आपके मोटापे की वजह कहीं ये तो नहीं?
शोध का निष्कर्ष बताता है कि जो लोग रात में छह घंटे की नींद ले रहे हैं, उनकी कमर की माप, रात में नौ घंटे की नींद ले रहे लोगों की कमर से 3 सेमी ज्यादा पाई गई। कम घंटों की नींद लेने वाले लोगों में मोटापा बढ़ने के लक्षण भी पाए गए। शोधकर्ताओं ने कहा कि हमारे अध्ययन के नतीजे उन साक्ष्यों को मजबूत करते हैं, जिनमें अपर्याप्त नींद मधुमेह जैसे मेटाबॉलिक रोगों के बढ़ने में मदद कर सकती है।
8 घंटे की नींद न ले पाना आपको सिर्फ इंसोमेनिक ही नहीं, बल्कि मोटा और बीमार भी बनाता है।
क्या आप रात में भरपूर नींद ले रहे हैं? यदि ऐसा नहीं कर रहे हैं, तो आपको सावधान रहने की जरूरत है। क्योंकि इससे वजन के साथ-साथ मधुमेह का खतरा बढ़ सकता है, जो कि हाल में हुई एक शोध में पाया गया है।
नींद तो सभी को प्यारी होती है, लेकिन लोगों के पास काम का दबाव इतना ज्यादा है कि नींद बड़ी मुश्किल से पूरी होती है। आजकल देर रात तक जगना फिर हैशटैग इंसोमेनिया करके सोशल मीडिया पर पोस्ट करना मानो फैशन बन गया है। लेकिन क्या आप रात में भरपूर नींद ले रहे हैं? यदि ऐसा नहीं कर रहे हैं, तो आपको सावधान रहने की जरूरत है। क्योंकि इससे वजन के साथ-साथ मधुमेह का खतरा बढ़ सकता है। यह एक नए शोध का निष्कर्ष है।
शोध का निष्कर्ष बताता है कि जो लोग रात में छह घंटे की नींद ले रहे हैं, उनकी कमर की माप, रात में नौ घंटे की नींद ले रहे लोगों की कमर से 3 सेमी ज्यादा पाई गई। कम घंटों की नींद लेने वाले लोगों में मोटापा बढ़ने के लक्षण भी पाए गए। शोधकर्ताओं ने कहा कि हमारे अध्ययन के नतीजे उन साक्ष्यों को मजबूत करते हैं, जिनमें अपर्याप्त नींद मधुमेह जैसे मेटाबॉलिक रोगों के बढ़ने में मदद कर सकती है।
एक नज़र डालते हैं हाल में हुई शोध पर
ब्रिटेन की लीड्स यूनिवर्सिटी के ग्रेग पॉटर ने कहा कि वर्ष 1980 की तुलना में विश्वभर में मोटे लोगों की संख्या दोगुनी से ज्यादा हो गई है। मोटापा कई तरह के रोगों को बढ़ने में मदद करता है, खासकर टाइप 2 मधुमेहों को। शोधकार्ताओं की टीम ने अध्ययन के दायरे में 1,615 वयस्कों को रखा। इनमें देखा गया कि वे कितने समय नींद लेते हैं और कितनी मात्रा में भोजन लेते हैं। इस शोध का पूरा निष्कर्ष पत्रिका 'प्लस वन' में पढ़ा जा सकता है। इसके अलावा, शोध में यह भी पता चला है कि कम नींद लेने वाले लोगों में एचडीएल कोलेस्ट्रॉल के स्तर में भी कम होती है। यह एक अच्छे कोलेस्ट्रॉल के रूप में पहचाना जाता है, जो रक्तसंचार में बाधक वसा को हटाने में मदद करता है और हृदयरोग से बचाता है।
मेटाबॉलिक सिंड्रोम से पीड़ित लोग अगर 6 घंटे से अधिक की नींद लेते हैं तो उनमें स्ट्रोक के कारण मौत का जोखिम 1.49 गुना होता है। जबकि 6 घंटे से कम सोने वालों को हृदय रोग और स्ट्रोक से मौत का जोखिम 2.1 फीसदी होता है।
रोजाना ठीक से न सो पाने के कारण आपके दिमाग पर भी बुरा असर पड़ता है। अगर आप नींद न आने से परेशान हैं तो इसका सबसे प्रमुख असर आपके व्यवहार में दिखने लगता है। थोड़ी थोड़ी देर में मूड बदलना किसी पर गुस्सा करना ये सब आम लक्षण है। जब आप रात में भरपूर 8 घंटे की नींद पूरी करते हैं तो अगले पूरे दिन आप एकदम अलर्ट और ऊर्जा से भरपूर रहते हैं। लेकिन जब आप ठीक से सो नहीं पाते हैं तो ना आप घर के काम ठीक से कर पाते हैं ना ही ऑफिस के।
मेटाबॉलिक सिंड्रोम से पीड़ित लोग अगर 6 घंटे से अधिक की नींद लेते हैं तो उनमें स्ट्रोक के कारण मौत का जोखिम 1.49 गुना होता है। जबकि 6 घंटे से कम सोने वालों को हृदय रोग और स्ट्रोक से मौत का जोखिम 2.1 फीसदी होता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि मेटाबॉलिक सिंड्रोम से पीड़ित कम नींद लेने वालों को बगैर मेटाबॉलिक सिंड्रोम से पीड़ित लोगों की तुलना में किसी भी कारण से 1.99 प्रतिशत अधिक मौत का जोखिम होता है। अगर आप हृदय रोग के जोखिम से गुजर रहे हैं तो अपनी नींद का ध्यान रखें और अगर आप नींद की कमी से ग्रस्त हैं तो इस जोखिम से बचने के लिए चिकित्सक से परामर्श लें।
दिमागी सेहत के लिए बेहद खतरनाक है आधी नींद
एक अन्य शोध में यह बात सामने आयी है कि कम नींद लेने से अल्जाइमर और मस्तिष्क संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इटली के मार्के पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने चूहों के दो ग्रुप्स के ब्रेन का अध्ययन किया। एक समूह को उनकी इच्छा के अनुसार जब तक चाहे सोने दिया गया। तो वहीं दूसरे समूह को लगातार 5 दिन तक जगाकर रखा गया। टीम ने अपने अध्ययन में पाया कि अबाधित नींद लेने वाले चूहों के ब्रेन के साइनैप्स में एस्ट्रोसाइट करीब 6 फीसदी सक्रिय पाए गए। वहीं बिल्कुल नहीं सोने वाले चूहों में यह स्तर साढ़े 13 प्रतिशत रहा।
एस्ट्रोसाइट मस्तिष्क में अनावश्यक अंतर्ग्रंथियों को अलग करने का काम करता है। अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक कम अवधि में इस प्रक्रिया से लाभ मिल सकता है लेकिन लंबी अवधि के संदर्भ में यह अल्जाइमर और मस्तिष्क से जुड़ी अन्य बीमारियों के खतरे को बढ़ाता है। गौरतलब है कि एस्ट्रोसाइट मस्तिष्क में अनावश्यक अंतर्ग्रंथियों को अलग करने का काम करता है।