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अयोध्या के 'दीपोत्सव' में दक्षिण कोरिया की महारानी

अयोध्या के 'दीपोत्सव' में दक्षिण कोरिया की महारानी

Friday November 02, 2018 , 7 min Read

अयोध्या कोरिया के साठ लाख लोगों का ननिहाल है। आगामी छह नवंबर को पहली बार भव्य 'दीपोत्सव' की विशेष अतिथि होंगी दक्षिण कोरिया की महारानी यानी राष्ट्रपति मून जे-इन की पत्नी किम जुंग सूक, जो दीपोत्सव में शामिल होने के साथ ही महारानी हौ के स्मारक पर भी जाएंगी। वह चार नवंबर को भारत पहुंच रही हैं।

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दो-तीन वर्ष पहले भारत सरकार और द.कोरिया सरकार की ओर से एक साझा सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर के बाद इस दिशा में दोनो देशों की राजकीय मैत्री की एक बड़ी पहल हुई। इसके साथ ही रानी हौ के पार्क को भव्य रूप देने की योजना बनी।

भगवान राम की वजह से सैकड़ों सालों से अयोध्या हिन्दू धर्म से जुड़ी कहानियों और कथाओं का हिस्सा रही है लेकिन अयोध्या की एक और पहचान किंवदंतियों का ही हिस्सा है कि अयोध्या की रानी का दक्षिण कोरिया के शाही खानदान से ऐतिहासिक रिश्ता है। अयोध्या में सरयू नदी के किनारे है प्राचीन कोरियाई राज्य कारक के संस्थापक राजा किम सू-रो की भारतीय पत्नी महारानी हौ का स्मारक। मंदारिन भाषा में लिखे चीन के पौराणिक दस्तावेज में उल्लिखित कथा के अनुसार अयोध्या की राजकुमारी के पिता के स्वप्न में स्वयं ईश्वर प्रकट हुए और उन्होंने राजकुमारी के पिता से कहा कि वह अपने बेटे और राजकुमारी को विवाह के लिए किमहये शहर भेजें, जहां सुरीरत्ना का विवाह राजा सुरो के साथ संपन्न होगा। सोलह वर्ष की उम्र में राजकुमारी सुरीरत्ना का विवाह किमहये राजवंश के राजकुमार सुरो के साथ संपन्न हुआ था। किमहये राजवंश के नाम पर ही वर्तमान कोरिया का नामकरण हुआ है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार पिछले साल की तरह आगामी छह नवंबर को पहली बार 'दीपोत्सव 2018' को अत्यंत भव्य बनाने जा रही है, जिसकी विशेष अतिथि होंगी दक्षिण कोरिया की महारानी यानी राष्ट्रपति मून जे-इन की पत्नी किम जुंग सूक, जो दीपोत्सव में शामिल होने के साथ ही महारानी हौ के स्मारक पर भी जाएंगी।

एक तरह से अयोध्या कोरियाई लोगों का ननिहाल है। पिछले डेढ़ दशक में ऐसा पहली बार होने जा रहा है, जब किम जोंग-सूक दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति के बिना कोई विदेश यात्रा करने के लिए आयोध्या आ रही हैं। अपनी चार दिन के भारत दौरे के बीच वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिलेंगी। समारोह में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के प्रतिनिधि भी मौजूद रहेंगे। उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता डॉ. चंद्रमोहन तो कहते हैं कि योगी सरकार कलियुग में त्रेतायुग ला रही है। यह अयोध्या का सांस्कृतिक वैभव वापस लाने का प्रयास है। अयोध्या को नगर निगम का दर्जा देना इसी दिशा में राज्य सरकार की एक और पहल रही है। इस बार 'दीपोत्सव' में विभिन्न देशों की विश्व स्तरीय रामलीलाएं भी होने जा रही हैं। इसमें बड़ी संख्या में देश-विदेश के मेहमान भाग लेने वाले हैं। यह भी गौरतलब है कि 27 अप्रैल 2018 को पीएम मोदी की मौजूदगी में कोरिया-भारत की दोस्ती एक और फ्रंट पर इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई थी। उत्तर कोरिया और साउथ कोरिया के दो शीर्ष नेताओं ने 65 सालों की दूरियों को चंद मिनटों में भुलाकर परमाणु कार्यक्रम के विस्तार से पीछे हटने का विचार बनाया था।

