चूल्हा-चौका छोड़ मध्य प्रदेश की ललिता ने शुरू की जैविक खेती, इस बड़े बदलाव के लिए मिल चुका है प्रधानमंत्री पुरस्कार
"ललिता के अनुसार उन्होने जब ऑर्गेनिक खेती के जरिये मिलने वाले बेहद सकारात्मक परिणामों को देखा तो उन्होने इसे उनकी पूरी खेती पर लागू कर दिया। उन्होने अपने खेतों में नींबू, आंवला और केले आदि की फसल को लगाना शुरू किया। ये सभी फसलें पूरी तरह किटाणुनाशकों से मुक्त होती हैं। ललिता आज अपनी ऑर्गेनिक खेती के जरिये 80 हज़ार रुपये महीने कमा रही हैं। इतना ही नहीं ललिता खाना बनाने के लिए बायोगैस और बिजली के लिए सोलर पैनल का भी इस्तेमाल करती हैं।"
भारत में पारंपरिक तौर पर यह देखा गया है कि महिलाएं अक्सर घर के कामों तक ही सीमित रह जाती है। आज इस सोच को लेकर शहरी क्षेत्रों में भले ही बदलाव दिखाई पड़ रहा है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति जस की तस है, फिर भी एक महिला ऐसी हैं जिनकी कहानी कई मायनों में हम सभी के लिए न सिर्फ प्रेरणास्रोत है, बल्कि यह हमें नई सोच के साथ आगे बढ़ते रहने का हौसला भी देती है।
हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश की बाडमर जिले की ललिता मुकती की, जिनका नाम जैविक खेत के दम पर आज पूरा देश जान रहा है। ललिता इस बात पर भी ज़ोर देती हैं कि अगर भारत को सोने की चिड़िया बनाना है तो हम सभी को जैविक खेती की तरफ रुख करना ही पड़ेगा।
पति के साथ की शुरुआत
अपने एक साक्षातकार में ललिता बताती हैं वो शुरुआत में घरेलू जिम्मेदारियों में पूरी तरह बंध चुकी थीं। उनके अनुसार जब बच्चे खुद आत्मनिर्भर हो गए तब उन्हे खुद भी लगने लगा कि कब तक वह सिर्फ चूल्हा चौका करती रहेंगी, वह इससे बाहर निकलना चाहती थीं।
ललिता के अनुसार उनके पति सुरेश खेत में काम के लिए जाते थे और तभी उन्होने भी यह निर्णय किया कि वह खेती के कामों में अपने पति का हाथ बटाएँगी। ललिता सुरेश के साथ काम करते हुए लगातार कृषि की बारीकियाँ सीख रही थीं, तभी उनके मन में कृषि में इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशकों से होने वाली नुकसान को लेकर विचार आया और इसके साथ ही वह इसके विकल्प की तरफ बढ़ना चाहती थीं।
परंपरागत खेती का साथ
कुछ ही दिनों में ललिता को यह समझ आ चुका था कि किस तरह कीटनाशक ना सिर्फ मिट्टी की गुणवत्ता को खराब कर रहे थे, बल्कि इससे किसानों को भी कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ रहा था। इसके बाद ही ललिता ने परंपरागत तरीके से खेती करने की ओर कदम बढ़ाने का निर्णय लिया।
ललिता ने इसके बाद ऑर्गेनिक खेती करने की ठानी और घर पर ही छोटे-छोटे उत्पाद पर इसका प्रयोग शुरू किया। ललिता के अनुसार उन्हे यह समझ आ चुका था कि इसमें कीटनाशकों के जरिये की जाने वाली खेती की तुलना में खर्च में भी काफी बचत है। ललिता ने अपने खेत के छोटे हिस्से में ऑर्गेनिक तरीके से फसल उगाने की शुरुआत कर दी
मिला पहले से बेहतर रिजल्ट
ललिता के अनुसार उन्होने जब ऑर्गेनिक खेती के जरिये मिलने वाले बेहद सकारात्मक परिणामों को देखा तो उन्होने इसे उनकी पूरी खेती पर लागू कर दिया। उन्होने अपने खेतों में नींबू, आंवला और केले आदि की फसल को लगाना शुरू किया।
ये सभी फसलें पूरी तरह किटाणुनाशकों से मुक्त होती हैं। ललिता आज अपनी ऑर्गेनिक खेती के जरिये 80 हज़ार रुपये महीने कमा रही हैं। इतना ही नहीं ललिता खाना बनाने के लिए बायोगैस और बिजली के लिए सोलर पैनल का भी इस्तेमाल करती हैं।
ललिता के इस प्रयास को देखते हुए उन्हे उन महिलाओं की सूची में शामिल किया गया है जो महिलाएं जैविक खेती को लगातार बढ़ावा दे रही हैं। ललिता को उनके इस काम के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। ललिता अब बिना मिट्टी वाली खेती की ओर अपने कदम बढ़ा रही हैं, इसके लिए वो पानी की थैलियों का इस्तेमाल करती हैं।
Edited by Ranjana Tripathi