इस शख्स ने 10 हजार में शुरू किया था बिजनेस, आज 600 करोड़ की कंपनी के हैं मालिक
शानबाग की पैदाइश और परवरिश कर्नाटक के एक छोटे से गांव में हुई थी। उस वक्त उनके पास ज्यादा पैसे नहीं थे और उन्होंने सिर्फ 10,000 रुपयों की मदद से अपनी कंपनी शुरू खोली।
उनकी कंपनी 'वैल्यूपॉइंट' के 500 से अधिक क्लाइंट हैं जिसमें 73 कंपनी फॉर्च्यून लिस्ट में शामिल हैं। उनका सालाना टर्नओवर 600 करोड़ हो चुका है।
1991 में भारत की अर्थव्यवस्था काफी महत्वपूर्ण बदलावों से गुजर रही थी। हम वैश्वीकरण के नए युग में पहुंच रहे थे और सूचना प्रोद्योगिकी जैसी क्षमताओं को देश में तेजी से विकास के लिए अपनाया जा रहा था। इसे ध्यान में रखते हुए मल्टीनेशनल कंपनियों ने भारत में अपने पैर पसारने शुरू कर दिया था। इस माहौल को भांपते हुए बेंगलुरु के उद्यमी आरएस शानबाग (51) ने वैल्यूपॉइंट सिस्टम की स्थापना की और नई कंपनियों को कई तरह की सुविधाएं देने लगे।
शानबाग की पैदाइश और परवरिश कर्नाटक के एक छोटे से गांव में हुई थी। उस वक्त उनके पास ज्यादा पैसे नहीं थे और उन्होंने सिर्फ 10,000 रुपयों की मदद से अपनी कंपनी शुरू खोली। उनका सपना तेजी से कंपनी को बढ़ाने का था, लेकिन उन्हें ये भी पता था कि उनके पास इतने संसाधन नहीं हैं। वे स्प्रिंट रेस दौड़ना चाहते थे, लेकिन उन्हें मैराथन दौड़ का हिस्सा बनना पड़ा। उन्होंने लंबी योजना बनाई और उस पर पूरी मेहनत और ईमानदारी से काम किया। यही वजह थी कि देश में आई आर्थिक मंदी के प्रभाव से वे दूर रहे।
आज उनकी कंपनी पूरे दक्षिण एशिया में जानी मानी कंपनी है जो आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज मुहैया कराती है। उनकी कंपनी 'वैल्यूपॉइंट' के 500 से अधिक क्लाइंट हैं जिसमें 73 कंपनी फॉर्च्यून लिस्ट में शामिल हैं। उनका सालाना टर्नओवर 600 करोड़ हो चुका है। आज हर कोई जानना चाहता है कि शानबाग ने यह सफलता कैसे हासिल की। शानबाग के मुताबिक किसी भी बिजनेस को सफल बनाने के लिए लंबे संघर्ष की जरूरत पड़ती है।
वे बताते हैं, 'मैं कर्नाटक के एक छोटे से गांव अंबिकानगर का रहने वाला हूं। यह गांव डांडेली के पास स्थित है और जंगलों से घिरा हुआ है। वहां पर न कोई अच्छे स्कूल थे और न कॉलेज। मुझे पढ़ने के लिए काफी दूर जाना पड़ता था। मुझे हमेशा से लगता था कि हम गांव वालों को अच्छी सुविधाएं क्यों नहीं मिल पातीं?' पढ़ाई करने के बाद उन्हें पंजाब सरकार के साथ मोहाली में काम करने का मौका मिला। वहां काम करते हुए उनके दिमाग में कई आइडिया आए। शानबाग के दिल में कुछ कर गुजरने का जुनून था इसलिए वे वापस लौट आए।
उन्होंने बेंगलुरु आकर वैल्यूपॉइंट सिस्टम की स्थापना की। वे कहते हैं, 'मुझे किसी भी हाल में गांव के लोगों के लिए रोजगार की व्यवस्था करना था। ताकि उन्हें काम की तलाश में अपना घर छोड़कर कहीं दूर न जाना पड़े।' वे याद करते हुए बताते हैं कि भले ही उन्होंने कम पैसों से शुरुआत की थी, लेकिन वो वक्त और काम करने का आइडिया बिलकुल सही था। 1994 तक आते-आते आईटी इंडस्ट्री भारत में नई दिशा लेने लगी थी और इसके साथ ही शानबाग की कंपनी का भी विस्तार होने लगा था।
शानबाग अब कंपनी का सारा काम खुद संभालने में नाकाम हो रहे थे और उन्हें किसी सहयोगी की तलाश थी। वे कहते हैं, 'मेरी मुलाकात संपत कुमार से हुई। मैंने उन्हें पार्टरन बना लिया जिन्होंने कंपनी को बढ़ाने में काफी मदद मिली। कंपनी में उनकी हिस्सेदारी आधी यानी 50 प्रतिशत थी।' अब कंपनी को संभालने वाले दो लोग हो गए थे। इसके बाद शानबाग और संपत ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे कहते हैं, 'हमने अपने क्लाइंट्स के साथ अच्छे संबंध स्थापित किए और उन्हें अच्छे से अच्छे आईटी इक्विपमेंट्स सप्लाई किए। हम क्लाइंट्स के साथ शुरू से लेकर स्थापित होने तक साथ रहते।'
