जीत के मंत्र के साथ ग्रामीणों की जिंदगी सुधारने में जुटा 'हारवा'
July 08, 2015, Updated on : Thu Sep 05 2019 07:19:24 GMT+0000

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कहते हैं इच्छा को कभी नहीं मारना चाहिए और अपने सपनों को पूरा करने के लिए लगातार प्रयास करते रहना चाहिए। और आपके पास अपना एक लक्ष्य एक होना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति इन बातों पर ध्यान दे तो उसे सफलता की ऊंचाईयों तक पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता। ऐसा व्यक्ति सफलता के शिखर को छूता है और अपने लिए सबके ह्रदय में एक अलग मुकाम बनाता है। ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति हैं अजय चतुर्वेदी। अजय पढ़ाई करने विदेश भी गए। लेकिन जब बात अपने सपने पूरे करने की आई तो वे भारत लौट आए। इस समय अजय भारत के ग्रामीण इलाकों में काम कर रहे हैं और अपने काम के माध्यम से वे ग्रामीणों की जिंदगी आसान बना रहे हैं।

अजय ने बिट्स पिलानी से इंजीनियरिंग की उसके बाद पेंसिलवेनिया की एक यूनिवर्सिटी से मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी की पढ़ाई की। उसके बाद उन्होंने सिटी बैंक में काम करना शुरु किया लेकिन मन में सदैव एक ही ख्याल रहता था कि कैसे वे भारत के गरीब लोगों के लिए काम करें। एक बार वे घूमने के लिए हिमालय की ओर चल दिए और इस टूर ने उनकी जिंदगी ही बदल कर रख दी। इसके बाद अजय ने नौकरी छोड़ दी और फिर अगले 6 महीने वहीं बिताए। अजय ने यहां रहकर जिंदगी को काफी करीब से जानने का प्रयास किया। कुछ समय बाद अजय को स्पष्ट हो गया कि अब उन्हें क्या करना है।

सन 2010 में वे आगे बढ़े और देश को सशक्त बनाने की दिशा में अपनी तरफ से एक प्रयास किया। अपने इस प्रयास को उन्होंने नाम दिया 'हारवा'। अजय ने पाया की ग्रामीणों को सशक्त करने का प्रयास तो सरकारें भी कर ही रहीं हैं लेकिन जमीनी स्तर पर सरकारी प्रयास दिखाई नहीं दे रहे हैं। फिर अजय ने तय किया कि वे लोगों के अस्थिर कामकाज को स्थाईत्व देंगे। वे ग्रामीणों के स्किल डेवलपमेंट का काम तो करेंगे ही साथ ही कुछ ऐसा भी करेंगे ताकि ग्रामीणों के आय के साधन बढ़ सकें।
'हारवा' शब्द हारवेस्टिंग वेल्यू से बना है और यह स्किल डेवलपमेंट की दिशा में काम करता है। अजय ने गांव में एक बीपीओ, कम्यूनिटी बेस्ड फार्मिंग और गांवों में माइक्रोफाइनेंस की शुरूआत की। अजय के बीपीओ में महिलाएं ही काम करती हैं। अजय ने गांव-गांव जाकर महिलाओं को बीपीओ में काम करने का न्योता दिया। जो भी महिलाएं थोड़ा बहुत पड़ी लिखीं थीं उन्हें कंप्यूटर ट्रेनिंग कराई गई और काम पर लगाया गया। यहां काम करने वाली महिलाओं को सेलरी दी जाती है जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आ रहा है।

'हारवा सुरक्षा' की हाल ही में शुरुआत की गई है। इस प्रोजेक्ट को बजाज फाइनेंस से भी मदद मिली है जोकि ग्रामीणों को माइक्रोफाइनेंस दे रहा है। हारवा इस समय एक्सपीओ की 20 हारवा डिजिटल हट्स चला रहा है। जिसमें से 5 हारवा की हैं जबकि बाकी फ्रेंचाइजी मॉडल पर काम कर रहीं हैं। यह भारत के 14 राज्यों में फैली हैं और इनमें 70 प्रतिशत महिलाएं काम कर रहीं हैं। लगभग हजार परिवारों को इस प्रोजेक्ट से फायदा हो रहा है। यहां पर कर्मचारियों को उनकी मेहनत की सही सेलरी सही समय पर दी जाती है। यहां काम करने वाले ज्यादातर गरीब परिवार के लोग हैं।
तेजी से बढऩे की चाह में हारवा पार्टनरशिप मॉडल पर भी काम कर रहा है। अजय बताते हैं कि उन्हें शार्ट टर्म के लिए मिडल लेवल मैनेजमेंट में सुधार लाने होंगे ताकि काम और गति पकड़े और विभिन्न राज्यों में फैले, वहीं विभिन्न देशों में पहुंचना अजय का लॉग टर्म मोटिव है।
गांवों में नेटवर्क काफी खराब होता है साथ में वहां की कनेक्टिविटी भी सही नहीं होती जिस कारण अजय को काम करने और काम के विस्तार में खासी दिक्कत आती है। अजय उदाहरण देते हुए बताते हैं कि यदि किसी गांव में सूखा पड़े तो दूसरे गांव से पानी के कैन लाकर लोगों की प्यास तो बुझाई जा सकती है लेकिन यह समाधान स्थाई नहीं है। स्थाई समाधान तभी संभव है जब हम पानी की पाइप बिछाएं। इस प्रकार हमें समस्याओं के ऐसे समाधान चाहिए जो स्थाई हों। इसी सोच के साथ अजय आगे बढ़ रहे हैं और उनके काम को सराहा जा रहा है। विश्व आर्थिक मंच ने अजय के उत्कृष्ट कार्यों को देखते हुए सन 2013 में उन्हें यंग ग्लोबल लीडर पुरस्कार से नवाजा।
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