की ऐसी घटनाओं के बाद पानी की निकासी के लिए स्वच्छ, मुक्त बहने वाली नदियां और जलमार्ग का नेटवर्क खास है.
वर्ष 2019 के दौरान इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ह्युमन सेटलमेंट के वैज्ञानिकों द्वारा उपग्रह सेंटिनल -1 और ओपन-सोर्स टूल गूगल अर्थ इंजन से स्वतंत्र रूप से उपलब्ध तस्वीरों का उपयोग करके असम और बिहार में बाढ़ वाले क्षेत्रों के मानचित्र विकसित किए गए थे. इस तरह के प्रयास, खोज और बचाव मिशन और आपदा तैयारियों के लिए अहम हो सकते हैं. हाल ही में, भारत में बाढ़ की घटनाओं और मौसम संबंधी आंकड़ों की डिजिटल सूची अब सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराई गई है ताकि आपदाओं के पूर्वानुमान के लिए बेहतर मॉडल बनाने में मदद मिल सके.
प्राकृतिक बाढ़ सुरक्षा प्रणालियों को पुनर्जीवित करने और इसके आपदा पूर्वानुमान, बचाव कार्यों को मजबूत करके और वैज्ञानिक तकनीकों को लागू करने से बाढ़ के प्रभाव को कम किया जा सकता है.
(यह लेख मुलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)
बैनर तस्वीर: गुवाहाटी में एक राफ्ट पर स्थित दुकान. बाढ़ खास तौर से भारत में सबसे आम और गंभीर प्राकृतिक मौसमी घटना है, जिससे जीवन, संपत्ति और आजीविका का भारी नुकसान होता है. तस्वीर - नबरुन गुहा