कानपुर के इन युवाओं की तरह फूड डिलिवरी का बिजनेस शुरू कर आप भी बन सकते हैं लखपति
छोटे-छोटे शहरों में भी ऐसे सक्सेज का ऑनलाइन बिजनेस, ऑनलाइन कैटरिंग सर्विस यानी फूड डिलीवरी का काम तो आजकल खूब चल निकला है। फूड पांडा, जोमेटा, ओला इटिंग ने भी धूम मचा रखी है। ऐसे में नौकरी खोजने की क्या जरूरत?
वैसे भी अब लोग होटलों की बजाएं घर पर ही खाना मंगवाना ज्यादा पसंद करते हैं। इससे एक नया फंडा और जुड़ गया है। ऐसी डिलीवरी सर्विस देने वाली कंपनियां स्वयं खाद्य तैयार न कर कुटीर उद्योग की तरह घरेलू स्तर पर भोजन तैयार कर सप्लाई करने लगी हैं।
स्टार्टअप कैसे करें, कुछ लोग इस सवाल पर निठल्ला चिंतन ही करते रह जाते हैं और कुछ लोग समझ-बूझ से चटपट शुरुआत कर लाखों, करोड़ों में खेलने लगते हैं। छोटे-छोटे शहरों में भी ऐसे सक्सेज का ऑनलाइन बिजनेस, ऑनलाइन कैटरिंग सर्विस यानी फूड डिलीवरी का काम तो आजकल खूब चल निकला है। फूड पांडा, जोमेटा, ओला इटिंग ने भी धूम मचा रखी है। ऐसे में नौकरी खोजने की क्या जरूरत? वैसे भी अब लोग होटलों की बजाएं घर पर ही खाना मंगवाना ज्यादा पसंद करते हैं। इससे एक नया फंडा और जुड़ गया है। ऐसी डिलीवरी सर्विस देने वाली कंपनियां स्वयं खाद्य तैयार न कर कुटीर उद्योग की तरह घरेलू स्तर पर भोजन तैयार कर सप्लाई करने लगी हैं। इसमें रेलवे की कैटरिंग व्यवस्था भी शामिल है।
ऐसी सर्विस दे रहीं कंपनियां ऑर्डर मिलते ही घरेलू उद्यमियों को उसे फॉरवर्ड कर देती हैं। इससे कंपनी को कमीशन मिल जाता है और भोजन सप्लाई करने वाले को घर बैठे रोजगार। और लागत मामूली सी, प्रॉफिट जस्ट डबल। उदाहरण के तौर पर इसी तरह के आइडिया पर कानपुर के निशित गुप्ता का 'ओए काके' स्टार्टअप चल निकला है। कानपुर के सिविल लाइन इलाके में रहने वाले केमिकल एजेंसी के कारोबारी जगदीश गुप्ता के पुत्र निशित गुप्ता की मेथोडिस्ट स्कूल से स्कूली शिक्षा तो कामचलाऊ भर रही लेकिन हौसला किसी से कम न था। बारहवीं तक पढ़ाई के बाद सन् 2012 में वह बीकॉम करने के लिए मुंबई के NMINS यूनिवर्सिटी पहुंच गए। लगभग एक साल वहां अध्ययन में गुजारने के बाद SIM में बीएससी इन इकोनॉमिक्स की उच्च शिक्षा के लिए सिंगापुर चले गए। वहां एडमिशन तो ले लिया मगर मन कहीं और भटकता रहता।
निशित गुप्ता आखिरकार वहां से अपने शहर लौट आए और फुटकर तेल-साबुन आदि की डिलीवरी करने लगे। इस दौरान दिमाग में एक बात चलती रही कि जब वह कानपुर के बिरहाना रोड पर रहते थे, वहां खान-पान की चीजें आसानी से इलाके में मिल जाती थीं। यह वैसी सुविधा बाजार में नहीं दिखती है। बस यही आइडिया दिमाग में बैठ गया। तेल-साबुन के काम में भी कोई खास सफलता न मिलते देख अपने दोस्त रीतेश और आयुष के साथ नए रोजगार पर कुछ दिन तक विचार-विमर्श करते रहे। तीनो ने मिलकर खान-पान के आइडिया में अपना बिजनेस मॉडल तय किया और 2015 में ओके डॉट कॉम (oyekake.com) नाम से वेबसाइट पर काम शुरू कर दिया।
