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IIT से पढ़े युवा ने शुरू किया स्टार्टअप, रूरल टूरिज्म को दे रहा बढ़ावा

IIT से पढ़े युवा ने शुरू किया स्टार्टअप, रूरल टूरिज्म को दे रहा बढ़ावा

Monday April 29, 2019 , 6 min Read

प्रकाश गुप्ता

महाराष्ट्र के अमरावती जिले में मध्य प्रदेश की सीमा से सटा मेलघाट टाइगर रिजर्व घने जंगलों के बीच एक छोटे से गांव हरिसाल में स्थित है। इस टाइगर रिजर्व के एक तरफ सिपना नदी है तो वहीं दूसरी तरफ पहाड़ियां। यह भारत का पहला डिजिटल गांव भी है। अक्सर इसकी सौंदर्यताा की चर्चा की जाती है। इस गांव में लगभग 1,200 लोग रहते हैं जिसमें 400 कोरका जनजाति के आदिवासी परिवार भी शामिल हैं।


आईआईटी गुवाहाटी के पूर्व छात्र प्रकाश गुप्ता पहली बार इस गांव में तब आए थे जब उन्हें 2018 में माइक्रोसॉफ्ट के डिजिटल विलेज कार्यक्रम पर काम करने के लिए भेजा गया था। यह गांव उन्हें इतना पसंद आया कि नौकरी छोड़कर उन्होंने यहीं बसने का फैसला कर लिया। अब वे यहां रहकर रूरल टूरिज्म को बढ़ावा दे रहे हैं और इकोटूरिज्म की पहल भी शुरू कर रहे हैं। वे उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं, 'इस गांव की अनोखी स्थिति और कोरकू जनजाति की संस्कृति ने मुझे काफी प्रभावित किया और मुझे इकोटूरिज्म पहल शुरू करने की प्रेरणा दी।'


प्रकाश ने इस गांव में हरिसाल पर्यटन पहल के तहत घूमने वालों के लिए कई सारी सुविधाएं शुरू करवाईं। इसमें सौर ऊर्जा से चलने वाले पैनल से लेकर सुलभ वाईफाई, जंगल सफारी तक स्थानीय गाँव की गतिविधियों में भाग लेने के लिए देशी कोरकू जनजाति के साथ सांस्कृतिक अनुभव तक शामिल है। उन्होंने जनजाति समुदाय को जागरूक किया और उनके लिए एक गैर लाभकारी संगठन बनाया, जिससे कि स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सके और उनका परिवार आसानी से चल सके।


यहां आने वाले पर्यटक ग्रामीण जीवन का अनुभव कर सकते हैं। उन्हें किसानों के साथ काम करने का मौका मिलता है और ऑर्गैनिक रूप से उगाए गए अन्न के साथ पकाया गया स्थानीय भोजन का स्वाद भी चखने का मौका मिलता है। इस पहल के तहत पिछले एक साल के भीतर कई सारे पर्यटकों ने यहां का भ्रमण किया।


अभी तक हरिसाल कुपोषण से होने वाली मौतों की वजह से बदनाम था। यहां पर रोजगार, शिक्षा और इलाज का कोई प्रबंध नहीं था। आय का स्तर काफी कम था, बिजली का कोई अता पता नहीं होता था, मोबाइल कनेक्टिविटी और सार्वजनिक बुनियादी ढांचे का आभाव भी था। इन सारी चुनौतियों का सामना करने के लिए, महाराष्ट्र सरकार ने अगस्त 2015 में Microsoft के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जिससे इस गाँव को भारत के पहले आदर्श डिजिटल गाँव के रूप में विकसित किया जा सके।


माइक्रोसॉफ्ट इंडिया के मुताबिक, 'डिजिटल विलेज प्रोजेक्ट का जन्म माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नाडेला और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बीच हुई बैठक में हुआ था, जो चाहते थे कि राज्य सरकार कंपनी के साथ साझेदारी करके एक डिजिटल गाँव को सर्वश्रेष्ठ-इन-क्लास तकनीक से संचालित करे।' ग्रामीण इंटरनेट और डिजिटल साक्षरता प्रदान करना डिजिटल इंडिया पहल की प्राथमिकता थी, जिसने माइक्रोसॉफ्ट इंडिया के राष्ट्रीय सशक्तिकरण योजना के साथ जोड़ा गया।

होमस्टे

इसके लिए 2016 में माइक्रोसॉफ्ट ने व्हाइट स्पेस टेक्नॉलजी का इस्तेमाल किया और निष्क्रिय स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल कर यहां फ्री इंटरनेट कनेक्टिविटी उपलब्ध करवाने का काम किया। गाँव में चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने के लिए राज्य सरकार ने अमरावती सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल के साथ भागीदारी की।


