तेरह घंटे के रास्ते को 7 घंटे में पूरा कर एक महीने की बच्ची की जान बचाने वाला ड्राइवर
ड्राइवर को सलाम...
केरल में एम्बुलेंस ड्राइवर ने सिर्फ सात घंटे में कन्नूर से तिरुवनंतपुरम तक 516 किलोमीटर की दूरी नापकर बच्ची को जीवनदान दिया है।
वो बच्ची, फातिमा, पैदाइशी बीमार थी। दिन बढ़ते-बढ़ते उसकी हालत और नाजुक होने लगी। उसको सांस लेने में दिक्कत होने लगी। उसकी जान को हर सेकंड खतरा बना हुआ था। उसकी किसी भी हाल में हार्ट सर्जरी होनी थी।
एम्बुलेंस के साथ केरल पुलिस की कम से कम दो एसयूवी लगातार चल रही थी। एसयूवी जिला सीमाओं में बदलते रहे जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि थमीम को अपनी पेस धीमा नहीं करना पड़ा।
जाको राखे साइयां, मार सके न कोए। ये दुनिया मानवता से ही चल रही है, संवर रही है। महज इकत्तीस दिनों की एक बच्ची को एम्बुलेंस ड्राइवर ने बचा लिया है। बच्ची की हालत काफी नाजुक थी। उसकी किसी भी हाल में हार्ट सर्जरी होनी थी। केरल में एम्बुलेंस ड्राइवर ने सिर्फ सात घंटे में कन्नूर से तिरुवनंतपुरम तक 516 किलोमीटर की दूरी नापकर बच्ची को जीवनदान दिया है। मानवता के सेवक, इस ड्राइवर का नाम है थमीम।
वो बच्ची, फातिमा, पैदाइशी बीमार थी। दिन बढ़ते-बढ़ते उसकी हालत और नाजुक होने लगी। उसको सांस लेने में दिक्कत होने लगी। उसकी जान को हर सेकंड खतरा बना हुआ था। किसी भी हाल में उसकी इमरजेंसी सर्जरी होनी ही थी। कन्नूर के डॉक्टरों ने उसे तुरंत तिरुवनंतपुरम के एसआरआई हॉस्पिटल में शिफ्ट करने की सलाह दी थी। फातिमा के परिजनों ने यह सलाह मान ली। थमीम को गंभीर रूप से बीमार इस बच्चे को जल्द से जल्द कन्नूर से तिरुवनंतपुरम तक पहुंचने की जिम्मेदारी दी गई। थमीम को पता था कि उन्हें ऐसा काम दिया गया है जिसमे उनकी एक चूक से मासूम की जान जा सकती है।
गूगल मैप के अनुसार, इस यात्रा में हल्के यातायात के साथ 13 घंटे लग सकते थे। लेकिन बहादुर एम्बुलेंस ड्राइवर ने केरल पुलिस और बाल रक्षा टीम संगठन की सहायता से सिर्फ 7 घंटे में यह संभव बना दिया। परिजनों ने शिशु को एयरलिफ्ट करने के बारे में भी सोचा। लेकिन वहां से निकटतम हवाई अड्डे दो ही थे कालीकट या मैंगलोर। पर वो भी कम से कम पांच घंटे दूर थे। फिर यह तय किया गया कि उसे सड़क के रास्ते ही तिरुन्तपुरम तक पहुंचाया जाए। आपने अगर मनोज बाजपेयी अभिनीत फिल्म ट्रैफिक देखी है तो इस घटना को साफ तौर पर अपने दिमाग में चित्रित कर सकते हैं।
इस मौके पर केरल पुलिस ने एम्बुलेंस के लिए परेशानी मुक्त यात्रा सुनिश्चित करने की योजना को अंतिम रूप देने के लिए योजना बनाई थी। कन्नूर जिला पुलिस प्रमुख ने पूरी यात्रा का समन्वय करने के लिए एक विशेष दल की तैनाती की थी और एंबुलेंस के साथ एक अन्य अधिकारी था जो ट्रैफिक को लगातार विनियमित कर रहा था। इसको सफल बनाने के लिए सिर्फ राज्य पुलिस ही नहीं लगी थी बल्कि यात्रा के समन्वय के लिए बाल संरक्षण दल केरल (सीपीटी), एक गैर-लाभकारी संगठन के सदस्यों ने भी पुलिस के साथ हाथ मिला लिया था। सबका एक ही उद्देश्य था उस बच्ची की जान बचाना।
एम्बुलेंस के साथ केरल पुलिस की कम से कम दो एसयूवी लगातार चल रही थी। एसयूवी जिला सीमाओं में बदलते रहे जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि थमीम को अपनी पेस धीमा नहीं करना पड़ा। केरल पुलिस और बाल रक्षा टीम संगठन ने भी लोगों को अपील करने के लिए सहकारी और आसान मार्ग के लिए एम्बुलेंस के मार्ग पर किसी भी रुकावट से बचने के लिए खड़ा किया। सफलतापूर्वक यात्रा को पूरा करने के बाद थमीम ने मीडिया से बात की और कहा कि उसके दिमाग में सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि किसी भी तरह करके उस बच्ची को हॉस्पिटल पहुंचाना है।
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