अपनी कंपनी बंद कर गोवा के अजय नाइक ने शुरू की जैविक खेती, कमा रहे लाखों का मुनाफा
अपनी सॉफ्टवेयर कंपनी बेचकर किसानी से ये इंजीनियर कमा रहा लाखों...
केंद्र सरकार जहां वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने की कोशिशों में जुट गई है, गांवों के उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं का जैविक खेती की ओर लगातार रुझान बढ़ता जा रहा है। गोवा में एक ऐसे ही युवा किसान अजय नाईक अपनी सॉफ्टवेयर कंपनी बेचकर हाइड्रोपोनिक फार्मिंग में कूद पड़े हैं।
अब अजय नाइक और उनकी टीम को अपने कृषि फार्म की ऑर्गैनिक सब्जियों से हर महीने लाखों रुपए की कमाई हो रही है। उसका दावा है कि वह खुद को गोवा का पहला हाइड्रोपोनिक फार्मिंग करने वाला किसान बताते हैं।
हमारे कृषि प्रधान देश के ज्यादातर किसान हजारों वर्षों से जैविक खेती कर आज भी जमीन की उर्वरा शक्ति बचाए हुए हैं। जैविक खेती से लागत मूल्य तो घटता ही है, जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ जाती है। वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने की कोशिशों में जुटी केंद्र सरकार की ताजा घोषणाओं से करोड़ों किसानों के दिन बहुरने की भी उम्मीद जगी है। जैविक खेती को प्रोत्साहन दिए जाने से जहां परपंरागत खेती को महत्व मिलेगा, वहीं किसानों को कृषि उत्पाद के उचित दाम मिलेंगे, जिसमें ग्रामीण कृषि बाजार और राष्ट्रीय कृषि बाजार अहम भूमिका निभाएंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि यूरिया के उपयोग से जमीन को गंभीर नुकसान पहुंचता है, ऐसे में हमें संकल्प लेना चाहिए कि 2022 में देश जब आजादी के 75वीं वर्षगांठ मना रहा हो, तब हम यूरिया के उपयोग को आधा कम कर दें। प्रधानमंत्री का कहना है कि हर प्रकार के वैज्ञानिक तरीकों से यह सिद्ध हो चुका है कि खेतों को आवश्यकता से अधिक यूरिया के उपयोग से गंभीर नुकसान पहुंचता है। जैविक खेती से पैदा होने वाली फसल इंसान की सेहत के लिए तो अच्छी होती है, मिट्टी की सेहत और मित्र कीटों के लिए भी लाभदायक होती है।
अनुभवी किसान बताते हैं कि खेत में लगातार पांच साल तक जैविक खाद का इस्तेमाल करने के बाद खाद की जरूरत नहीं पड़ती है। इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए पणजी (गोवा) के सॉफ्टवेयर इंजीनियर अजय नाईक अपनी सॉफ्टवेयर कंपनी बेचकर हाइड्रोपोनिक फार्मिंग में कूद पड़े हैं। अपने साथ-साथ वह विगत दो वर्षों से इस राज्य के हजारों किसानों को जैविक कृषि के लिए प्रशिक्षित भी कर रहे हैं।
अब अजय नाइक और उनकी टीम को अपने कृषि फार्म की ऑर्गैनिक सब्जियों से हर महीने लाखों रुपए की कमाई हो रही है। उसका दावा है कि वह खुद को गोवा का पहला हाइड्रोपोनिक फार्मिंग करने वाला किसान बताते हैं। मूलतः तो वह कर्नाटक के रहने वाले हैं लेकिन नौकरी के सिलसिले में वह गोवा पहुंच गए थे। उन्होंने वर्ष 2011 में स्वयं की मोबाइल एप्लीकेशन निर्माता कंपनी शुरू की, जिसका पांच वर्षों तक टर्नओवर भी अच्छा चलता रहा लेकिन इस बीच अपनी कामयाबी के बावजूद रासायनिक विधि से पैदा की गई सब्जियों को लेकर उनकी चिंता भी लगातार बनी रही।
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इसी दौरान उन्होंने सोचा कि जैविक विधि से खेती करने के साथ ही क्यों न इसके प्रति किसानों को जागरूक भी किया जाए। वह कुछ समय तक खेती की मिट्टी और प्रयुक्त होने वाले रसायनों के दुष्परिणामों के बारे में अध्ययन भी करते रहे। इसके बाद उन्होंने पुणे (महाराष्ट्र) के एक हाइड्रोपोनिक फार्मर से प्रशिक्षण लिया। वर्ष 2016 में उन्होंने अपनी सॉफ्टवेयर कंपनी बेच दी। उस बेंच के पैसे से वह करसवाडा (गोवा) में खुद का हाइड्रोपोनिक फार्म खड़ा करने में जुट गए। इस काम में लागत की दृष्टि से उन्होंने दो अन्य सहयोगियों समेत कुल पांच और लोगों को शामिल कर लिया।
