बुजुर्गों का अकेलापन दूर कर रहे हैं रायपुर के ये युवा
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के 720 से अधिक युवाओं का दल शहर के उन बेसहारा बुजुर्गों को सहारा दे रहा है, जिनके बच्चे बुढ़ापे के अंतिम पड़ाव में अपने माता-पिता को छोड़ चुके हैं। ये नौजवान इन बेसहारा बुजुर्गों के लिए किसी श्रवण कुमार से कम नहीं।
गौर करने वाली बात यह है कि ये नौजवान इन हताश बुजुर्गों को इतना प्यार देते हैं कि इन्हें खुद के बच्चों द्वारा दी गई पूर्व में यातनाएं याद ही नहीं रहती। अब ये सभी लोग इन युवाओं को ही अपने बच्चे समझकर खुश रहते हैं। इन युवाओं ने ब्राह्मण युवा पहल नामक एक संस्था बनाई है, जिसमें करीब 720 सदस्य शामिल हैं।
राहुल के अन्य साथी बताते हैं 'देश-विदेश में बुजुर्गों के एकाकीपन की समस्या को गंभीरता से लिया जा रहा है। पर हम शहर के स्तर पर कुछ कर सकें इसलिए ये पहल की। फिलहाल हम 10 बुजुर्ग दंपतियों की नियमित तौर पर मदद कर रहे हैं।'
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के 720 से अधिक युवाओं का दल शहर के उन बेसहारा बुजुर्गों को सहारा दे रहा है, जिनके बच्चे बुढ़ापे के अंतिम पड़ाव में अपने माता-पिता को छोड़ चुके हैं। ये नौजवान इन बेसहारा बुजुर्गों के लिए किसी श्रवण कुमार से कम नहीं। आज इन बुजुर्गों के चेहरे पर हर समय मुस्कान ही नजर आती है। रायपुर में अकेले रह रहे बुजुर्ग दंपती को अपनी सुरक्षा और देखभाल के लिए अब जरा भी चिंता नहीं रही है क्योंकि शहर के कुछ युवा रोजाना फोन या मुलाकात के जरिये उनका हाल जानते रहते हैं। जरूरत पड़ने पर उन्हें हॉस्पिटल लाना ले जाना और अन्य कामों में मदद भी करते हैं। दरअसल इन बुजुर्गों के बच्चे नौकरी या बिजनेस के चलते विदेश या देश के अलग-अलग हिस्सों में शिफ्ट हो गए हैं, इसलिए कोई करीबी शख्स नहीं है जो इनकी देखभाल कर सके। इसलिए यह जिम्मेदारी उठाई है राहुल शर्मा और उनके ही कुछ युवा साथियों ने।
गौर करने वाली बात यह है कि ये नौजवान इन हताश बुजुर्गों को इतना प्यार देते हैं कि इन्हें खुद के बच्चों द्वारा दी गई पूर्व में यातनाएं याद ही नहीं रहती। अब ये सभी लोग इन युवाओं को ही अपने बच्चे समझकर खुश रहते हैं। इन युवाओं ने ब्राह्मण युवा पहल नामक एक संस्था बनाई है, जिसमें करीब 720 सदस्य शामिल हैं। संस्था के मुखिया राहुल कहते हैं कि बुढ़ापा जिंदगी का वो पड़ाव रहता है जिसमें अगर इंसान को दुख मिले तो उसके लिए जिंदगी काटना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने बताया कि रायपुर में सैकड़ों परिवार ऐसे हैं जिनके बच्चे पैसे कमाने के चक्कर में अपने बूढ़े माता-पिता को भूल चुके हैं। ऐसे में जब वह इन बुजुर्गों की हालत देखते थे तो उन्हें बहुत तरस आता था। इसके बाद उन्होंने ऐसे बेसहारा बुजुर्गों की सेवा करने की ठानी।
बिल्कुल अपने माता-पिता की तरह करते हैं देख-भाल
