रूपा पर किसी और ने नहीं सौतेली मां ने किया था एसिड अटैक, फिर भी नहीं मानी हार
पिछले वर्षों में एसिड अटैक ने न सिर्फ उस अमुक लड़की की ज़िंदगी पर असर डाला बल्कि उसके पूरे परिवार को गहरे सदमें में डाला है। क्योंकि एसिड अटैक की घटना के बाद लड़की का पूरा परिवार जूझता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट की सख्ती ने इन हमलों को कम किया है लेकिन आज भी इक्का दुक्का घटना के बारे में सुनने को मिल जाता है. सुप्रीम कोर्ट की पहल के बाद तेजाब की बिक्री पर सख्ती भी लगी है।
आज हम आपको ऐसी ही एक पीड़ित से मुलाकात करवाने जा रहे हैं जिस पर तेजाब से हमला हो चुका है लेकिन वह जिंदगी में कुछ कर गुजरने की तमन्ना रखती है और अपने सपनों को एक आयाम देने के लिए जद्दोजहद कर रही है. रूपा पर किसी और ने नहीं बल्कि उनकी ही सौतेली मां ने तेजाब से हमला किया था. 2008 में रूपा की सौतेली मां ने उन पर निर्मम तरीके से तेजाब डाला ताकि वह दुनिया से हमेशा हमेशा के लिए चली जाए. लेकिन कहते हैं मारने वाले से बड़ा होता है बचाने वाला. रूपा की सौतेली मां अपनी मंशा में कामयाब नहीं हुई. रूपा 22 साल की हैं. शरीर और दिल पर जख्म रख रूपा ने पिछले सात साल बड़ी कठिन परिस्थितियों में गुजारे. पर आज की रूपा एक पीड़ित नहीं है बल्कि एक फाइटर है. रूपा खुद को एसिड अटैक फाइटर बताती हैं.
रूपा का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के पास हुआ था. लेकिन कम उम्र में ही मां का निधन हो गया और पिता ने दूसरी शादी कर ली. सौतेली मां की आंखों में रूपा हमेशा से ही खटकती थीं. एक दिन मां ने रूपा को जान से मारने का फैसला किया और तेजाब का हमला कर दिया. हमले के बाद वह अपने चाचा के पास फरीदाबाद रहने चली गईं. तेजाब का हमला रूपा की जिंदगी को पूरी तरह से बदल कर रख दिया. वह गुमसुम सी रहने लगीं. खेलने कूदने की उम्र में वह असीम दर्द के समंदर में डूब गईं. उन्हें इस सदमे से उबरने में काफी वक्त लगा. रूपा की सर्जरी का सारा खर्च उनके चाचा ने ही उठाया. रूपा की जिंदगी एक एसिड अटैक पीड़ित की ही तरह चलती गई और एक दिन उनकी जिंदगी में नया मोड़ आया. रुपा को स्टॉप एसिड अटैक कैंपेन के बारे में पता चला. स्टॉप एसिड अटैक कैंपेन से जुड़ने के बाद रूपा के अंदर नया जोश उफान मारने लगा और उनके सपने फिर जिंदा हो गए. वह अब आगे बढ़ चुकी थीं. कैंपेन में उनकी काउंसलिंग हुई और कई ट्रेनिंग कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के बाद एक नई रूपा का जन्म हुआ. रूपा अब पीड़ित नहीं फाइटर बन चुकी थी. समय के साथ रूपा का आत्मविश्वास बढ़ता गया और कैंपेन ने उसके अंदर छिपी प्रतिभा को निखार दिया. रूपा ने स्वाबलंबी होने का सपना देखा और उन्हें पूरा करने के लिए दिन रात मेहनत की. वो जानती थीं कि आर्थिक आजादी मिलने के बाद उनके अंदर नई हिम्मत आएगी. आत्मनिर्भर होने के लिए उन्होंने सिलाई की ट्रेनिंग ली. उसी दौरान उनके अंदर छिपा डिजाइनर भी सामने आया. सिलाई की ट्रेनिंग के दौरान ही स्टॉप एसिड अटैक ने रूपा को एक डिजाइनर बनने के लिए प्रोत्साहित किया. रूपा ने इसके बाद अपनी खुद की डिजाइन तैयार की और उसका पेशेवर तरीके से फोटो शूट हुआ. रूपा की मेहनत और लगन रंग लाने लगी और उनकी पहली डिजाइन लोगों को पसंद आई. हौसला उड़ान भरने लगी और रूपा ने अपना फैशन ब्रांड तैयार किया. रूपा क्रिएशन के नाम से अब वो खुद की डिजाइन किए गए कपड़े बाजार में बेच रही हैं. रूपा फिलहाल अपने बनाए कपड़ों को शिरोज हैंगआउट में बेच रही हैं. आगरा में शिरोज हैंगआउट एक कॉफी शॉप है जिसे पांच ऐसी पीड़ित लड़कियां और महिलाएं चलाती हैं जिनपर एसिड हमले हो चुके हैं। रूपा फिलहाल किसी रिटेलर से करार नहीं कर पाई हैं लेकिन वह ई कॉमर्स के जरिए अपने उत्पाद को बेचने की तैयारी कर रही है. स्टॉप एसिड अटैक ने ऑनलाइन बिजनेस शुरू करने के लिए एक छोटी रकम इकट्ठा किया है. रूपा ने छोटी शुरुआत की और अब वह शिरोज हैंगआउट कॉफी शॉप से औसतन 20 हजार रुपये महीने का कारोबार कर रही है. भविष्य के बारे में रूपा ने योरस्टोरी को बताया --
"मैं चाहती हूं कि मेरा अपना ऑनलाइन पोर्टल हो जिसके जरिए लोग मेरे बनाए कपड़े खरीदे और मेरी कोशिश को सराहे. मैं चाहती हूं कि देश भर में लोग मेरे इस ब्रांड को जाने"
रूपा अपना सफर यहीं खत्म नहीं करना चाहती है. उनकी मंजिल अभी बहुत दूर है. वह कहती हैं,
"मैं कौशल विकास स्कूल खोलना चाहती हूं ताकि मेरी तरह की लड़कियां आत्मनिर्भर होने के लिए ट्रेनिंग पाए और आर्थिक आजादी के साथ साथ समाज में आत्म सम्मान पाए"
रूपा अपने बुरे समय को आज भी याद करती है और कहती है कि अगर उनके चाचा ने सही वक्त पर इलाज और सपोर्ट नहीं किया होता तो वह आज जिस मुकाम पर हैं शायद वह वहां नहीं होतीं. रूपा की कहानी एक मिसाल है कि अगर आपके अंदर इच्छाशक्ति है और आप किसी चीज को करने की ठाने तो शायद ही कोई आपको अपने सपने पूरे करने से रोक सकता है. न हालात न कोई कठिनाई. बस ज़रूरत है हिम्मत, लगन और ईमानदार कोशिश की.