इस बास्केटबॉल खिलाड़ी ने खड़ी की 300 करोड़ की ट्रांसपोर्ट कंपनी
प्रसन्ना पर्पल मोबिलिटी सॉल्यूशन्स प्राइवेट लि. को प्रसन्ना पर्पल के नाम से जाना जाता है। हाल में कंपनी के पास 1200 बसें और कारें हैं। इनमें से 700 बसों पर कंपनी का मालिकाना हक है। कंपनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर प्रसन्ना पटवर्धन, पहले एक बास्केटबॉल खिलाड़ी थे।
प्रसन्ना पटवर्धन की कहानी उन सभी लोगों के लिए प्रेरणादायक है, जो अपने फैमिली बिजनस को न सिर्फ जारी रखना चाहते हैं, बल्कि उसे वक्त के साथ अधिक से अधिक बढ़ाना चाहते हैं।
प्रसन्ना का जन्म 1962 में एक संयुक्त परिवार में हुआ था। प्रसन्ना एक ऐसे परिवार में पले बढ़े, जहां एक ही छत के नीचे 24 लोग रहते थे। प्रसन्ना की परवरिश भी एक आम मराठी परिवार के जैसे ही हुई।
हम बात करने जा रहे हैं प्रसन्ना पर्पल कंपनी के चेयरमैन प्रसन्ना पटवर्धन की, जो नैशनल लेवल बास्केटबॉल खिलाड़ी रह चुके हैं। हालात के चलते उन्हें अपने फैमिली बिजनस में उतरना पड़ा। खेल से मिले सबक को उन्होंने जिंदगी में उतारा और अपने पिता की शुरू की हुई कंपनी को आसमानी बुलंदियों तक पहुंचाया। 1964 में प्रसन्ना ट्रैवल्स को सिर्फ 4 टैक्सियों के साथ शुरू किया गया था और आज ट्रांसपोर्ट सेक्टर में यह कंपनी अपना अलग ही मुकाम रखती है। कंपनी का टर्नओवर 300 करोड़ रुपये का है।
प्रसन्ना पर्पल मोबिलिटी सॉल्यूशन्स प्राइवेट लि. को प्रसन्ना पर्पल के नाम से जाना जाता है। हाल में कंपनी के पास 1200 बसें और कारें हैं। इनमें से 700 बसों पर कंपनी का मालिकाना हक है। कंपनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर प्रसन्ना पटवर्धन, पहले एक बास्केटबॉल खिलाड़ी थे। वह महाराष्ट्र की बास्केटबॉल टीम के कप्तान थे और उन्होंने भारत का भी प्रतनिधित्व किया है।
प्रसन्ना के पिता ने कंपनी का नाम उनके नाम पर रखा था। वर्तमान में प्रसन्ना तीन कंपनियां चला रहे हैं: इनमें मुख्य कंपनी है प्रसन्ना पर्पल मोबिलिटी सॉल्यूशन्स प्राइवेट लि. (इंटरसिटी ऐंड सिटी बस पैसेन्जर ट्रांसपोर्ट, कॉर्पोरेट ऐंड स्कूल मोबिलिटी, डोमेस्टिक ऐंड इंटरनैशनल हॉलिडे पैकेजेज) और इस कंपनी की दो सहयोगी कंपनियां भी हैं। एक है प्रसन्ना ट्रांसपोर्ट नेटवर्क प्राइवेट लि. (माल ढुलाई) और दूसरी स्माइलस्टोन मॉटेल्स प्राइवेट लि.।
इन सभी कंपनियों में प्रसन्ना पर्पल की पार्टनर है एक प्राइवेट इक्विटी फर्म, जिसका नाम है ऐमबिट प्रैग्मा। ऐमबिट प्रैग्मा ने 2009 में प्रसन्ना की कंपनी में निवेश किया था और उसके पास कंपनी के 64 प्रतिशत शेयर हैं। पहले कंपनी का नाम प्रसन्ना ट्रैवल्स था। इसे मॉडर्न मेकओवर देने के लिए 2010 में इसका नाम बदलकर प्रसन्ना पर्पल कर दिया गया। प्रसन्ना पटवर्धन की कहानी उन सभी लोगों के लिए प्रेरणादायक है, जो अपने फैमिली बिजनस को न सिर्फ जारी रखना चाहते हैं, बल्कि उसे वक्त के साथ अधिक से अधिक बढ़ाना चाहते हैं।
प्रसन्ना का जन्म 1962 में एक संयुक्त परिवार में हुआ था। प्रसन्ना एक ऐसे परिवार में पले बढ़े, जहां एक ही छत के नीचे 24 लोग रहते थे। प्रसन्ना की परवरिश भी एक आम मराठी परिवार के जैसे ही हुई। प्रसन्ना ने अपनी शुरूआती पढ़ाई नूतन मराठी स्कूल से की और फिर फरगसन से साइंस में ग्रैजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने सिम्बायोसिस से मैनेजमेंट में पोस्ट-ग्रैजुएशन किया। प्रसन्ना बताते हैं कि उनके एक रिश्तेदार रेस्ट्रॉन्ट और डेयरी का बिजनेस करते थे। प्रसन्ना यादें साझा करते हुए बताते हैं कि जब वह छोटे थे, तब उनके अंकल के पास सिर्फ एक दुकान हुआ करती थी, लेकिन आज उनके रेस्ट्रॉन्ट 'वडेश्वर' की कई ब्रांच हैं।
