हॉर्मोन्स के बहाने ‘एक्सरसाइज स्टडी’ से नदारद हैं महिलाएं – स्टडी
एक नई स्टडी के मुताबिक अब एक्सरसाइज से जुड़ी स्टडीज भी महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह ग्रस्त हैं.
महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह कोई नई बात नहीं. दबे शब्दों में ही सही, हेल्थ एक्स्पर्ट भी अब इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि कैसे सेहत से जुड़े रिसर्च और अध्ययनों से महिलाओं को बहुत सिस्टमैटिक तरीके से बरसों तक बाहर रखा गया.
महिलाओं की विशिष्ट बायलॉजिकल संरचना, उनके अलग हॉर्मोन सायकल पर कोई अध्ययन न होने की वजह से यह डॉक्टरों के लिए महिलाओं की बीमारियों को समझना और उसका इलाज करना विशेष चुनौतीपूर्ण रहा है.
लेकिन ऐसा नहीं कि यह बस 200 साल पुरानी बात है और अब ऐसा नहीं होता. एक नई स्टडी यह कह रही है कि दुनिया भर में किस तरह एक्सरसाइज, वर्कआउट आदि से जुड़े अध्ययनों से भी महिलाओं को सिस्टमैटिक ढंग से बाहर रखा जा रहा है. जिसका नतीजा ये हुआ है कि हम ठीक-ठीक डेटा के साथ यह दावा नहीं कर सकते कि फिजिकल एक्टिविटी या एक्सरसाइज महिलाओं के शरीर को पुरुषों से अलग किस तरह प्रभावित करती है.
अमेरिकन यूनिवर्सिटी बीवाईयू (Brigham Young University) के द्वारा की गई यह वृहद स्टडी जरनल ऑफ अप्लायड फिजियोलॉजी (Journal of Applied Physiology) में प्रकाशित हुई है.
यह स्टडी कहती है कि पूरे अमेरिका में एक्सरसाइज को लेकर हुए 90 फीसदी से ज्यादा अध्ययनों में महिलाओं को शामिल नहीं किया जाता है. स्टडी के मुताबिक उन्हें इससे बाहर रखने की वजह महिलाओं का हॉर्मोन सायकल है. अध्ययनकर्ता यह मानते हैं कि पीरियड्स के कारण एक महिला का शरीर पूरे महीने एक अलग किस्म के हॉर्मोनल रोलर कोस्टर राइड से गुजरता है. जिसके चलते एक्सरसाइज के मामले में उनका नियमित रह पाना और यह पता कर पाना थोड़ा चुनौतीपूर्ण होता है कि एक्सरसाइज महिलाओं के शरीर को किस तरह प्रभावित कर रही है.
हालांकि यह स्टडी विभिन्न वर्क आउट स्टडी के डेटा के हवाले से यह भी साबित करने की कोशिश करती है कि वास्तव में हॉर्मोनल सायकल का महिलाओं के एक्सरसाइज रूटीन और उसके प्रभाव पर कोई असर नहीं पड़ता. यह सिर्फ समाज से लेकर मेडिकल प्रोफेशन तक में एक जेंडर के प्रति बरसों से चला आ रहा पूर्वाग्रह है.
यह स्टडी कहती है कि व्यायाम को लेकर स्टडी कर रहे लोग बिना यह जाने इस पूर्वाग्रह से संचालित होते हैं कि पीरियड सायकल के कारण उन्हें एक्यूरेट डेटा नहीं मिल पाएगा और इस वजह से 90 फीसदी अध्ययनों में महिलाओं को शामिल ही नहीं किया जाता. यह धारणा पूरी तरह से गलत है.
यूनिवर्सिटी के अध्ययनकर्ताओं ने अपनी स्टडी में पाया कि जो महिलाएं नियमित रूप से व्यायाम करती हैं, पीरियड के दौरान भी उनके प्रदर्शन और शरीर पर पड़ने वाले उनके सकारात्मक परिणामों पर कोई असर नहीं पड़ा. कहने का आशय यह है कि महिलाओं का प्रदर्शन भी पुरुषों के बराबर नियमित और सुसंगत था.
इस स्टडी के रिसर्चकर्ताओं में से एक जेसिका लिंडे कहती हैं कि हमने अपनी स्टडी में लगातार महिलाओं के एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन का स्तर चेक किया और हमने पाया कि जिस दौरान महिलाओं के शरीर में इन दोनों हॉर्मोन्स का स्तर काफी ज्यादा होता है यानि पीरियड सायकल के दौरान, उस वक्त भी उनका एक्सरसाइज और फिलिकज रूटीन लो एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन लेवल के बराबर ही था.
हमने पाया कि वास्तव में मासिक चक्र या पीरियड साइकल महिलाओं के शारीरिक प्रदर्शन को नकारात्मक ढंग से प्रभावित नहीं करता. इसलिए बिना स्टडी किए, बिना महिलाओं को अध्ययन की प्रक्रिया में शामिल किए, सिर्फ इस पूर्वाग्रह के आधार पर उन्हें रिसर्च से बाहर रखा जाना गलत है.
Edited by Manisha Pandey