2022 की वो पांच किताबें, जिसमें औरतों से सुनाई है अपने अनुभवों की कहानी
पढि़ए उन पांच महिला लेखकों और उनकी किताबों के बारे में, जिन्हें पढ़ना हमारे लिए काफी समृद्ध करने वाला अनुभव था.
कोविड महामारी का प्रकोप कम होने के साथ-साथ प्रकाशन उद्योग एक बार फिर से उठ खड़ा हो रहा है. इस साल कई नई किताबें रिलीज हुईं हैं. इन नई किताबों में बहुत सारी नई और स्थापित महिला लेखकों की किताबें भी हैं. यह किताबें भारत में महिला आंत्रप्रेन्योर्स की स्थिति, भारतीय अर्थव्यवस्था, एक साहसी महिला की युद्ध डायरी से लेकर एक बहुप्रचारित नेटफ्लिक्स शो पर ट्रोल की गई लड़की के संस्मरण जैसे विविध प्रकार के विषयों को छूती हैं.
यहां हम आपको उन पांच महिला लेखकों और उनकी किताबों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें पढ़ना हमारे लिए काफी समृद्ध करने वाला अनुभव था.
द डॉल्फिन एंड द शार्क: स्टोरीज इन आंत्रप्रेन्योरशिप
नमिता थापर
यह नमिता थापर की पहली किताब है. नमिता एमक्योर फार्मास्युटिकल्स की कार्यकारी निदेशक हैं और शार्क टैंक इंडिया से भी जुड़ी हैं. अपनी इस पहली नॉन-फिक्शन किताब में उन्होंने अपनी प्रोफेशनल जर्नी और लीडरशिप के सबक साझा किए हैं. वह एक बार पीछे मुड़कर एक बेहद लोकप्रिय रहे शो में अपने अनुभवों को देखती हैं और बतौर एक महिला उद्यमी अपने जीवन के व्यावहारिक और भावनात्मक अनुभवों के बारे में बात करती हैं.
वह कहती हैं कि जीवन में मेंटर का बहुत महत्व है और सबसे जरूरी है सवाल पूछना.
योर स्टोरी से बातचीत में नमिता थापर ने कहा, “मैं आज जहां हूं, उसके पीछे होमवर्क, कड़ी मेहनत और सतत लगन का हाथ है. इन्हीं चीजों ने मिलकर मुझे वहां पहुंचाया, जहां आज मैं हूं. अधिकतर लोगों और खासतौर पर महिलाओं को जब मदद की जरूरत हो तो उन्हें आगे बढ़कर मदद मांगनी चाहिए. यदि आपके पास मदद और सही मेंटर है तो इसमें कोई शक नहीं कि आपको सफलता जरूर मिलेगी. चाहे आप आंत्रप्रेन्योर बनना चाहें या फिर अपने लिए कोई और रास्ता चुनें.
इस किताब में 15 चैप्टर्स हैं. हर चैप्टर में कुछ निजी कहानियां और बिजनेस मंत्र हैं. इस पूरी किताब का सबसे बड़ा सबक यह है कि लीडर्स को शार्क की तरह आक्रामक और डॉल्फ़िन की तरह सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए.
‘वॉर डायरी ऑफ आशा-सैन’
- लेफ्टिनेंट भारती आशा सहाय चौधरी
अनुवाद- तन्वी श्रीवास्तव
75 साल पहले की बात है. 17 साल की भारती 'आशा' सहाय चौधरी’ ने एक डायरी में अपने रोजमर्रा की जिंदगी के अनुभवों को दर्ज करना शुरू किया. उनके माता-पिता आनंद मोहन और सती सेन सहाय स्वतंत्रता सेनानी थे और नेताजी सुभाष चंद्र बोस और भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) से करीब से जुड़े हुए थे. अपने पिता और अपने चाचा सत्य सहाय के नक्शेकदम पर चलते हुए आशा सैन भी आईएनए में भर्ती हो गईं. वह रानी झांसी रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट के पद तक पहुंचीं.
1946 में भारत लौटने के बाद आशा सैन ने अपने माता-पिता और एक हिंदी प्रोफेसर की मदद से जापानी भाषा में लिखी अपनी डायरी का हिंदी अनुवाद किया. यह अनुवाद हिंदी पत्रिका धर्मयुग में एक श्रृंखला के रूप में प्रकाशित हुआ. इसे एक और किताब पुस्तक ‘आशा सैन की सुभाष डायरी’ में भी संकलित किया गया था.
इस साल उनकी पोती तन्वी श्रीवास्तव ने बड़े पाठकों तक इस किताब को पहुंचाने के मकसद से उनकी डायरियों का अंग्रेजी अनुवाद किया. यह अनुवाद ‘द वॉर डायरी ऑफ आशा सान’ नाम से हार्पर कॉलिन्स से प्रकाशित हुआ है. यह किताब भारत की आजादी के लिए अपना जीवन बलिदान करने के लिए तत्पर एक युवा लड़की के साहस की कहानी है.