शुरूआती दौर में प्रसन्ना ड्राइवरों की कमी के चलते खुद ही बस भी चलाया करते थे। आज उनकी कंपनी के पास 3000 ड्राइवर्स हैं। प्रसन्ना के पिता टैक्सी सर्विस चलाते थे और उनके पास सिर्फ एक ही क्लाइंट हुआ करता था, पुणे यूनिवर्सिटी। प्रसन्ना बताते हैं कि टैक्सी सर्विस से उनके परिवार को काफी मुनाफा हुआ करता था। प्रसन्ना के पिता केशव वमन पटवर्धन, पुणे यूनिवर्सिटी के एकमात्र कॉन्ट्रैक्टर बन गए और यूनिवर्सिटी से मिलने वाला सारा बिजनस उनके खाते में ही जाने लगा।
प्रसन्ना बताते हैं कि 1985 में यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर ने अपने प्रफेसर्स से टैक्सी की जगह कारपूल सर्विस इस्तेमाल करने को कहा, जिसकी वजह से प्रसन्ना के पिता जी की टैक्सी सर्विस को काफी नुकसान हुआ क्योंकि उनके पास कोई और क्लाइंट नहीं था। यह प्रसन्ना ट्रैवल्स के लिए बुरा समय था और नौबत यह आ गई कि टैक्सी सर्विस बंद होने की कगार तक पहुंच गई। बिजनस के गिरने की वजह से परिवार की आर्थिक स्थिति पर भी बुरा असर पड़ने लगा।
प्रसन्ना ने बताया कि इस समय ही उन्हें महसूस हुआ कि उनके पिता और फैमिली बिजनस को उनकी जरूरत है। दिसंबर, 1985 से उन्होंने पिता जी के साथ कंपनी का काम संभाल लिया। प्रसन्ना इस व्यवसाय में नहीं आना चाहते थे क्योंकि उन्हें स्पोर्ट्स में अपना करियर बनाना था। हालांकि, किस्मत को भी यही मंजूर था कि वह अपने पिता के बिजनस को ही आगे बढ़ाएं और घुटने में चोट की वजह से वह बास्केटबॉल से दूर हो गए।
प्रसन्ना मानते हैं कि अगर वह स्पोर्ट्सपर्सन होते तो आज उनकी कंपनी इस मुकाम पर नहीं होती और वह रेलवे में टिकट कलेक्टर हो गए होते और यही उनके करियर का अंत होता। बिजनस में आते ही सबसे पहले प्रसन्ना ने अपने ऑफिस और सर्विस में इस्तेमाल हो रही फिएट और ऐंबैसडर गाड़ियों को नए सिरे से संवारा। प्रसन्ना से पता चला कि सब चीजों को नया रूप देने में उन्हें 6 महीने का समय लगा और हर कार पर उन्होंने लगभग 5 हजार रुपए खर्च किए। गाड़ियों में एयर कंडिशनर, पर्दे और अच्छे म्यूजिक सिस्टम लगवाए गए। ड्राइवरों के लिए यूनिफॉर्म तैयार करवाई गई और हर कार में न्यूज पेपर तक रखे जाने लगे। प्रसन्ना ने कहा कि पहले उनकी टैक्सी सर्विस सिर्फ प्रफेसर्स इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब वह कॉर्पोरेट क्लाइंट्स की ओर रुख करने लगे थे।
प्रसन्ना के आइडिया के बल पर कंपनी का टर्नओवर 1985 में 3 लाख रुपये साल से बढ़कर अगले 10 सालों में 10 करोड़ रुपये सालाना तक पहुंच गया। प्रसन्ना का मानना है कि वह मैनेजमेंट के विद्यार्थी थे, इसलिए बिजनस आइडिया तो वह आसानी से तैयार कर सकते थे, लेकिन क्लाइंट बनाना उनके लिए भी टेढ़ी खीर था। प्रसन्ना अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि वह किसी भी ऑफिस में चले जाते थे और पूछते थे कि क्या उन्हें टैक्सी सर्विस की जरूरत है या फिर वह कंपनी के वॉचमैन को अपना कार्ड दे देते थे और उम्मीद करते थे कि वह सही आदमी तक उनकी बात पहुंचा देगा।
धीरे-धीरे फिलिप्स और टेल्को जैसे बड़े नाम उनकी कंपनी के क्लाइंट्स की लिस्ट में शुमार होने लगे। कंपनी का टर्नओवर बढ़ने लगा और साथ ही कारें और टैंपो भी। 1988 में प्रसन्ना ने 10 लाख रुपये के निवेश के साथ एक एसी बस खरीदी और अपनी बस सर्विस भी शुरू कर दी। इसके लिए उन्होंने अपनी 25 कारों में 4 कारें और 6 टैंपो में 2 टैंपो बेच दिए। सबसे पहले महाबलेश्वर से पुणे के लिए बस सर्विस शुरू की गई, लेकिन वह असफल साबित हुई। इसके बाद प्रसन्ना ने जलगांव के संगीतम ट्रैवल्स के साथ पार्टनरशिप की और पुणे से जलगांव के बीच बस सर्विस शुरू की। पुणे की तरफ से प्रसन्ना ट्रैवल्स की बस थी और जलगांव की तरफ से संगीतम ट्रैवल्स की। इस योजना से उन्हें काफी लाभ हुआ।