इसके बाद यह पूरी टीम तन-मन-धन से हाइड्रोपोनिक फार्मिंग में जुट गई। उनके खेतों में विदेशी सब्जियां उगने लगीं। इनकी राज्य के फाइव स्टार होटलों, सुपर मार्केट और कृषक बाजारों में सप्लाई होने लगी। एक ही साल में अजय नाइक की लेक्ट्रेट्रा एग्रोटेक कंपनी का टर्नओवर लाखों रुपए बढ़ गया। इसके साथ ही उनकी कंपनी से राज्य के सैकड़ों किसान जैविक खेती का प्रशिक्षण भी लेने लगे। उनका मानना है कि हाइड्रोपोनिक फार्मिंग आधुनिक सफल कृषि का सबसे बेहतर और लाभकर विकल्प है। इसके कई फायदे हैं, मसलन, इससे पानी और पोषक तत्वों की खपत की बचत होती है, साथ ही बीस-पचीस प्रतिशत तक उत्पाद की गुणवत्ता में भी वृद्धि हो जाती है।
यह खेती बहुत कम जगह में भी की जा सकती है। ऐसे युवा, जो किसान परिवारों से हैं और इंजीनियरिंग कर रहे हैं लेकिन नौकरी खोजने की बजाए अथवा जीवन यापन भर कमाई की बजाए हाइड्रोपोनिक फार्मिंग से लाखों रुपए घर बैठे कमा सकते हैं। इस दिशा में चार कदम और आगे बढ़ाकर आधुनिक खेती को नए दौर में पहुंचाने के लिए बिहार सरकार की नई पहलकदमी स्वागत योग्य है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति को अक्षुण्ण रखने और टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है। राज्य सरकार ने तय किया है कि कृषि रोड मैप 2017-22 में जैविक कॉरिडोर की स्थापना की जाएगी।
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इसके तहत गंगा के किनारे और सड़क के दोनों तरफ पड़ने वाले गांवों का चयन कर कॉरिडोर बनाया जाएगा, जिससे किसान वहां जैविक तरीकों से खेती कर सकें। परंपरागत कृषि विकास योजना, दियारा विकास योजना, जैविक प्रोत्साहन योजना एवं राष्ट्रीय सब्जी प्रोत्साहन योजना का सहयोग जैविक कॉरिडोर के निर्माण में लिया जाएगा। जैविक खेती के लिए पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद की आपूर्ति हो इसके लिए इसके लिए वर्मी कंपोस्ट यूनिट लगाने के लिए सरकार ने किसानों के साथ-साथ निजी उद्यमियों को भी अनुदान देने की व्यवस्था की है।
जैविक कृषि की दिशा में यमुनानगर (हरियाणा) के गांव नगला साधान निवासी बीएएमएस डॉ. जयपाल आर्य की पहल भी आज के वक्त में बड़े काम की है। उनके पास 20 एकड़ जमीन है। वह अपनी क्लीनिक बंद कर जैविक खेती में लग गए। वह अब गांव-गांव घूमकर जैविक तरीके से पैदा किए गए चावल, गुड़ और अन्य सामान बेचते हैं। उनके भाई की कैंसर से मृत्यु हो गई थी। डॉक्टरों और विशेषज्ञों से जब उनको ज्ञात हुआ कि फसलों में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग के कारण कैंसर की बीमारी बढ़ती जा रही है तो उन्होंने डॉक्टरी छोड़ जैविक खेती शुरू कर दी। अब 20 एकड़ जमीन में जैविक खाद व जीवामृत से गेहूं, गन्ना, सब्जियां और धान की फसल उगा रहे हैं।
उन्होंने 10 देसी गाय रखी हुई हैं। उनके गोबर व मूत्र से तैयार जैविक खाद के साथ-साथ गोबर, मूत्र, गुड़, बेसन व पानी के मिश्रण से जीवामृत भी तैयार करते हैं। उनके मुताबिक एक गाय के गोबर व मूत्र से पांच एकड़ में खेती की जा सकती है। इसी तरह हिमाचल प्रदेश के करसोग वैली के खड़कन गांव के किसान तेजराम शर्मा कई तरह की विदेशी प्रजातियों की जैविक सब्जियां उगाकर सालाना लाखों रुपये कमा रहे हैं। इसी तरह समस्तीपुर (बिहार) के तीन सगे भाई कौशलेन्द्र, नागेंद्र और जितेंद्र उच्च शिक्षा के बाद जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए पशु पालन में जुट गए हैं।
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