तीनों दोस्त खान-पान के कारोबारियों से संपर्क करते हुए मनपसंद फूड की सप्लाई के काम में लग गए। ऑनलाइन आर्डर्स की लगभग रोजाना साठ-सत्तर से अधिक डिलीवरी के ऑर्डर बुक होने लगे। निशित का मानना है कि किसी भी काम की सफलता उसके बिजनेस आइडिया और अपनी मेहनत पर निर्भर करती है। जब खान-पान की डिलिवरी का आइडिया उनके दिमाग में आया तो एक तो बिरहाना रोड और सिविल लाइन क्षेत्रों में इस तरह के बिजनेस डिफरेंस पर ध्यान गया, दूसरे एक और आइडिया से बल मिला कि जो लोग कानपुर आते-जाते रहते हैं, उन्हें नापसंदगी के बावजूद होटलों में भोजन करना पड़ता है। यदि उन्हे घर जैसा भोजन उपलब्ध कराने लगें तो हमारा बिजनेस चल निकलेगा।
आज उन्होंने अपनी कंपनी के काम में लगभग दो दर्जन और लड़कों को जोड़ लिया है। ऑर्डर के मुताबिक शहर के किसी भी कोने में उनके लड़के खाने का सामान चटपट दे आते हैं। वे लड़के जितनी दूर जाना होता है, उसके हिसाब से सर्विस चार्ज ले लेते हैं। 'ओए काके' की तरह कम लागत के और भी कई सफल बिजनेस मॉडल आजमाए जा सकते हैं। मसलन, मात्र एक लाख रुपए की लागत से मेलों प्रदर्शनियों में लजीज व्यंजनों के स्टॉल लगाना। घर बैठे रेस्टोरेंट, होटल वालों के तालमेल से यह बिजनेस और भी कम लागत पर शुरू किया जा सकता है। बस करना कुछ नहीं है, साथ में कुछ लड़के रखकर होटल-रेस्टोरेंट से तैयार व्यंजन की मेला अथवा प्रदर्शनी स्थल तक आपूर्ति कर देना है।
इसी तरह खुद की एक बेवसाइट के माध्यम से कई तरह की डिलीवरी के ऑर्डर लिए जा सकते हैं। यह भी घर बैठे का काम है। ऐसा भी है कि एक काम से कई काम जुड़े रहते हैं। यदि आप मेला-प्रदर्शनियों में व्यंजन सप्लाई करते हैं, तो साथ में उन्ही होटलों एवं रेस्टोरेंट के लिए उन्हीं डिलीवरी ब्वॉय की मदद से पानी की बोतलें सप्लाई करने के ऑर्डर भी ले सकते हैं। ऐसे और भी तमाम काम हैं, जैसेकि शहर की महिलाओं को सैलून सर्विसेज देने के लिए ब्यूटी थेरेपिस्ट्स का काम। इस काम में करीब एक तिहाई बुकिंग उसी दिन के लिए होती है और थेरेपिस्ट्स एक-डेढ़ घंटे के भीतर सर्विसेज देने घर पर पहुंच जाते हैं। इसमें सावधानी बरतनी होती है कि वीकेंड्स पर कस्टमर्स से एक दिन पहले बुकिंग करा ली जाती है। इस काम में डिलीवरी बेस्ड सर्विसेज की जबरदस्त मांग है।
सबको पता है कि इन दिनों कई तरह के बिजनेस मॉडल वेबसाइट, वाट्सएप, मोबाइल के भरोसे चल रहे हैं। आजकल टिफिन सर्विस हर शहर की जरूरत बन गई है। घर से दूर रह रहे युवाओं की तो इस पर ही पूरी तरह निर्भरता बन गई है। जरुरत ज्यादातर कॉलेज स्टूडेंट या वर्किंग बैचलर को होती है। लड़कियां इस बिजनेस को ज्यादा सफलता से चला सकती हैं। बस इस काम को शुरू करने से पहले ठीक से स्वयं सर्वे कर लेना होगा यानी होम वर्क कि सीधे संपर्क कर पूछताछ कर लें, महीने में कितने पैसे देने हैं , कूपन सिस्टम किस तरह का होना चाहिए, रोजाना टिफिन में कौन कौन सा आइटम रखना बिजनेस प्रॉफिट की दृष्टि से ठीक रहेगा। इसमें पम्फलेट, मोबाइल एसएमएस, इंटरनेट आदि का सहारा लिया जा सकता है। ऐसे हजारों सक्सेज सामने आ चुके हैं।
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