अगले चार सालों में प्रसन्ना ट्रैवल्स ने पुणे से कोलकाता, अकोला और बेंगलुरु के बीच भी बस सर्विस शुरू कर दी। धीरे-धीरे बस सर्विस प्रसन्ना ट्रैवल्स का मुख्य बिजनस बन गया और 2009 में उन्हें ऐमबिट प्रैग्मा से बड़ा निवेश मिल गया। 2009 में ही प्रसन्ना ने जलगांल (महाराष्ट्र) और इंदौर (मध्य प्रदेश) की नगरीय ईकाइयों से पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप कर ली और इंटरसिटी बस सर्विस की शुरूआत की। जल्द ही प्रसन्ना ट्रैवल्स का बिजनस 10 शहरों (पुणे, लुधियाना, दिल्ली और अहमदनगर समेत) तक फैल गया। यह सब जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन के अंतर्गत हुई प्राइवेट-पब्लिक सेक्टर पार्टनरशिप के सहयोग से हुआ।
हाल में छोटी दूरी के लिए इस्तेमाल होने वाली इंटरसिटी बस सर्विस से कंपनी को अधिक मुनाफा होता है, क्योंकि लंबी दूरी के लिए लोग फ्लाइट को बेहतर विकल्प मानते और चुनते हैं। प्रसन्ना बताते हैं कि इंटरसिटी बस सर्विस में ड्राइवर और कंडक्टर राज्य सरकार की ओर से मिल जाते हैं, लेकिन हाल में बढ़ते टोल टैक्स और पेट्रोल/डीजल के दामों के चलते मुनाफे में कमी आ रही है। सफलता की इस कहानी से एक बात साफ होती है कि प्रसन्ना ने कभी किसी काम को कम नहीं समझा।
उन्हें आज भी याद है कि 1988 में एक बार ड्राइवर की गैर-मौजूदगी में वह खुद अपनी बस ड्राइव करके तीन दिनों के लिए जलगांव गए थे। प्रसन्ना कहते हैं कि खाली समय में उन्होंने अपने ड्राइवरों से बस चलाना सीखा था। उनका मानना है कि जब आप अपनी कंपनी चलाते हैं तो आपको इस तरह की चुनौतियों के लिए तैयार रहना पड़ता है।
प्रसन्ना कहते हैं कि आज उनके पास 3000 हजार ड्राइवर हैं, लेकिन उस दिन उनके पास एक भी ड्राइवर नहीं था। प्रसन्ना पर्पल अपने ड्राइवरों को उपयुक्त प्रशिक्षण देता है और कंपनी का अपना ड्राइविंग स्कूल भी है। कंपनी ने गोवा और दिल्ली में पर्यटकों के लिए 'हॉप ऑन हॉप ऑफ' टूरिस्ट बस सर्विस भी शुरू की। कंपनी की योजना है कि जल्द ही मुंबई में बेस्ट (बॉम्बे इलेक्ट्रिक सप्लाई ऐंड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन) के साथ भी बस सर्विस शुरू की जाए, लेकिन फिलहाल कंपनी किसी निर्णय तक नहीं पहुंची है।
प्रसन्ना कई देश घूम चुके हैं और वह मानते हैं कि भारत की पब्लिक ट्रांसपोर्ट सर्विस में अंतरराष्ट्रीय मानकों तक पहुंचने की क्षमता है। वह कहते हैं कि देश की सरकार पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर पर्याप्त ध्यान नहीं देती। भारत में अब भी लोग अपनी कारों से पब्लिक ट्रांसपोर्ट को प्राथमिकता देते हैं। प्रसन्ना अपने बिजनस में तकनीकी सपॉर्ट को और अधिक बढ़ाना चाहते हैं और वह ग्राहकों को जीपीएस ट्रैकिंग की अडवांस सुविधा तक देना चाहते हैं।
1986 में प्रसन्ना ने मोनिका के साथ शादी की और उनके दो बेटे हैं। उनके बड़े बेटे सौरभ कंपनी के कारगो बिजनस को संभालता है और छोटे बेटे हर्षवर्धन फुटवेयर मैनुफैक्चरिंग का बिजनस करता है। प्रसन्ना बताते हैं कि उन्होंने खेल से ऐसी कई चीजें सीखीं, जो उन्होंने अपने बिजनस में भी आजमाईं। प्रसन्ना कहते हैं कि वह अब बॉस्केटबॉल नहीं खेलते, लेकिन इस खेल ने उन्हें जिंदगी से जुड़े कई अहम सबक
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