राहुल के मुताबिक, आस-पड़ोस में कुछ बुजुर्ग दंपती अकेले रह रहे थे, इन सभी से घर जैसे संबंध हैं। कई बार उन्हें समस्याएं आतीं थी। परिजनों के कहने पर मैं उनका काम कर देता था। अक्सर घर जाकर उनका हाल-चाल पूछता। इससे उनका अकेलापन भी दूर हो जाता था अौर उनकी सेवा से मुझे भी सुकून मिलता। बड़ा हुआ तो दोस्तों से इस संबंध में चर्चा होती रहती थी। उनके भी कुछ बुजुर्ग परिचितों को ऐसी ही समस्या आती थी। सभी की सहमति से हमने एक संस्था की शुरुआत की जो अकेले रह रहे बुजुर्ग दंपतियों की देखभाल और मदद करे। राहुल ने इस नेक काम की शुरूआत वर्ष 2011 में की थी। उन्होंने जब इसके बारे में अपने दोस्तों को बताया तो वे भी इस काम में जुड़ते चले गए। और आज उनके साथ करीब 720 नौजवान जुड़ चुके हैं। जो रोजाना 2-2 परिवारों को समय देते हैं। अस्पताल ले जाते हैं, सब्जी भी लाते हैं।
ये नौजवान बुजुर्गों को बिल्कुल भी अकेलापन महसूस नहीं होने देते। सभी नौजवान इन बुजुर्गों को अपना पूरा समय देते हैं। जब किसी बुजुर्ग की तबियत खराब होती है, तो उसे अस्पताल भी ले जाते हैं। उनके लिए रोजाना समय पर साग-सब्जी, आटा दाल सहित खाने की सभी जरूरी चीजों का इंतजाम भी यही नौजवान करते हैं। इतना ही नहीं, बुजुर्गों को मनोरंजन करने के लिए उनके साथ चैस, लूडो, कैरम, बैडमिंटन जैसे इंडोर गेम्स भी खेलते हैं। वर्तमान में इन बुजुर्गों की संख्या हजार से अधिक पहुंच चुकी है। हालांकि शुरू में ये हताश रहते थे, इनको अपनी किस्मत पर रोना आता था। लेकिन जब से इन नौजवानों ने इन बेसहारा बुजुर्गों को सहारा दिया है, तब से इन्हें अपनी किस्मत से कोई शिकायत ही नहीं रही।
नेक काम से अभिभूत हैं रायपुरवासी
20 लोगों से शुरु हुई 'ब्राम्हण युवा पहल' में 60 महिलाएं-युवतियां भी शामिल हैं। राहुल के अन्य साथी बताते हैं 'देश-विदेश में बुजुर्गों के एकाकीपन की समस्या को गंभीरता से लिया जा रहा है। पर हम शहर के स्तर पर कुछ कर सकें इसलिए ये पहल की। फिलहाल हम 10 बुजुर्ग दंपतियों की नियमित तौर पर मदद कर रहे हैं।' राहुल बताते हैं, 'डेढ़ साल पहले बनी हमारी सामाजिक संस्था रक्तदान, एम्बुलेंस व शव वाहन जैसी सेवाएं दे रही है। इसके अलावा बॉडी फ्रीजर, व्हील चेयर, वॉकर, पेशेंट बेड आैर स्टिक भी उपलब्ध कराई जाती है जिसे इस्तेमाल के बाद वापस करना होता है। लोग सोशल मीडिया के माध्यम से संपर्क करते हैं। इसलिए 12 वाट्सएप ग्रुप व फेसबुक पेज भी बनाए गए हैं।'
एक बुजुर्ग दंपति इन युवाओं के सपोर्ट की तारीफ करते हुए बताते हैं, 'उनके बेटे यूएस में रहते हैं। राहुल और उनके साथी हमेशा मदद करते हैं। किसी भी समय फोन करने पर वे आ जाते हैं। हॉस्पिटल जाना हो या दवा और सामान मंगाना हो, वे तत्काल लाकर देते हैं। इससे हमें बच्चों की कमी महसूस नहीं होती।' तमाम रिपोर्ट्स इस बात की गवाह हैं कि आधुनिक समाज में बुजुर्ग उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं और अकेले रहने को मजबूर हैं। ब्राह्मण युवा पहल की सेवाएं ले रहे बुजुर्गों का कहना है कि उन्हें इन लोगों के साथ अपनों की कमी महसूस नहीं होती और किसी समय फोन करने पर ये लोग मदद के लिए हाजिर रहते हैं।
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