खोजी महिलाएं: एलेन की खोज के बाद हाथों में रखा ग्लोब अपनी धुरी पर घूमने लगा
एलेन फिट्ज के बारे में इतनी कम जानकारी उपलब्ध है कि इंटरनेट पर उनकी एक तस्वीर भी नहीं मिलती.
दुनिया एक बड़ी सी गोल गेंद की तरह है. इस गोल दुनिया में दुनिया के सारे महाद्वीप हैं, समंदर हैं, पहाड़ हैं, देश हैं, शहर हैं, गांव हैं और उन सबमें समाए हैं हम सब. यानि धरती के तकरीबन पौने आठ अरब लोग.
याद है बचपन में भूगोल की कक्षा में रखा वो नीले रंग का एक फुटबॉल, जो फुटबॉल नहीं, एक ग्लोब हुआ करता था. एक स्टैंड पर कुछ तिरछे एंगल में सेट किया गया ग्लोब, जिसे घुमाकर हमने समझा कि यह धरती अपनी धुरी पर कुछ टेढ़ी होकर कैसे घूमती है. धरती के इसी घूमने की वजह से पृथ्वी पर दिन और रात होते हैं, मौसम बदलते हैं, कहीं धूप निकलती है तो कहीं बर्फ पड़ती है. इसी धरती पर फैले हैं अक्षांश और देशांतर रेखाएं, जो अलग-अलग देशों से होकर गुजरते हैं.
किसी परियों वाली कहानी की तरह था यह सब पढ़ना और जानना. बस बात ये है कि वो परियों की कल्पना नहीं, बल्कि भूगोल और विज्ञान का सच था. लेकिन इस सच को देखना, जानना और समझना आज हमारे लिए इतना आसान इसलिए है क्योंकि बहुत साल पहले 1864 में अमेरिका में पैदा हुई एक महिला थी.
वो महिला बच्चों के स्कूल में पढ़ाती थी. कक्षा में पढ़ाते हुए ग्लोब को हाथ में लेकर ये समझाना मुश्किल था कि अपनी समग्रता में यह धरती कैसी दिखाई देती है. ये घूमती कैसे है. बच्चों को पढ़ाने के लिए आसान तरीके ढूंढने की कोशिश में उसने एक ऐसी चीज बना डाली, जिस पर ग्लोब को सेट करके ये समझना सरल हो गया कि एटलस पर बहुत दूर-दूर नजर आ रहे दो देश दरअसल अड़ोसी-पड़ोसी हैं क्योंकि धरती एटलस के पन्ने की तरह सपाट नहीं, बल्कि फुटबॉल की तरह गोल है.
उस महिला का नाम था एलेन एलिजा फिट्ज, जिन्होंने दुनिया की पहली ग्लोब माउंटिंग डिवाइस का आविष्कार किया था.
ऐलन का जन्म और शुरुआती जीवन
ऐलन का जन्म 1835 को न्यू हैम्पशायर के किंग्सटन में हुआ था. जब वह बहुत छोटी थीं, तभी उनका परिवार अमेरिका के मैसाचुसेट्स में जाकर बस गया. वहां लिनफील्ड और न्यूटन में उनका बचपन बीता.
बचपन से ही साहित्य, किताबों और कविताओं के प्रति उनका विशेष अनुराग था. टीन ऐज में उनका अधिकांश समय क्लासिकल टेक्स्ट का अनुवाद करते और कविताएं लिखते बीता. 1853 में ऐलन ने वेस्ट न्यूटन स्टेट नॉर्मल स्कूल से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद कैम्ब्रिज, मैसाचुसेट्स में एक म्यूजिक टीचर बन गईं.
इसी दौरान दुनिया के नक्शे में उनकी रुचि पैदा हुई. वह दुनिया भर के एटलस का अध्ययन करतीं. साथ ही मैप मेकिंग में भी उनकी गहरी रुचि थी. ऐलन का बहुत सारा वयस्क जीवन कनाडा के न्यू ब्रंसविक में बीता था, जहां वह टीचर थीं.
न्यू ब्रेंसविक के स्कूल में पढ़ाने के दौरान ही ग्लोब माउंटिंग डिवाइस बनाने का विचार पैदा हुआ.
ग्लोब, जिसका नाम ही पड़ गया था 'फिट्ज ग्लोब'
सन् 1875 में एलेन को दुनिया के पहले ग्लोब माउंटिंग सिस्टम का पेटेंट मिला. उसके बाद तो वह ग्लोब फिट्ज ग्लोब के नाम से ही प्रसिद्ध हो गया. उस ग्लोब में वर्टिकल रिंग लगे हुए थे, जिसके घूमने से पता चलता था कि धरती पर दिन-रात कैसे होते हैं और मौसम कैसे बदलते हैं.
शुरू-शुरू में फिट्ज माउंटिंग डिवाइस के साथ जिस ग्लोब का इस्तेमाल किया जा रहा था, वो 1860 में गिलमेन जोसलीन का बनाया ग्लोब था, जिसमें गोल धरती पर सभी महाद्वीपों, देशों, महासागरों वगैरह की लोकेशन दी गई थी. लेकिन उसमें बाकी भौगोलिक डीटेल्स नहीं थीं, जिसे देखकर छात्रों को यह समझने में सुविधा होती कि यह धरती आखिर चलती कैसे है. जब भारत में दिन होता है तो अमेरिका में रात क्यों होती है.
फिट्ज के ग्लोब को 66.5 डिग्री एंगल पर एक घूमने वाली डिस्क के साथ बनाया गया था. उसमें लगा वर्टिकल इंडीकेटर सूर्य की स्थिति को दर्शाता था. ग्लोब में लगी हुई तांबे की दो रिंग दिन और रात के फर्क को दर्शाने के लिए थीं. कुल मिलाकर एक गोल ग्लोब को हाथ में लेकर देखने की बजाय इस डिवाइस पर सेट किए गए एडवांस चलते हुए ग्लोब को देखकर छात्रों के लिए यह समझना आसान हो गया कि आखिर यह धरती सूर्य के चारों ओर कैसे घूमती है और इस घूमने की प्रक्रिया में साल के 365 दिन दुनिया के अलग-अलग देशों में क्या बदलाव होते हैं.
फिट्ज के ग्लोब के साथ एक 12 इंच की टेक्स्टबुक भी प्रकाशित हुई थी. इस टेक्स्ट बुक के जरिए इस ग्लोब यानि अपनी धरती की फंक्शनिंग को समझना आसान हो गया. 1876 में फिलाडेल्फिया में लगी एक प्रदर्शनी में फिट्ज ग्लोब को भी प्रदर्शित किया गया जो उस साल उस प्रदर्शनी का सबसे बड़ा आकर्षण था.
1886 में सिर्फ 51 वर्ष की आयु में एलेन की मृत्यु हो गई. एलेन की मृत्यु के बाद भी उनकी लीगेसी अगले शताब्दी तक जिंदा रही क्योंकि उनके एक छोटे से आविष्कार ने स्टूडेंट्स के लिए भूगोल और विज्ञान को समझना आसान बना दिया था.