ब्रेक्सिट की कहानी आगे क्या मोड़ लेगी इसका अंदाज़ा मँजे हुए राजनीतिक पंडित भी नहीं लगा पा रहे हैं। जो लोग कल तक ब्रेक्सिट के पक्ष में तलवारे भाँज रहे थे वो अगला कदम उठाते हुए डर रहे हैं, और जो ब्रेक्सिट के पक्ष में नहीं थे वो जनता की इच्छा (जनमत संग्रह के नतीजे) का सम्मान करने की बात कह रहे हैं। आगे का रास्ता उतार-चढ़ाव भरा होगा ये तो सभी जानते हैं, लेकिन ये मुश्किलें कितनी कठिनाई भरी होंगी ये कोई नहीं जानता।
आयरलैंड गणराज्य और उत्तरी आयरलैंड के बीच खुली सीमा पहले की तरह ही बनी रहेगी। लेकिन इसकी वजह से यूके यूरोपीय कोर्ट ऑफ जस्टिस और यूरोपीय संसद के प्रभाव क्षेत्र से बाहर हो जाएगा।
ब्रेक्सिट की कहानी आगे क्या मोड़ लेगी इसका अंदाज़ा मँजे हुए राजनीतिक पंडित भी नहीं लगा पा रहे हैं। जो लोग कल तक ब्रेक्सिट के पक्ष में तलवारे भाँज रहे थे वो अगला कदम उठाते हुए डर रहे हैं, और जो ब्रेक्सिट के पक्ष में नहीं थे वो जनता की इच्छा (जनमत संग्रह के नतीजे) का सम्मान करने की बात कह रहे हैं। आगे का रास्ता उतार-चढ़ाव भरा होगा ये तो सभी जानते हैं, लेकिन ये मुश्किलें कितनी कठिनाई भरी होंगी ये कोई नहीं जानता।
ब्रेक्सिट कितना जटिल है और होता जा रहा है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसने एक प्रधानमंत्री (डेविड कैमरून) और दो कैबिनेट रैंक पदाधिकारियों की कुर्सी छीन ली है। ब्रेक्सिट से उभरी राष्ट्रीय भावनाओं को भुनाने की नई प्रधानमंत्री टेरेसा मे की चाल भी उल्टी पड़ गई जब जल्दी में कराए गए चुनाव में उनकी कंज़र्वेटिव पार्टी बहुमत से खिसककर अल्ममत में आ गई। फिलहाल किसी के पास भी ब्रेक्सिट की ऐसी योजनी नहीं है जिसके ब्रिटिश संसद और यूरोपीय संघ दोनों में पारित हो जाने की संभावना हो। ब्रिटिश प्रधानंत्री टेरेसा मे के लिए ये दिन काफी मुश्किल भरे हैं क्योंकि ब्रेक्सिट की गाड़ी की ड्राइवर सीट पर वही बैठी हैं और अच्छा या बुरा जो होगा उसका नतीजा उन्हें ही झेलना होगा।
भारतीय सामाजिक परिप्रेक्ष्य में समझना हो तो यूरोपीय संघ को एक संयुक्त परिवार के रूप में देखा जा सकता है। ब्रिटेन इस संयुक्त परिवार से निकलना चाहता है। संयुक्त परिवार में रहने का फायदा यह था कि ब्रिटिश कंपनियाँ अपना माल, पूँजी और सेवाएँ यूरोपिय देशों में निर्बाध रूप से भेज सकती थीं। नुकसान ये था कि संयुक्त परिवार का हिस्सा होने के नाते ब्रिटेन यूरोपीय संघ के बाहर के देशों के साथ कोई अलग से व्यापार डील नहीं कर सकता था और यूरोपिय लोगों के लिए अपने बॉर्डर कड़े नहीं कर सकता था। इन समस्याओं के मद्देनज़र अलग-अलग पक्ष अपना अलग-अलग मॉडल पेश कर रहे हैं। आइए देखते हैं ये मॉडल क्या हैं:
1. हार्ड ब्रेक्सिट
हार्ड ब्रेक्सिट का अर्थ यह है कि ब्रिटेन यूरोपिय संघ से बिना किसी समझौते के निकल ले। यूरोपीय संघ के तीन घटक हैं, सिंगल मार्केट, कस्टम्स यूनियन और फ्री ट्रेड एरिया। इन तीनों की वजह से यूरोपीय संघ के देशों के बीच लोगों, सेवाओं, माल और पूँजी की आवाजाही पर एकसमान कानून लागू होते हैं। हार्ड ब्रेक्सिट होता है तो यूके इन तीनों से बाहर हो जाएगा। ब्रिटेन और बचे हुए संयुक्त परिवार के बीच एक ऊँची चहारदीवारी खड़ी हो जाएगी। यूरोपीय संघ के लिए यूके उसी तरह बेगाना हो जाएगा जैसे कि चीन या भारत।