बेंगलुरु में पहली पीढ़ी के उद्यमी होने के नाते आईटी हब में होने वाले बदलावों से वे रूबरू हो रहे थे और इससे उन्हें काफी मदद भी मिल रही थी। शानबाग बताते हैं, '1996 में डेल, एचपी और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों ने भारत में अपने पैर पसारने शुरू किए और हमने उनके साथ साझेदारी की। हम ऐसी कंपनियों के साथ शुरू से जुड़ गए जिसका हमें काफी फायदा मिला। इन कंपनियों से हमें कई तरह की मदद मिली, जिसमें नई तकनीक का इस्तेमाल भी शामिल था।'
2003 तक वैल्यूपॉइंट सिर्फ सिस्टम जेनरेशन कंपनी थी। शानबाग ने सोचना शुरू किया कि क्लाइंट्स के लिए और क्या किया जा सकता है। उन्होंने अपने क्लाइंट्स के बारे में विस्तार से पढ़ना शुरू किया। वे बताते हैं, 'मैं कंपनियों को हर तरह का समाधान मुहैया कराना चाहता था क्योंकि उन्हें मार्गदर्शन की जरूरत थी। यहीं से हमने अपने प्लान्स को और अधिक विस्तृत करना शुरू किया।'
वे शुरुआती दिनों का एक उदाहरण देते हुए बताते हैं, 'अमेरिका की एक फर्म भारत में काम शुरू करना चाहती थी और प्रॉडक्ट डेवलपमेंट काम करना चाहती थी। लेकिन लालफीताशाही जैसी तमाम अड़चनों की वजह से उन्हें कई तरह की दिक्कतें आ रही थीं। हमने उन्हें उस काम को सिर्फ 6 महीनों में कर के दे दिया।' 2004 में शानबाग की कंपनी ने डॉक्युमेंट्स मैनेजमेंट सॉल्यूशन्स के क्षेत्र में कदम रखा और डॉक्यूमेंट्स के लिए ई-डिसक्वरी नाम से एक सिस्टम तैयार किया।
2008 में उन्होंने ग्रामीण इलाकों का रुख किया और गांव वालों की जिंदगी बेहतर बनाने की दिशा में काम किया। वे कहते हैं, 'हम गांव में महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन लाना चाहते थे और गांव के युवाओं को नौकरियां देना चाहते थे।' उन्होंने गांव के शिक्षित युवाओं को ट्रेनिंग देना शुरू किया ताकि उन्हें काबिल बनाया जा सके। उन्होंने गांव में ही कंपनी के कुछ सेंटर स्थापित किए जहां से कुछ प्रॉजेक्ट्स पर काम शुरू हुए। इसके बाद शानबाग ने कंपनी को चार प्रतिष्ठानों में बांट दिया।
वे कहते हैं, 'पहला तो आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर और सॉल्यूशन्स, जो कि रेवेन्यू का मुख्य स्रोत है। इसके जरिए करीब 1,500 युवाओं को रोजार मिला। दूसरा डेटा और कॉन्टेंट मैनेजमेंट जिसमें 1,000 लोगों को रोजगार मिला। एजुकेशन तीसरा क्षेत्र है और हेल्थकेयर चौथा।' आज स्थिति ये है कि वैल्यूपॉइन्ट्स के 90 फीसदी कर्मचारी ग्रामीण परिवेश से हैं और इससे भी अच्छी बात है कि 85 फीसदी कर्मचारी महिलाएं हैं। इससे शानबाग को भी कई तरह के फायदे हुए और कम पैसों में उन्हें अच्छे और विश्वसनीय कर्मचारी मिल गए।
शानबाग बताते हैं कि ये कर्मचारी ही उनकी असली ताकत हैं। तभी तो आर्थिक मंदी का उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। हालांकि वैल्यूपॉइंट्स को कई तरह की मुश्किलों और चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। शानबाग बताते हैं कि मार्केट में नित नए बदलाव हो रहे हैं और अगर उनके साथ नहीं चला गया तो आपके पिछड़ने की संभावना बढ़ जाती हैं। आने वाले सालों में वैल्यूपॉइंट्स कंपनी अपनी नैगम सामाजिक दायित्व को बढ़ाकर लाभ का 10 फीसदी करना चाहती है। उनका मानना है कि हम जिस समाज से आते हैं उसका कर्ज हमें जरूर चुकाना चाहिए। उनका लक्ष्य कंपनी को 2,500 करोड़ रुपये का राजस्व के स्तर तक भी पहुंचाना है।
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