आजीविका के अवसर पैदा किए

2018 तक हरिसाल गांव को डिजिटली जोड़ दिया। इसे लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिए प्रधान मंत्री पुरस्कार के लिए भी चुना गया था। जब 29 वर्षीय प्रकाश गांव में आए, तो उन्होंने स्थानीय लोगों के लिए स्थायी आजीविका के अवसर पैदा करने के तरीकों के बारे में सोचना शुरू किया। इसके पहले प्रकाश स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा दिए जाने वाले यूथ फॉर इंडिया फेलो के तौर पर काम कर चुके थे। इसलिए उन्हें ऐसी समस्याओं पर काम करने का अनुभव हासिल था।


सबसे पहले ग्रामीणों को आर्थिक रूप से स्थिर बनाने के पहले कदम के रूप में प्रकाश ने अपनी Microsoft टीम के साथ, गाँव की महिलाओं को बुनाई प्रशिक्षण प्रदान किया। पुरुषों को बांस के उत्पाद जैसे मैट, फूलदान, कटोरे और टोकरी बनाने के लिए प्रशिक्षित किया गया था। उचित भुगतान सुनिश्चित करने और इन उत्पादों की पहुँच को अधिकतम करने के लिए, ग्रामीणों को प्रोत्साहित किया गया और उन्हें कई ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों पर अपने हाथ के कपड़े बेचने के लिए प्रशिक्षित किया गया।


इसके बाद, उन्होंने ग्रामीण पर्यटन पर अपना ध्यान केंद्रित किया। उनका सोचना था कि शहर के लोग अपने व्यस्त जीवन से विराम लेना चाहते हैं। अगर उन्हें प्रकृति के साथ-साथ पारंपरिक आदिवासी घरों में उचित गाँव के रहने के अनुभव दिए जाएं तो इससे बेहतर क्या होगा। प्रकाश ने हरिसाल पर्यटन परियोजना विकसित करने के लिए जनजातीय समुदाय के साथ अपनी योजनाओं पर चर्चा की। यह बुनियादी लेकिन आरामदायक सुविधाओं के साथ पांच घरों के साथ शुरू हुआ।


इस प्रॉजेक्ट में मामूली लागत लग रही थी इसलिए आदिवासी आसानी से इसके लिए सहमत हो गया। इससे पहले मेलघाट में काफी कम पर्यटक आते थे। लेकिन प्रकाश ने सोचा कि यहां के घने और हरे भरे जंगल पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित कर सकते हैं। उन्होंने आदिवासी समुदाय को बताया कि गाँव की भौगोलिक स्थिति ने इसे संभावित पर्यटकों के लिए एक अनूठा आकर्षण बना दिया है। मेलघाट में जीवों की 650 से अधिक प्रजातियाँ हैं, जिनमें हिरणों की प्रजातियाँ, स्लॉथ भालू और उड़ने वाली गिलहरी सहित अन्य दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियाँ शामिल हैं।


उन्होंने यह भी बताया कि कैसे पर्यटन ग्रामीणों को दुनिया के लिए अपनी अनूठी संस्कृति का प्रदर्शन करने में मदद करेगा। वे कहते हैं, 'हरिसाल के स्थानीय लोगों द्वारा आदिवासी संस्कृति की एक रात मंत्रमुग्ध कर देने वाली होती है। स्थानीय बुजुर्ग मेलघाट के इतिहास और संस्कृति के बारे में किस्से बताते हैं, उसके बाद कोरकू नृत्य का प्रदर्शन करते हैं।


कोरकू का आदिवासी समूह उत्कृष्ट कृषकों से भरा हुआ है, जिन्होंने मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में कॉफी और आलू की खेती का बीड़ा उठाया है। वे कोरकू में बोलते हैं, जिसे मुंडा भाषाओं में से एक के रूप में वर्गीकृत किया गया है। उनका पारंपरिक नृत्य, जिसे "गदली सुसुन" कहा जाता है, एक सुंदर और अभिव्यंजक स्थानीय नृत्य है। यह नृत्य पारंपरिक रूप से सभी उत्सवों और समारोहों में किया जाता है। पुरुष बांसुरीवादक और ढोलक वादक महिला नर्तकियों से घिरे होते हैं।


गांव में एक बाजार भी बनाया गया है जहां पर्यटक आदिवासी लोगों द्वारा बनाए गए उत्पादों को खरीद सकते हैं। इससे होने वाली आय सीधे ग्रामीण लोगों को मिलती है। प्रकाश कहते हैं, 'यह हमारा दूसरा सीजन है और हमने अब तक लगभग 35 मेहमानों की मेजबानी की है। हम आदिवासी लोगों को आजीविका के अवसर प्रदान करने के साथ ही इकोटूरिज्म को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं।'


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