यूँ तो ये बहुत सरल होता अगर उत्तरी आयरलैंड का पेचीदा मामला इससे न जुड़ा होता। आयरलैंड एक द्वीप है जिसका बड़ा हिस्सा आयरलैंड गणराज्य है और एक छोटा हिस्सा, उत्तरी आयरलैंड, युनाइटेड किंगडम का अंग है। अगर हार्ड ब्रेक्सिट होता है तो आयरलैंड के इन दोनों हिस्सों के बीच अभी जो ३१० मील लंबी खुली सीमा है उसपर बॉर्डर कंट्रोल स्थापित करने होंगे और आयरिश लोग नहीं चाहेंगे कि अपने ही द्वीप पर इधर से उधर जाने के लिए उन्हें वीज़ा-पासपोर्ट की ज़रूरत पड़े। इसके अलावा इससे व्यापार में बहुत बड़े पैमाने पर व्यवधान उत्पन्न होने की संभावना है। स्वास्थ्य सेक्रेटरी ने अभी से ज़रूरी दवाओं का स्टॉक रखने के लिए अस्पतालों को चेतावनी दे दी है।
2. सॉफ्ट ब्रेक्सिट
यह हार्ड ब्रेक्सिट के उलट है। इसके तहत ब्रिटेन और यूरोपीय संघ का तलाक एक झटके में होने की बजाय धीरे-धीरे होगा और कुछ समय तक वर्तमान नियम कानून लागू रहेंगे। ब्रिटेन यूरोपीय संघ के बजट में अपना आर्थिक योगदान देता रहेगा हालाँकि यूरोपीय संघ के नियमों को बनाने में उसकी कोई भागीदारी नहीं होगी। इस योजना के समर्थकों का विश्वास है कि इससे व्यापार में कम से कम व्यवधान उत्पन्न होगा और नए समझौते-संधियाँ स्थापित करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा।
3. ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरेसा मे का चेकर्स प्लान उपरोक्त दोनों योजनाओं की खिचड़ी है। यह यूके को बॉर्डर कंट्रोल और दूसरे देशों के साथ ट्रेड डील करने की छूट देगा है जो कि हार्ड ब्रेक्सिट का हिस्सा हैं। वहीं यह एक नए फ्रेमवर्क के तहत ब्रिटेन को सिंगल मार्केट और कस्टम्य यूनियन में बने रहने देगा। आयरलैंड गणराज्य और उत्तरी आयरलैंड के बीच खुली सीमा पहले की तरह ही बनी रहेगी। लेकिन इसकी वजह से यूके यूरोपीय कोर्ट ऑफ जस्टिस और यूरोपीय संसद के प्रभाव क्षेत्र से बाहर हो जाएगा। चेकर्स प्लान की समस्या यह है कि इसमें वस्तुओं को तो शामिल किया गया है लेकिन सेवाओं को शामिल नहीं किया गया है, जो कि यूके की इकोनोमी का बड़ा हिस्सा हैं।
वहीं दूसरी तरफ यूरोपीय संघ को यह प्लान पसंद नहीं आ रहा है। उनका कहना है कि हम यूके के लिए अलग से कोई प्रावधान नहीं कर सकते। अगर यूके चाहे तो यूरोपीय संघ का हिस्सा न होते हुए भी यूरोपीय सिंगल मार्केट का हिस्सा बना रह सकता है जैसे की नॉर्वे की स्थिति है। लेकिन इस दशा में उसे यूरोपीय कानून मानने होंगे और यूरोपीय बजट में योगदान करना होगा। यूरोपीय संघ ने चेकर्स प्लान को पूरी तरह खारिज कर दिया है वहीं वर्तमान स्थिति को देखते हुए लगता नहीं कि टेरेसा मे का यह प्लान ब्रिटिश संसद में भी पास हो पाएगा। चार हफ्तों में दोनों पक्ष फिर से मिलने वाले हैं। देखते हैं तबतक यह सौदेबाजी किस दिशा में आगे बढ़ती है।
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