छत्तीसगढ़ का ग्रीन विलेज: सफाई देखकर हो जाएंगे हैरान, विकसित गांव की तस्वीर पेश कर रहा ये गांव
यह लेख छत्तीसगढ़ स्टोरी सीरीज़ का हिस्सा है...
छत्तीसगढ़ का महासमुंद जिला अब सतरंगी बन रहा है। जिले के कई गांव ऐसे हैं जो साफ-सफाई पर खास ध्यान दे रहे हैं। इनमें से किसी गांव का रंग नीला है तो किसी का पीला। पिथौरा ब्लॉक के अंतर्गत एक साफ सुथरा चमचकता हुआ गांव है, 'सपोस' जिसका रंग हरा है। आईये जानें क्या खास बात है इस गांव की।
टैक्स लेने का काम सरकार अपने सिस्टम के जरिए करती है, लेकिन इस गांव के लोग खुद से पैसे इकट्ठे करके गाँव की बेहतरी में लगाते हैं, साथ ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकान से भी हर महीने 10 हजार रुपये लिए जाते हैं ताकि विकास कार्यों को सुचारु रूप से चलाया जा सके और ऐसा सिर्फ इसलिए किया जाता है, ताकि ये गाँव स्वच्छता और संपन्नता की मिसाल बन सके, जिसमें सबसे बड़ी भूमिका गांव के लोग ही निभा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से सटा हुआ एक जिला है महासमुंद। इस जिले की कई अनोखी खूबियां हैं, जिनसे शायद आप वाकिफ नहीं होंगे। आपने पिंक सिटी जयपुर के बारे में तो जरूर सुना होगा। लेकिन महासमुंद जिले में एक गांव है नानकसागर जिसे पिंक विलेज भी कहा जाता है। दरअसल यह गांव साफ-सफाई के मामले में बड़े शहरों को भी मात दे रहा है। इसलिए इस गांव के सारे घर गुलाबी रंग से पेंट किए गए हैं। महासमुंद जिला अब सतरंगी बन रहा है। जिले के कई गांव ऐसे हैं जो साफ-सफाई पर खास ध्यान दे रहे हैं। इनमें से किसी गांव का रंग नीला है तो किसी का पीला। पिथौरा ब्लॉक के अंतर्गत एक साफ सुथरा चमचकता हुआ गांव है, 'सपोस' जिसका रंग हरा है। वैसे इन रंगों का साफ-सफाई से सीधा कोई ताल्लुक नहीं है, लेकिन जिन गांवों को पूरी तरह से स्वच्छ कर दिया गया है उन चुनिंदा गांवों के घर एक ही रंग में रंगे हैं।
सपोस गांव दूर से ही हरे रंग में नजर आ जाता है जैसे जोधपुर को देखने पर सब नीला नजर आता है। गांव में प्रवेश करते ही अहसास होगा कि आप किसी खास जगह पर आ गए हैं। साफ-सुथरी सड़कें, हर घर के बाहर रखे कूड़ेदान, साफ नालियां, चारों तरफ हरियाली आपका मन मोह लेगी। इस गांव में वैसे तो पहले से ही स्वच्छता का ख्याल रखा जाता था, लेकिन पिछले दो साल से लोगों ने एकजुट होकर इसे और भी अनोखा बनाने का प्रयास प्रारंभ किया। लोगों को खुले में शौच के लिए न जाने के लिए जागरूक किया गया और शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित किया गया। इस पहल के पीछे वैसे तो किसी एक व्यक्ति का हाथ नहीं है। दरअसल गांव के सभी लोगों ने मिलकर गांव को पूरी तरह से बदल देने की योजना बनाई थी।
अगर असल में कोई बड़ा परिवर्तन लाना है तो उसके लिए पैसों की जरूरत होती है। सरकार ने तो शौचालय से लेकर सड़क बनवाने के लिए पैसे दिए, लेकिन गांव के लोगों ने सोचा कि अगर हम मिलकर कुछ पैसे इकट्ठे करें तो इसे और बेहतर कर सकते हैं। तय हुआ कि गांव के हर घर से लाइट और हाउस टैक्स लिया जाएगा। ध्यान देने वाली बात है कि टैक्स लेने का काम सरकार अपने सिस्टम के जरिए करती है, लेकिन ये वो पैसा है जिसे गांव वाले अपनी स्वेच्छा से अपने विकास के लिए देते हैं और इसे वे टैक्स कहते हैं। इसके अलावा सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकान से भी हर महीने 10 हजार रुपये लिए जाते हैं ताकि विकास कार्यों को सुचारु रूप से चलाया जा सके। गांव की बेहतरी के लिए वहां के लोगों से पैसे लेना का सारा काम ग्राम पंचायत समिति द्वारा किया जाता है।
गांव में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके पास नौकरी है या पैसे कमाने के अच्छे साधन हैं। ऐसे समृद्ध लोग स्वेच्छा से भी कुछ पैसे गांव के विकास फंड में दान करते हैं। ग्राम प्रधान किशोर बघेल ने योरस्टोरी से बात करते हुए बताया, कि इस तरह से हर महीने 4 से 5 लाख रुपये इकट्ठा हो जाते हैं। हालांकि सिर्फ पैसों की बदौलत भी गांव को साफ करना थोड़ा मुश्किल है। इस सफलता के पीछे गांव के हर एक व्यक्ति की भागेदारी है जो गांव को बाकियों के मुकाबले अलग खड़ा करती है। कोई भी व्यक्ति खुले में शौच के लिए नहीं जाता और हर किसी के घर में शौचालय बने हैं। वहीं अगर कोई व्यक्ति खुले में शौच करते हुए पकड़ा जाता है तो उससे 200 रुपये का जुर्माना वसूल किया जाता है। खुले में शौच करते वक्त पकड़ने वाले व्यक्ति को भी 100 रुपये का इनाम है।
