मधुबनी स्टेशन की पेंटिंग गुटखे से हो गई थी लाल, युवाओं ने अपने हाथों से किया साफ
MSU के कार्यकर्ताओं की पहल...
लगभग 6 महीने पहले मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग से सजाकर सुंदर रूप दिया गया था। इसके लिए स्थानीय कलाकारों ने श्रमदान दिया था, जिसका नतीजा ये हुआ कि पूरे देश में मधुबनी को दूसरा सबसे सुंदर रेलवे स्टेशन का खिताब मिला। रेलवे और स्थानीय लोगों ने भी इस पेंटिंग के प्रति उदासीनता और लापरवाही बरती जिससे कलाकारों की यह मेहनत और मिथिला की यह धरोहर भी प्रभावित होने लगी।
सोशल मीडिया पर भी गुटखा पान खाकर गंदगी करने वाले बिहारियों को कोसा जाने लगा। MSU के सदस्यों से यह देखा न गया और उन्होंने बाल्टी, पानी, कपड़े-ब्रश लेकर स्टेशन का रुख किया। इन कार्यकर्ताओं ने अपने हाथों से गंदी दीवारों को साफ किया।
अक्सर हम समाज में फैली बुराइयों की सिर्फ निंदा करते हैं, उन्हें गलत कहते हैं, लेकिन क्या कभी खुद भी आगे बढ़कर उसे सुधारने की कोशिश करते हैं? देश का एक युवा वर्ग इन कमियों और कमजोरियों पर सिर्फ दोष नहीं मढ़ रहा बल्कि आगे आकर हर गलत चीज को सही करने की कोशिश भी रहा है। इसका ताजा उदाहरण बिहार के मधुबनी जिले के वे युवा हैं जिन्होंने मधुबनी रेलवे स्टेशन की दीवारों पर बनाई गई सुंदर पेंटिंग पर लोगों द्वारा गुटखे और पान की पीक को साफ किया।
लगभग 6 महीने पहले मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग से सजाकर सुंदर रूप दिया गया था। इसके लिए स्थानीय कलाकारों ने श्रमदान दिया था, जिसका नतीजा ये हुआ कि पूरे देश में मधुबनी को दूसरा सबसे सुंदर रेलवे स्टेशन का खिताब मिला। रेल मंत्री ने इस स्टेशन को पुरस्कृत किया था। लेकिन जैसा कि भारत के कुछ लोगों की आदत है, उन्हें कोई भी साफ-सुथरी जगह पसंद नहीं आती। हर अच्छी जगह को बर्बाद करने की उनमें अलग सी बेताबी रहती है। गुटखा-पान उनके औजार होते हैं जो इस काम में उनकी मदद करते हैं। अस्पताल से लेकर रेलवे स्टेशन के हर कोने में आपको इसका प्रमाण मिल जाएगा। मधुबनी स्टेशन पर पेंटिंग से सजी दीवारें भला कहां छूटने वाली थीं। लोगों ने बिना कुछ सोचे आदतन इन दीवारों पर थूकना शुरू कर दिया और 6 महीने में ही इसकी हालत बदतर होने लगी।
विगत 6 महीनों में रेलवे और स्थानीय लोगों ने भी इस पेंटिंग के प्रति उदासीनता और लापरवाही बरती जिससे कलाकारों की यह मेहनत और मिथिला की यह धरोहर भी प्रभावित होने लगी। यह हालत देखकर मिथिलांचल में छात्र और समाज हित के लिए काम करने वाली संस्था मिथिला स्टूडेंट यूनियन (MSU) ने इसे साफ करने का फैसला लिया। MSU के मीडिया प्रभारी आदित्य मोहन बताते हैं, 'रेलवे इसके संरक्षण के प्रति गम्भीर नहीं था और स्थानीय लोग पान गुटखा खा कर दीवारों पर थूकने लगे थे। जो दीवारें नयनाभिराम मिथिला पेंटिंग से खूबसूरत दिखती थीं अब वही पान-गुटखे की पीक से भद्दी लगने लगी थीं।'
स्थानीय अखबारों में भी पेंटिंग की दुर्दशा से संबंधित खबरें छपीं। सोशल मीडिया पर भी गुटखा पान खाकर गंदगी करने वाले बिहारियों को कोसा जाने लगा। MSU के सदस्यों से यह देखा न गया और उन्होंने बाल्टी, पानी, कपड़े-ब्रश लेकर स्टेशन का रुख किया। इन कार्यकर्ताओं ने अपने हाथों से गंदी दीवारों को साफ किया। उनकी मेहनत का नतीजा रहा कि जो दीवारें थूक और पीक से लाल हो रही थीं साफ होने के बाद फिर से वहाँ की पेंटिंग चमकने लगी। इसके बाद जो लोग सोशल मीडिया पर MSU की तारीफ होने लगी। सुबह पेंटिंग की बदहाली की खबर आई और शाम तक सब कुछ बदल गया था।
यह MSU कार्यकर्ताओं की अच्छी सोच ही है कि जिस बिहार को गंदगी फैलाने वाले राज्य का दर्जा दिया जा रहा था वहां के लोगों की अब तारीफें हो रही हैं। MSU के सदस्यों ने दिखा दिया कि गलतियां ढूढ़ना अच्छा काम हो सकता है लेकिन उसे दूर करने के प्रयास भी करने चाहिए। इस कार्य मे MSU के पूर्व अध्यक्ष अनूप मैथिल, मधुबनी जिलाध्यक्ष शशि अजय झा, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हुकुम देव यादव, मधुबनी जिला कार्यकारणी सदस्य मनोहर झा, जिला कॉलज प्रभारी मयंक कुमार, रहिका प्रखंड अध्यक्ष शुभकान्त झा, जिला कोषाध्यक्ष जॉनी मैथिल शामिल थे।
(यह स्टोरी पूरी तरह से MSU के मीडिया प्रभारी आनंद मोहन से बातचीत पर आधारित है।)
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