दादा की सीख को पोती ने जिंदगी में उतारा, 25000 से अधिक बेघर और असहायों की मदद के लिए बढ़ाया हाथ
समाज में बहुत से ऐसे भी लोग हैं जो बिना किसी सरकारी सपोर्ट और सिस्टम के बेबस और असहाय लोगों की मदद के लिए आगे आते हैं. इसमें से एक नाम डॉ. गीतांजलि चोपड़ा का है. वह Wishes and Blessings नाम का एक एनजीओ चलाती हैं.
साल 2020 में देशभर में 776 लोगों की मौत ठंड से जुड़े कारणों से हुई थी. वहीं, अगर केवल ठंडी हवाओं या शीतलहर को मौत की वजह मानें तो ऐसे कम से कम 152 लोगों की मौत हुई थी, जो कि गर्म हवाओं या लू से मरने वालों की तुलना में 76 फीसदी अधिक है.
ये आंकड़े केवल कुछ सालों के नहीं हैं. भारतीय मौसम विभाग (IMD) के साल 1980 से 2018 तक के आंकड़ों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि इन पिछले 38 सालों में से 23 सालों में लू से अधिक मौतें शीतलहर में हुई हैं.
यह दर्शाता है कि ठंड में ऐसे लोगों की मौतें होती हैं, जो कि गरीब, बेबस, असहाय और बेसहारा होते हैं. Global Homelessness Statistics, 2022 के आंकड़ों के अनुसार, देश में बेघर लोगों की संख्या 17 लाख से भी अधिक है. ऐसे लोगों के लिए केंद्र से लेकर राज्य और स्थानीय प्रशासन तक तमाम तरह की योजनाएं चलाते हैं, शेल्टर होम बनाते हैं, लेकिन पूरी व्यवस्था केवल और केवल मूकदर्शक बनकर ऐसे असहाय लोगों की मौत देखती रह जाती है.
हालांकि, समाज में बहुत से ऐसे भी लोग हैं जो बिना किसी सरकारी सपोर्ट और सिस्टम के ऐसे बेबस और असहाय लोगों की मदद के लिए आगे आते हैं. इसमें से एक नाम डॉ. गीतांजलि चोपड़ा का है. वह Wishes and Blessings नाम का एक एनजीओ चलाती हैं.
इस साल की ठंड में उन्होंने दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और झारखंड में 3000 से अधिक लोगों में 4000 से अधिक गर्म कपड़े बांटे हैं. वहीं, पिछले 8 साल के दौरान उन्होंने अपने विंटर रिलीफ प्रोजेक्ट के तहत 25 हजार से अधिक बेघर और असहाय लोगों को मदद की है.
ऐसे हुई शुरुआत
डॉ. चोपड़ा ने Wishes and Blessings की शुरुआत साल 2014 में की थी. इससे पहले वह मीडिया फील्ड के साथ ही सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (CPR) में 5 साल तक काम किया था.
उन्होंने Wishes and Blessings की शुरुआत एक ब्लाइंड स्कूल से की, जहां वह बचपन से ही अपने दादाजी के साथ जाती थीं. हालांकि, बाद में यह सिलसिला बंद हो गया था. लेकिन जब उनके दादाजी का निधन हो गया, तब वह एक बार फिर से उस स्कूल में पहुंचीं.
वहां मौजूद 90 से लेकर 100 फीसदी तक दृष्टिहीन 150 बच्चों ने उनसे होली खेलने की इच्छा जताई तो डॉ. चोपड़ा ने CPR के अपने ऑफिस के सहयोगियों से आर्थिक मदद मांगी. मार्च, 2014 में बच्चों के साथ होली खेलने के बाद डॉ. चोपड़ा को उनकी जिंदगी का मकसद मिल गया और उन्होंने 25 अप्रैल, 2014 को Wishes and Blessings को रजिस्टर करा लिया.
इसके बाद उनका कारवां बढ़ता गया. आज Wishes and Blessings की मौजूदगी देश के 8 राज्यों में है. इन 8 राज्यों में उनके 20 सपोर्ट सेंटर्स हैं.
उद्देश्य
डॉ. चोपड़ा ने YourStory Hindi से बात करते हुए कहा, 'Wishes and Blessings का उद्देश्य ऐसे लोगों को आपस में जोड़ना है, जिसमें एक तरफ किसी भी कारणवश अपनी इच्छाएं पूरी न कर पाने वाले लोग होते हैं तो वहीं दूसरी तरफ ऐसे लोग होते हैं जो दूसरों के लिए कुछ करना चाहते हैं.'
उन्होंने बताया, 'उदाहरण के तौर पर कुछ लोगों की पढ़ने की इच्छा होती है, किसी को इलाज कराने की जरूरत होती है या किसी की कुछ खाने की इच्छा होती है. वहीं, बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो आर्थिक रूप से सक्षम होते हैं और वे दूसरों के लिए कुछ करना चाहते हैं लेकिन वे इतनी आसानी से दूसरे तरफ के लोगों से कनेक्ट नहीं हो पाते हैं. ऐसे में हम इन दोनों तरफ के लोगों को आपस में जोड़ने का काम करते हैं.'
डॉ. चोपड़ा कहती हैं, 'मेरा यह मानना है कि दुनिया ऐसे लोगों से भरी पड़ी है जिसमें एक तरफ तो लोगों को मदद की जरूरत होती है जबकि दूसरी तरफ मदद करने वाले लोग भी हैं. हमारे पास 700 से अधिक वालंटियर हैं. इसमें स्कूल-कॉलेज जाने वाले छात्रों से लेकर रिटायर्ड लोग तक शामिल हैं.'
2 साल से लेकर 90 साल तक की मदद
डॉ. चोपड़ा बताती हैं, 'हमने डिलीवरी में मदद की है तो उसके साथ हम ओल्ड एज की भी मदद कर रहे हैं. इसका मतलब है कि 2 साल से लेकर 90 साल तक जितने भी लोग हमारे संपर्क में आते हैं और उन्हें मदद की जरूरत होती है, तो हम उनकी मदद करते हैं.'
उन्होंने कहा, 'हम 6 राज्यों में रोजाना 1700 लोगों को तीन टाइम का खाना मुहैया कराते हैं. हमारा अपना ओल्ड एज होम है. हमारा ‘स्ट्रीट टू स्कूल’ सेंटर भी है, जहां हम झुग्गी-झोपड़ियों और सड़कों पर रहने वाले बच्चों को स्कूल जाने के लिए तैयार करते हैं.'
वह बताती हैं, 'हम राहत और आपदा को लेकर भी काम करते हैं. हम तमाम आपदाओं में लोगों की मदद करते हैं. ठंड के दौरान लोगों को गर्म कपड़े बांटते हैं. हम स्किल डेवलपमेंट को लेकर भी काम करते हैं.'
डॉ. चोपड़ा ने बताया, 'हम हैप्पीनेस कॉज पर भी काम करते हैं. इसके तहत हम अलग-अलग तरह की एक्टीविटीज करते हैं. जैसे कि हम दृष्टिहीन बच्चों का जन्मदिन मना लेते हैं और अनाथ बच्चों को पिकनिक या बाहर घूमाने के लिए ले जाते हैं.'