ग्रेनेड धमाके में गहरी चोट के बाद भी 10वीं क्लास में अव्वल, प्रेरणा का दूसरा नाम है ‘मालविका अय्यर’
ग्रेनेड धमाके से हाथ-पैर में आई चोट...दसवीं की परीक्षा में आए अव्वल नंबर....मॉडलिंग का भी है शौक
मालविका अय्यर को आज भी 26 मई, 2002 का वो दिन, वैसे ही याद है जैसे वो कल ही की बात हो। तब वो तेरह साल की थीं और नवीं कक्षा में पढ़ती थीं। उस दौरान स्कूल में गर्मियों की छुट्टियां चल रही थीं। एक रविवार उनके यहां कुछ मेहमान आए। उस वक्त उनके पिता ड्राइंग रूम में बैठे हुए थे। जबकि मालविका की बहन रसोई में चाय बना रही थीं और उनकी मां घर के कूलर में पानी भर रही थीं। मालविका बताती हैं कि उस दौरान उन्होने जींस पहनी हुई थी जिसकी एक जेब फटी हुई थी और वो बाहर को लटक रही थी। तब उनके मन में एक विचार आया कि क्यों ना जेब को फेविकोल जैसी किसी चीज से चिपका दिया जाए ताकि वो बुरी ना लगे। जिसके बाद वो अपने गैराज में गई और वहां रखे समान के ढेर से जेब को चिपकाने के लिए फेविकोल को ढूंढने लगीं।
मालविका इस बात से अंजान थी कि कुछ वक्त पहले कॉलोनी के पास मौजूद गोला बारूद के डिपो में आग लग गई थी। ये बीकानेर की वो जगह थी जहां पर अय्यर परिवार रहता था। गोला बारूद के डिपो में आग लगने के कारण उसके कई टुकड़े आसपास के इलाकों में आ गिरे थे। जब मालविका अपने गैराज में पहुंची और उन्होने खोजबीन शुरू की तो उनके हाथ एक अजीब सी चीज लगी। जो देखने में हानिकारक नहीं लग रही थी, वो उसे लेकर अपने बेडरूम में आ गई। उनको इस बात का जरा भी अनुमान नहीं था कि वो ग्रेनेड था। उस वक्त दिन के 1 बजकर 15 मिनट हो रहे थे। मालविका का कहना है कि ये वक्त उनको इसलिये भी याद है क्योंकि जब विस्फोट हुआ तो उस वक्त घड़ी जहां पर थी वहीं थम गई थी।
विस्फोट सुनकर घर में मौजूद लोगों ने सोचा कि ये मालविका के कमरे में रखे टीवी से आई आवाज है। स्वाभाविक भी था क्योंकि कोई भी इस बात को सोच नहीं सकता था कि एक छोटी सी बच्ची के कमरे में बम फट सकता है। विस्फोट के बाद मालविका के शरीर का नर्वस सिस्टम बैठ चुका था। इस कारण उनको दर्द का अहसास भी नहीं हुआ। जब उनकी मां कमरे में आईं तो वहां का नजारा देख डर गईं और जोर से चिल्लाई “मेरी बेटी के हाथ चले गये”। इसके बाद मालविका के पिता और उनके दोस्त ने मिलकर उनको उठाया और कार में बैठाकर अस्पताल की ओर ले गये। इस दौरान मालविका खून से नहा गई थीं। उनकी ये हालत देखकर हर कोई डर गया। इस दौरान उन्होने ध्यान दिया तो उनका पैर हवा में लटक रहा था और उसकी चमड़ी काफी खराब हो गई थी। उस वक्त ये पैर उनके अंकल ने पकड़ा हुआ था। एकाएक वो उन पर चिल्लाई जिसके बाद उन्होने पैर को अपने रूमाल से बांध दिया।
लागातार चार दिनों तक दर्द से परेशान मालविका के पैरों में संक्रमण का खतरा बढ़ता जा रहा था, तो दूसरी ओर डॉक्टर उनके इलाज में काफी सावधानी बरत रहे थे क्योंकि ग्रेनेड के काफी छोटे छोटे टुकड़े उनके पैरों में घुस गये थे, जो बाद में घाव बन गये। करीब तीन महीनों तक उन घावों को खुला रखने के दौरान मालविका उन की रोज सफाई करती। मालविका का मानना है कि इस हादसे से पहले उनका बचपन किसी जन्नत की दुनिया से कम नहीं था। उस दौरान वो टॉमबॉय के तौर पर लोगों से पेश आती थी। मालविका बताती हैं कि वो कॉलोनी के बच्चों की लीडर हुआ करती थी और संगीत, नृत्य और खेलों में उनका खासा दखल था। उस वक्त वो अपना ज्यादा वक्त सजने में, तैयार होने में खर्च नहीं करती थीं बल्कि नृत्य से उनको खासा लगाव था। यही कारण है कि उन्होने सात साल तक कत्थक की ट्रेनिंग ली। नृत्य के अलावा उनको रोलर स्केट से गहरा लगाव था। वो बताती हैं कि किसी ने उनको उपहार में रोलर स्केट दिये थे जिसको वो 24 घंटे सातों दिन पहने रहती थीं भले ही उनको कहीं भी जाना हो वो उनको नहीं उतारती थीं।
