स्त्री स्वास्थ्य की दिशा में नया कदम, सैनिटरी नैपकिन पर नहीं लगेगा जीएसटी
इस साल की शुरुआत में सैनिटरी पैड को जीएसटी के दायरे से बाहर निकालने के लिए कई अभियानों की शुरुआत हुई थी, जिसका परिणाम यह हुआ कि जीएसटी काउंसिल ने इसे जीएसटी मुक्त कर दिया है।
इस साल की शुरुआत में देश के कई हिस्सों के स्टूडेंट्स ने एक कैंपेन चलाया था। ये स्टूडेंट्स सेनेटरी नैपकिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मेसेज लिखकर इसे जीएसटी से बाहर करने और निशुल्क बनाने की मांग की थी।
भारत जैसे देश में महिला स्वास्थ्य और सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है। देश में न जाने कितनी लड़कियां उचित सुविधा न मिलने के कारण स्कूल छोड़ देती हैं तो वहीं महिलाओं का एक बड़ा तबका सैनिटरी पैड जैसी चीज से अनजान है। लेकिन सरकार ने नया कर प्रावधान जीएसटी लागू करने के बाद इस पर टैक्स लगा दिया था जिसके नकारात्मक परिणाम निकलने लाजिमी थे। इसके लिए देशभर में आवाजें उठीं और सैनिटरी पैड को जीएसटी के दायरे से बाहर निकालने के लिए कई अभियानों की शुरुआत की, जिसका परिणाम यह हुआ कि जीएसटी काउंसिल ने इसे जीएसटी मुक्त कर दिया है।
इसका मतलब अब देश में सैनिटरी पैड्स पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। अभी तक इस पर 12 फीसदी कर वसूला जा रहा था। दिल्ली सरकार के वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया ने जीएसटी काउंसिल की बैठक से बाहर निकलते हुए एएनआई से बात करते हुए बताया कि इसके साथ ही कई उत्पादों पर जीएसटी शुल्क में कमी की गई है। सिसोदिया ने कहा, 'मैं मानता हूं कि 28 फीसदी टैक्स स्लैब को खत्म कर दिया जाए। इस मामले को बेवजह घसीटा जा रहा है।' टैक्स रिटर्न को लेकर उन्होंने कहा कि 5 करोड़ रुपये तक वाले ट्रेडर्स के लिए तिमाही रिटर्न को जीएसटी काउंसिल ने मंजूरी दे दी है। हालांकि, चीनी पर सेस को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है।
इस साल की शुरुआत में देश के कई हिस्सों के स्टूडेंट्स ने एक कैंपेन चलाया था। ये स्टूडेंट्स सेनेटरी नैपकिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मेसेज लिखकर इसे जीएसटी से बाहर करने और निशुल्क बनाने की मांग की थी। कई सोशल मीडिया कैंपेन ने भी सैनिटरी पैड्स को जीएसटी के दायरे में रखने की आलोचना की थी। राजनेता सुष्मिता देव ने भी एक हस्ताक्षर अभियान चलाया था जिसे 300,000 से भी अधिक लोगों का समर्थन मिला था।
एक आंकड़े के मुताबिक भारत में 81 प्रतिशत महिलाएं पीरियड्स के दिनों में गंदे कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। इसके पीछे जानकारी न होने या पैसों का आभाव होता है। सैनिटरी प्रोडक्ट्स पर लगाए जाने वाले कर से इन महिलाओं के स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ने की पूरी संभावना थी। रिपोर्ट्स कहती हैं कि जानकारी की कमी या फिर गलत चीजों के इस्तेमाल से महिलाओं में रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इंफेक्शन की आशंका 70 प्रतिशत बढ़ जाती है। यहां तक कि संक्रमण से कैंसर तक होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में सैनिटरी पैड्स को जीएसटी के दायरे से बाहर निकालने पर देश की महिलाओं को इससे जाहिर तौर पर काफी फायदा होगा।
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