पौराणिक उल्लेखों में अयोध्या से कोरियायी राजघराने का एक ऐतिहासिक रिश्ता-नाता बताया गया है। चीनी भाषा में उल्लिखित कोरिया के इतिहास में लिखा है कि लगभग दो हजार वर्ष पहले अयोध्या की राजकुमारी सुरीरत्ना नी हु ह्वांग ओक-अयुता दक्षिण कोरिया के ग्योंगसांग प्रांत के किमहये शहर गई थीं लेकिन राजकुमार राम की तरह वह भी फिर कभी अयोध्या नहीं लौटीं। ईश्वर ने अयोध्या की राजकुमारी के पिता को स्वप्न में निर्देश दिया था कि वह अपनी बेटी को उनके भाई के साथ राजा किम सू-रो से विवाह करने के लिए किमहये शहर भेजें। आज कोरियायी कारक गोत्र के लगभग साठ लाख लोग स्वयं को राजा किम सू-रो और अयोध्या की राजकुमारी का वंशज मानते हैं। दक्षिण कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति किम डेई जंग और पूर्व प्रधानमंत्री हियो जियोंग और जोंग पिल-किम इसी वंश के रहे हैं। इस वंश के लोगों ने आज भी उन पत्थरों को संभाल कर रखा है, जिनके बारे में माना जाता है कि अयोध्या की राजकुमारी अपनी समुद्र यात्रा के दौरान नाव को संतुलित रखने के लिए साथ ले गई थीं। किमहये शहर में राजकुमारी की एक बड़ी प्रतिमा भी है। दक्षिण कोरिया में राजकुमारी की कब्र के बारे में कहा जाता है कि इसपर लगा पत्थर अयोध्या से ही गया था। अयोध्या और किमहये शहर का संबंध वर्ष 2001 से सुर्खियों में है। उसी वर्ष से कारक वंश के लोगों का एक समूह हर साल फ़रवरी-मार्च में इस राजकुमारी की मातृभूमि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए अयोध्या आता है।

इन कोरियाई मेहमानों ने सरयू नदी के किनारे पर संत तुलसीघाट के क़रीब अपनी राजकुमारी की याद में एक छोटा पार्क भी बनवा रखा है। अब तो अयोध्या के लोग भी किमहये शहर की यात्राएं करते रहते हैं। अयोध्या के पूर्व राजपरिवार के सदस्य बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र कोरियायी अतिथियों की मेहमाननवाज़ी करते हैं। वह भी दक्षिण कोरिया की कई यात्राएं कर चुके हैं। वह बताते हैं कि थाईलैंड में भी एक अयोध्या है। अयोध्या और कोरिया के कनेक्शन का एक बड़ा कारण और भी है। अयोध्या के राजा विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्रा के परिवार ने एक दूसरे को चूमती मछलियों का जो राज चिन्ह पीढ़ियों से संभालकर रखा है, वही राज चिन्ह कोरिया के किमहये राजवंश के राजा सुरो का भी था।

दो-तीन वर्ष पहले भारत सरकार और द.कोरिया सरकार की ओर से एक साझा सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर के बाद इस दिशा में दोनो देशों की राजकीय मैत्री की एक बड़ी पहल हुई। इसके साथ ही रानी हौ के पार्क को भव्य रूप देने की योजना बनी। दक्षिण कोरिया की सरकार ने इस प्रोजेक्ट में 8.60 लाख डॉलर की साझेदारी के लिए उत्तर प्रदेश की तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार को आश्वस्त किया था। तब यादव ने कहा था कि कोरियन आर्किटेक्ट अयोध्या में महारानी हौ का स्मारक बनाएंगे। अब कोरियाई महारानी के पार्क के विस्तारीकरण पर एनजीटी ने इस साल अप्रैल, 2018 से रोक लगा रखी है। अब बताया जा रहा है कि अयोध्या में रामकथा संग्रहालय के पीछे पर्यटन विभाग की ढाई एकड़ ज़मीन पर महारानी हौ का पार्क बनाया जाएगा। कोरियाई लोगों की अयोध्या को लेकर बड़ी योजनाएं रही हैं लेकिन हमारी सराकारों ने अभी तक इसको लेकर किन्ही कारणों से कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है। इसी वजह से महारानी की याद में एक छोटा सा स्मारक बनवाने के बाद कोरियाई लोग भी पीछे हट गए हैं। यद्यपि मुख्यमंत्री योगी ने गत वर्ष अयोध्या में 137 करोड़ की परियोजनाओं का शिलान्यास किया था, जिनमें कोरियन महारानी हौ के स्मारक के सुंदरीकरण की योजना भी शामिल थी। अब प्रदेश सरकार कोरियन महारानी हौ के स्मारक पर बड़ी रकम खर्च कर रही है।

अब, जबकि दक्षिण कोरिया की महारानी किम जुंग सूक दीपोत्सव में शामिल होने आ रही हैं तो हो सकता है, इस दिशा में भी कोई नहीं पहल संभव हो जाए। कोरिया के लोगों का मानना है कि सुरीरत्ना और राजा सुरो के वंशजों ने ही 7वीं शताब्दी में कोरिया के विभिन्न राजघरानों की स्थापना की थी। इनके वंशजों को कारक वंश का नाम दिया गया है जो कि कोरिया समेत विश्व के अलग-अलग देशों में उच्च पदों पर आसीन हैं। कोरिया के एक पूर्व राष्ट्रपति भी इसी वंश से संबंध रखते थे। कोरिया के पौराणिक दस्तावेज ‘साम कुक युसा’ में राजा सुरो और सुरीरत्ना के विवाह की कहानी भी दर्ज है, जिसके अनुसार प्राचीन कोरिया में कारक वंश को स्थापित करने वाले राजा सुरो की पत्नी रनी हौ (यानि सुरीरत्ना) मूल रूप से आयुत (अयोध्या) की राजकुमारी थी। सुरो से विवाह करने के लिए उनके पिता ने उन्हें समुद्र के रास्ते से दक्षिण कोरिया स्थित कारक राज्य भेजा था।

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