इन्ही यादों के सहारे मालविका ने सर्जरी के बाद 18 महीनें गुजारे। सर्जरी और थैरेपी के दौरान मालविका को असहनीय दर्द का सामना करना पड़ा, लेकिन अस्पताल से घर लौटने के बाद उनकी जिंदगी में खालीपन आ गया था। इसकी वजह थी कि उनके सारे दोस्त बोर्ड के इम्तिहान की तैयारियों में जुटे थे और जिंदगी को आगे कैसे बढ़ाया जाये इसके लिये योजनाएं बना रहे थे। तो दूसरी और मालविका नहीं जानती थी कि उनको आगे क्या करना है। मालविका बताती हैं कि हादसे के बाद वो इस हालत में नहीं थी कि एक बार फिर स्कूल शुरू किया जा सके और ना ही घरवालों ने उनसे उम्मीद की थी कि वो बीते वक्त की तरह एक बार फिर कभी स्कूल जा पाएंगी। लेकिन जिंदगी को दूसरे नजरिये से देखने वाली मालविका ऐसे हालात में भी आम लोगों की तरह आगे बढ़ना चाहती थीं। इसलिए उन्होने तय किया कि वो आने वाले बोर्ड की परीक्षाओं को पूरी गंभीरता से देंगी।
हादसे के कारण मालविका की 9वीं और दसवीं की पढ़ाई नहीं हो पाई थी और बोर्ड की परीक्षाओं में सिर्फ 3 महीने ही बचे थे। तब वो ज्यादातर वक्त बिस्तर में ही रहने को मजबूर थी। हादसे से पहले मालविका पढ़ाई में औसत छात्रा थीं उस दौरान वो अपना ज्यादातर वक्त हंसी मजाक और दूसरी चीजों में लगाती थी, लेकिन अब उनकी जिंदगी बदल चुकी थी उन्होंने दुनिया के सामने अपने आपको साबित करने के लिए ठान लिया। जिसके बाद उन्होने बोर्ड की परीक्षाओं के लिए अपना नामांकन कराया और दिल से किताबों की दुनिया में खो गई। उन्होने परीक्षाओं को गंभीरता से लेते हुए स्थानीय कोचिंग सेंटर की सेवाएं भी लेनी शुरू कर दी। इस दौरान उनकी मां उनको कोचिंग सेंटर में लाने ले जाने का काम करती। तीन महीनों की कड़ी मेहनत और उनकी लगन के कारण वो दिन भी आया जब उन्होने ये परीक्षाएं दीं। खास बात ये थी कि वो लिखने में अक्षम थीं इसलिए उन्होने मैथ्स और साइंस जैसे विषयों की परीक्षाएं भी डिक्टेट करके दी। परीक्षाएं खत्म होने के बाद उनको विश्वास हो गया था कि वो इन परीक्षाओं में ना सिर्फ पास होंगी बल्कि अच्छे परिणाम भी आएंगे।
अब वो दिन भी आ गया था जिसका ना सिर्फ उनको बल्कि उनके परिवार को भी बेसब्री से इंतजार था। उनकी जिंदगी एक नये मोड़ पर खड़ी थी क्योंकि जिस दिन रिजल्ट आया मालविका की जिंदगी रातोंरात बदल गई। क्योंकि मालविका ने 500 में से 483 अंक हासिल किये थे। इतना ही नहीं मैथ्स और साइंस जैसे विषयों में उनको 100 अंक मिले थे जबकि हिंदी में 97 अंक हासिल कर उन्होने राज्य में पहला स्थान हासिल किया था। उनकी इस उपलब्धि पर मीडिया का ध्यान उन पर गया। जिसके बाद हर कोई ये जानना चाहता था कि बम विस्फोट के कारण गंभीर रूप से विकलांग लड़की इतने अच्छे अंक कैसे हासिल कर सकती है। उनकी मेहनत को देखते हुए तब के राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उनको मिलने के लिए बुलाया। ये उनकी जिंदगी का ना भूलने वाला पल था। बावजूद इसके कई मायनों में उन्होने महसूस किया कि उनकी जिंदगी में काफी कुछ नहीं बदला है। वो पहले की ही तरह तैयार होती थीं उनको तैयार होना काफी अच्छा लगता था वो अलग अलग इंटरव्यू में अलग अलग कपड़े पहन कर जाती थीं और इस बात का ध्यान रखती थीं कि वो सुंदर दिखें।