समाज, सरकार, बाज़ार- ए सिटिजन फर्स्ट अप्रोच
रोहिणी नीलेकणि
वर्ष 2022 में फिलेन्थ्रोपिस्ट और राइटर रोहिणी नीलेकणि की एक किताब आई है. नाम है समाज, सरकार, बाजार- ए सिटिजन फर्स्ट अप्रोच. यह किताब रोहिणी नीलेकणि के पिछले एक दशक के दौरान लिखे गए लेखों, साक्षात्कारों और भाषणों का संग्रह है. यह किताब समाज को केंद्र में रखते हुए स्टेट यानी राज्य और बाजार के बीच एक संतुलन कायम करने की बात करती है.
यह किताब समाज, सरकार और बाजार के विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को छूती है. साथ ही कई ऐसे कारकों पर प्रकाश डालती है, जो आज समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. इसमें नागरिकों की जिम्मेदारियां, न्याय प्रणाली के भीतर के मुद्दे, स्थिरता की चुनौतियां, डिजिटल युग में क्लिकबेट के खतरे और COVID-19 महामारी के सबक शामिल हैं. साथ ही यह किताब समतामूलक समाज बनाने में नागरिकों के रूप में हमारी महत्वपूर्ण भूमिका की भी बात करती है.
ओपन बुक: नॉट क्वाइट ए मेमॉयर
कुब्रा सैयत
यह किताब प्रतिभाशाली अभिनेत्री कुब्रा सैयत का संस्मरण है. यह उनके बचपन के दिनों और बेंगलुरु में पलने-बढ़ने के अनुभवों की कहानी है. साथ ही यह भी कि कैसे शुरू-शुरू में उन्हें सोशल एंग्जायटी और बॉडी शेमिंग का सामना करना पड़ा था.
यह किताब बचपन और वयस्क जीवन के अनेकों बेहद निजी अनुभवों के जरिए उनकी जीवन यात्रा को देखने की कोशिश है. किस तरह इन तमाम अनुभवों से गुजरते हुए उन्होंने एक सफल और विविधतापूर्ण भूमिकाएं निभाने वाली एक अभिनेत्री बनने की यात्रा तय की.
उदाहरण के लिए वो लिखती हैं कि स्कूल में उन्हें जिस बुलीइंग का सामना करना पड़ा था, उसने उन्हें बॉलीवुड के नेपोटिज्म का सामना करने में मदद की. यहां अभिनेत्री अपने जीवन के अन्य बेहद निजी पहलुओं के बारे में भी खुलकर बात करती हैं. जैसेकि अब्यूज, वन नाइट स्टैंड, अबॉर्शन. इस संस्मरण में उन्होंने बिना लाग-लपेट के, बिना ढंके-छिपे बहुत खुलकर अपने बारे में बात की है. किताब क सार ये है कि जीवन में चाहे जितनी बाधाएं आएं, अपने सपनों को पूरा करने की राह पर बिना रुके चलते रहना बहुत जरूरी है.
शी इज अनलाइकेबल एंड अदर लाइज़ दैट ब्रिंग विमेन डाउन
अपर्णा शेवक्रमणी
नेटफ्लिक्स पर 2020 में एक रिएलिटी शो का पहला सीजन रिलीज हुआ था. नाम था- ‘इंडियन मैचमेकिंग’. इस शो में सीमा तपारिया नाम की एक इंडियन मैचमेकर बहुत सारे युवा लड़के-लड़कियों का मैच करवाती रहती हैं. पारंपरिक तरीकों की बात करने वाले इस शो की काफी आलोचना भी हुई थी.
इस शो में सबसे ज्यादा आलोचना जिस लड़की की हुई, उसका नाम था अपर्णा शेवक्रमणी. अपर्णा को इस बात का भान नहीं था कि यह रिएलिटी शो उन्हें किस तरह चित्रित करेगा. वह उस नफरत के लिए भी तैयार नहीं थीं, जो शो के बाद उन्हें दर्शकों या ट्रोल्स से मिली, जिन्होंने उनकी निजी जिंदगी के हर पहलू को खुर्दबीन लेकर तलाशने की कोशिश की.
लेकिन इस तूफान के बीच भी अंततः अपर्णा को ऐसी कई महिलाओं का समर्थन मिला, जिन्होंने उनके अपमान के खिलाफ आवाज उठाई. अपनी किताब ‘शी इज़ अनलाइकेबल एंड अदर लाइज दैट ब्रिंग वीमेन डाउन’ में, अपर्णा ने बहुत साफगोई से लोगों को बता दिया है कि वो क्या हैं.
योरस्टोरी से बातचीत में उन्होंने कहा, “यह किताब लिखना मेरे लिए अपनी कहानी को फिर से हासिल करने और अपनी कहानी को अपनी शर्तों पर बताने का एक तरीका था. इस किताब में मैंने अपनी जिंदगी के उन अनुभवों को अपने तरीके से बयां किया है, जिन्होंने मुझे वह इंसान बनाया, जो मैं आज हूं.”
Edited by Manisha Pandey