मुंबई में 'हॉर्नव्रत' अभियान के जरिए बेवजह हॉर्न बजाने की प्रवृत्ति पर लगाई जा रही रोक
एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई में गाड़ी चलाने वाला हर इंसान एक दिन में औसतन 48 बार हॉर्न बजाता है। इसका मतलब हर घंटे पूरे मुंबई में 1.8 करोड़ बार हॉर्न बजाया जाता है।
हॉर्न बजाने के खिलाफ लोगों जागरूक करने वाले एक संगठन अर्थ सेवियर फाउंडेशन के मुताबिक अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण से लोगों की याददाश्त कम होती है और पैनिक अटैक भी पड़ सकता है।
शहरों में गाड़ियों के तेज शोर से आजकल हर कोई परेशान है। बेवजह हॉर्न बजाकर शोर करने वाले गाड़ी चालकों को लगता है कि गाड़ियां डीजल-पेट्रोल नहीं बल्कि हॉर्न से ही चलती हैं। ट्रैफिक में फंसे हैं तो हॉर्न, सिग्नल पर लाल बत्ती हुई है फिर भी हॉर्न, सिग्नल के ग्रीन होते ही फिर हॉर्न। कोई राहगीर अगर रास्ते से गुजर जाए तो भी हॉर्न। बार-बार हॉर्न बजाने से इतना शोर होता है कि पूरे शहर के ध्वनि प्रदूषण का 70 प्रतिशत सिर्फ इसी वजह से होता है। कम से कम हॉर्न बजाने के लिए प्रेरित करने के लिए इन दिनों मुंबई में एक एनजीओ द्वारा अभियान चलाया जा रहा है जिसका नाम है, 'हॉर्नव्रत'।
एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई में गाड़ी चलाने वाला हर इंसान एक दिन में औसतन 48 बार हॉर्न बजाता है। इसका मतलब हर घंटे पूरे मुंबई में 1.8 करोड़ बार हॉर्न बजाया जाता है। लेकिन महाराष्ट्र ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट और रिक्शॉचालक संघ के साथ मिलकर एनजीओ आवाज फाउंडेशन ने ध्वनि प्रदूषण को कम करने का जिम्मा उठाया है। यह अभियान इसी साल जनवरी में 27 तारीख को गेटवे ऑफ इंडिया से शुरू हुआ था। अभियान के तहत कई ऑटो रिक्शा में कई हॉर्न लगा दिए गए। जिससे कि लोगों की नजर इस पर जाए और वे इस बारे में सोचें।
इस ऑटो में एक बोर्ड लगा हुआ है जिसमें जानकारी दी गई है कि मुंबई में हर घंटे कितने बार हॉर्न बजाया जाता है। इसलिए ऑटो पर 'हॉर्न नॉट ओके प्लीज' लिख दिया गया है। यह ऑटो रिक्शा पूरे मुंबई भर में दिनभर घूमता रहता है। रिक्शॉचालक संघ के एक सदस्य ने एएनआई से बात करते हुए कहा, 'बेवजह बजने वाले तेज हॉर्न से इंसान के भीतर तनाव और चिड़चिड़ापन होता है। इससे इंसान के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।' सड़क पर गाड़ी चलाने वाले ड्राइवरों को नहीं मालूम होता कि बेवजह हॉर्न बजाने की वजह से पर्यावरण और स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। 'आवाज फाउंडेशन' की स्थापना सुमैरा अब्दुलाली ने की थी।
हॉर्न बजाने के खिलाफ लोगों जागरूक करने वाले एक संगठन अर्थ सेवियर फाउंडेशन के मुताबिक अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण से लोगों की याददाश्त कम होती है और पैनिक अटैक भी पड़ सकता है। अर्थ सेवियर फाउंडेशन गुड़गांव में इसी तरह के कैंपेन चलाता है। ऐसे संगठनों द्वारा चलाए जाने वाले अभियानों से हम उम्मीद कर सकते हैं कि सड़क पर बेवजह हॉर्न बजाने वालों को कुछ समझ आएगा और ध्वनि प्रदूषण में कुछ कमी आएगी।
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