ऐसे हादसे के बाद कोई दूसरा होता तो वो हिम्मत तोड़ देता लेकिन मालविका ने ना सिर्फ अपने को संभाला बल्कि दुनिया को साबित भी किया कि वो विकलांग होने के बावजूद उनमें काफी प्रतिभा है, हिम्मत है, हौसला है। जिसके बाद उन्होने स्कूल की आगे की पढ़ाई जारी रखी और सेंट स्टीफन कॉलेज से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। इस तरह वो ना सिर्फ मजबूत बल्कि उनमें काफी आत्मविश्वास भी आ गया था। इस दौरान मालविका ने देखा की दुनिया तेजी से बदल रही है तब वो दिल्ली स्कूल ऑफ सोशल वर्क से सामाजिक कार्यों में मास्टर कर रही थीं। तब मालविका फील्ड वर्क के साथ साथ विकलांग बच्चों को पढ़ाने का काम भी करने लगी। यहां उन्होने विकलांग बच्चों में हिम्मत और ताकत का अनुभव किया।
मालविका का मानना है कि उन्होने जिंदगी में कई कड़े फैसले लिए जिसका नतीजा है कि वो समाज में अपनी अलग जगह बनाने में कामयाब हो सकी हैं। हादसे के बाद लोग मालविका के बारे में कई तरह की बातें करते थे। वो कहते थे कि ये लड़की है, कौन इससे शादी करेगा? लोग उनको बताते कि उन्हे क्या करना चाहिए और क्या नहीं। शुरूआत में मालविका ने उन पर विश्वास करना शुरू किया लेकिन कुछ वक्त बाद वो अलग तरह से सोचने लगी और जब उनको अपने पर विश्वास हो गया था तो उनकी जिंदगी में परिवर्तन आने लगा। आज मालविका पीएचडी स्कॉलर हैं और इंटरनेशनल मोटीवेशनल स्पीकर हैं। यूट्यूब में उनकी अभूतपूर्व टेड बातचीत को हजारों लोग देख चुके हैं। उनको कपड़ों से बेहद लगाव है। वो उन डिजाइनरों के लिए मॉडल के तौर पर काम करती हैं जो विकलांग लोगों के लिए कपड़े डिजाइन करते हैं। मालविका का कहना है कि जब वो रेम्प पर होती हैं और स्पाटलाइट उन पर होती है तो वो अपने आप को किसी बॉलिवुड कहानी का हिस्सा मानती हैं। वो हील नहीं पहन सकतीं इसलिये उन्होने अपने लिये खास तरह की चप्पलों को तैयार कराया है।
मालविका बताती है कि एक दिन वो चेन्नई के एक बाजार में घूम रही थीं और उस दिन काफी उमस भी थी जिस वजह से उनको काफी पसीना आ रहा था। इस कारण उनका कृत्रिम हाथ गिर गया। ऐसे में वहां मौजूद लोगों की प्रतिक्रियायें हैरान करने वाली और डराने वाली थी लेकिन वो खुद काफी हंस रही थी, क्योंकि वहां मौजूद लोग नहीं जानते थे कि उनके साथ क्या हादसा हुआ था। इसी तरह मालविका बताती हैं कि उनके पैरों में भी काफी कमी है यही कारण है कि वो अपने पैरों की कॉस्मेटिक सर्जरी करना चाहती थीं इसके लिए एक बार जब वो डॉक्टर के पास गई तो उन्होने ऐसा करने से हाथ खड़े कर दिये और उनसे कहा कि वो उनके पैरों में इतनी ज्यादा चोट है कि वो चल भी नहीं सकतीं। जिसके जबाव में उन्होने डॉक्टर से कहा कि वो उनके क्लिनिक में खुद चलकर ही आई हैं। ये बात सुनकर डॉक्टर काफी प्रभावित हुए लेकिन उनका कहना था कि पैरों से जुड़ा उनका नर्वस सिस्टम 70 से 80 प्रतिशत बर्बाद हो चुका है इसलिए उनको इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि उनके पैर जो थोड़ा बहुत काम कर भी रहे हैं वो करते रहें।
इतना सब हो जाने के बाद लोग लोग मालविका को इस बात का अहसास कराते रहते हैं कि वो विकलांग हैं। तब वो स्कॉट हैमिल्टन के उन शब्दों को याद करती हैं जिसमें उन्होने कहा था कि किसी की जिंदगी में विकलांगता सिर्फ बुरा बर्ताव है। मालविका का कहना है कि अगर कभी वो देश की राष्ट्रपति बन भी जाती हैं तब भी लोग उन पर दया ही दिखाएंगे। क्योंकि ये उनके स्वभाव में है। इसलिए उन्होने अपनी क्षमताओं पर ध्यान देना शुरू कर दिया है ना कि लोगों से मिल रही प्रतिक्रियाओं पर। यही कारण है कि वो अपनी जिंदगी बदलने में कामयाब हो सकी हैं। मालविका का कहना है कि मौके हर किसी की जिंदगी में आते हैं उनको यूं ही बेकार ना जाने दें बल्कि उनको हासिल करने के लिये लड़ें और आगे बढ़ें।