कोई भी गांव या शहर तब तक साफ नहीं रह सकता जब तक कि वहां के लोग खुद से जागरूक और तत्पर न रहें। सपोस गांव के लोग साफ-सफाई को लेकर इतने चिंतित थे कि उन्होंने खुद मिल-बैठकर इसे अंजाम देने की योजना बनाई। उन्होने खुद से ही अपने-अपने घरों को हरे रंग से रंगने का फैसला किया। लोगों का यह मानना था कि अगर सभी घर एक रंग में होंगे तो एक बराबरी झलकेगी। गांव में पॉलिथीन का प्रयोग न हो, शराब के सेवन से घर न बर्बाद हों इसके लिए भी कदम उठाए गए और लोगों को जागरूक किया गया। खास बात यह है कि जिला प्रशासन ने सिर्फ गांव वालों को प्रोत्साहित किया और बाकी का काम उन्होंने खुद से किया।
सपोस ग्राम पंचायत के अंतर्गत दो गांव आते हैं। दोनों गावों में कुल 379 घर हैं जिनकी आबादी 1980 है। सपोस में जलनिकासी के लिए पक्की नालियां बनी हैं और हर घर में पानी की सप्लाई के लिए पाइप लगाया गया है। यहां साफ सड़कों की एक सबसे बड़ी वजह यहां घर के बाहर रखे कूड़ेदान में छिपी हुई है। इन कूड़ेदानों को ग्राम पंचायत की ओर से गांव के हर घर को दिया गया है। उसमें डाला जाने वाला कूड़ा हर हफ्ते निस्तारित कर दिया जाता है। गांव में पहले कुछ जगहें ऐसी थीं जहां पर कूड़ा पड़ा रहता था, उसे अब बगीचे के रूप में बदला जा रहा है। कुछ जगहों पर पौधे और घास भी लगा दी गई है और बाकी जगहों को चिह्नित कर वहां काम करवाया जा रहा है। किशोर बताते हैं कि स्कूल के पास एक फव्वारा भी लगवाने की योजना है।
साफ-सफाई के अलावा इस गांव में 24 घंटे बिजली की सुविधा भी है। किशोर बघेल बताते हैं कि उसकी वजह ये है कि गांव में कोई भी व्यक्ति बिजली की चोरी नहीं करता। इसलिए विद्युत विभाग भी गांव से खुश रहता है। बिजली की बचत के लिए गांव की पुरानी पीली स्ट्रीट लाइटों को एलईडी से बदला गया। इससे भी बिजली की काफी बचत सुनिश्चित की गई। किशोर बताते हैं कि पंचायत द्वारा इकट्ठा किए जाने वाले टैक्स से कई तरह की विकास योजनाएं चलाई जाती हैं उनमें से एक योजना शादी में उपहार देने की भी है। गांव में अगर किसी लड़की की शादी होती है तो उसे पंचायत की तरफ से कोई न कोई जरूरत में आने वाला उपहार दिया जाता है। यह उपहार एक तरह से गांव की तरफ से उसके लिए आशीर्वाद होता है।
सपोस गांव का हर व्यक्ति यह सोचता है कि वह जितना हो सके गांव को स्वच्छ और अच्छा बनाने में अपना योगदान दे सके। यहां तक कि गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले अध्यापक भी कुछ न कुछ योगदान करते रहते हैं। बीते वर्ष अध्यापकों ने अपनी तरफ से एक वॉटर कूलर स्थापित किया जिससे कि गांव के रास्ते से गुजरने वाले राहगीरों की प्यास बुझाई जा सके। हर साल गर्मी के मौसम में ये वॉटर कूलर चालू कर दिया जाता है।
सपोस गांव के लोग पर्यावरण को लेकर भी काफी सजग हैं। दरअसल गांव से सटा हुआ एक बड़ा जंगल है जिसे वन माफियाओं और लकड़ी काटने वालों से खतरा रहता है। इसलिए उसकी रखवाली गांव के ही लोगों द्वारा की जाती है। हर रात अलग-अलग घरों से दो लोग रखवाली करने के लिए जाते हैं। रोज अलग-अलग घरों की ड्यूटी जंगल की रखवाली करने में लगाई जाती है। बारिश में यह संख्या बढ़कर 4 हो जाती है क्योंकि तब जंगल में खतरे बढ़ जाते हैं और उसकी रखवाली के लिए अधिक लोगों की आवश्यकता होती है।
भारत में गांवों का नाम लेते ही जहां लोगों के मन में गंदगी और पिछड़ेपन की तस्वीर आ जाती हो, वहां सपोस जैसे गांव न केवल स्वच्छता बल्कि एक विकसित गांव की आदर्श मिसाल पेश कर रहे हैं। अगर देश के बाकी गांवों में रहने वाले लोग भी इनसे कुछ प्रेरणा ले सकें तो शायद स्वच्छ भारत अभियान और विकसित भारत की कल्पना आसानी से साकार की जा सकती है।
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