कलेक्टरी छोड़कर राजनीति में कदम रखने वाले ओपी चौधरी का क्या हुआ?
छत्तीसगढ़ में कभी दंतेवाड़ा और रायपुर के कलेक्टर के रूप में युवाओं के बीच लोकप्रिय किंतु कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के निशाने पर रहे 2005 बैच के युवा आईएएस अधिकारी ओमप्रकाश चौधरी इस्तीफा देकर जब भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे तो कल हजारों मतों से हार गए।
'आप' के राष्ट्रीय प्रभारी गोपाल राय ने बाकायता एक प्रेस कांफ्रेंस में ओमप्रकाश चौधरी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि उन्होंने सांठगांठ कर भ्रष्टाचार किया है। इस मामले का खुलासा होने वाला था, लिहाजा कार्रवाई से बचने के लिए बीजेपी में शामिल हो गए।
हाल ही में वर्ष 2005 बैच के आईएएस अधिकारी रायपुर (छत्तीसगढ़) के कलेक्टर ओमप्रकाश चौधरी ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह की मौजूदगी में भाजपा का हाथ थाम लिया था। कलेक्टर की नौकरी छोड़ने से पहले वह रायपुर के और उसके पहले वह दंतेवाड़ा में कलेक्टर थे। पिछले चुनाव में वह जनसंपर्क विभाग में थे। वह सीएम रमन सिंह के करीबी रहे हैं। नक्सल प्रभावित इलाके में बेहतरीन कार्य के लिए चौधरी को प्रधानमंत्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। वह विगत 25 अगस्त को अपने पद से इस्तीफा देकर राज्य की खरसिया विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतर पड़े थे। कल जब मतगणना हुई तो वह कांग्रेस के उम्मीदवार उमेश पटेल से 16, 967 मतों के अंतर से हार गए। पटेल को कुल 94201 वोट और चौधरी को 77,234 वोट मिले। चौधरी अघरिया समुदाय से हैं, जिसका छत्तीसगढ़ में अच्छा जनाधार है। कलेक्टर रहने के दौरान चौधरी युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय रहे हैं।
एक अत्यंत संसाधनहीन परिवार में जन्मे एवं सरकारी स्कूल में पढ़ाई करने के बाद वर्ष 2005 में महज 23 साल की युवा अवस्था में चौधरी छत्तीसगढ़ के पहले आईएएस अधिकारी बन गए थे। उन्हे शिक्षा के माध्यम से नक्सल समस्या से ग्रसित दंतेवाड़ा के लोगों के विकास में योगदान के लिए सफल लोक प्रशासक का पुरस्कार मिला। गौरतलब है कि दंतेवाड़ा की साक्षरता दर मात्र 42 है। उन दिनो उनके विशेष मोटिवेशन वर्कशॉप में हजारों युवा शामिल हुआ करते थे। जब वह जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के दौरे पर जाते थे, उनसे न्याय मिलने की लोगों को काफी उम्मीदें रहती थीं। इसके साथ ही एक सख्त प्रशासनिक अधिकारी के रूप में भी उनकी छवि बन चुकी थी।
अपने चुनाव प्रचार के दौरान जनसभाओं में वह कहते थे कि जो सही कामों में मेरा साथ देगा, मैं उसका साथ दूंगा और जो सही कामों में मेरा साथ नहीं देगा, मैं उस पर कहर बनकर टूटूंगा। सबको पता होना चाहिए कि वर्ष 2019 में एक बार फिर नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनेंगे और छत्तीसगढ़ में रमनसिंह के नेतृत्व में चौथी बार भाजपा की सरकार बनने जा रही है। ऐसी स्थिति में मैं भी बहुत पॉवर में रहूंगा।
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया प्रभारी विकास तिवारी बताते हैं कि ओम प्रकाश चौधरी ने ऐसे समय में इस्तीफा दिया था, जब राजधानी रायपुर में डेंगू, पीलिया का प्रकोप फैला हुआ था। लोगों की मौतें हो रही थीं लेकिन वह अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए कलेक्टरी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। यह सब उनके एक असफल प्रशासक होने की मिसाल है। जब वह कलेक्टर थे, जनदर्शन के दौरान रायपुर जिले में 953 से ज्यादा आवेदनों को उन्होंने जानबूझकर लंबित रखा। पूरे जिले से गरीब जनता, जरूरतमंद लोग महीनों इंतजार करते रहते थे कि कलेक्टर उनकी शिकायतों पर कुछ कार्रवाई जरूर करेंगे लेकिन चौधरी तो भाजपा और संघ के नेताओं के साथ बैठकें करने में मशगूल रहते थे।
रायपुर की जनता उन्हें एक असफल, लेटलतीफ प्रशासनिक अधिकारी और हारे हुए राजनेता के रूप में याद रखेगी। चौधरी ने जिन दिनों अपने पद से इस्तीफा दिया था, उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए आम आदमी पार्टी ने लोक आयोग में शिकायत दर्ज करा दी थी कि उन्होंने दंतेवाड़ा कलेक्टर रहने के दौरान नियम के विपरीत जाकर कृषि योग्य जमीन को व्यावसायिक जमीन में बदल दिया। उन्होंने कूटरचना से निजी जमीन को महंगे दर पर और सरकारी जमीन को सस्ते में बिकवा दिया। लोकायुक्त ने आश्वासन दिया था कि इस मामले की पड़ताल की जाएगी। जरूरत पड़ने पर ओम प्रकाश चौधरी से पूछताछ की जा सकती है।
'आप' के राष्ट्रीय प्रभारी गोपाल राय ने बाकायता एक प्रेस कांफ्रेंस में ओमप्रकाश चौधरी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि उन्होंने सांठगांठ कर भ्रष्टाचार किया है। इस मामले का खुलासा होने वाला था, लिहाजा कार्रवाई से बचने के लिए बीजेपी में शामिल हो गए। दंतेवाड़ा में कलेक्टर के पद पर रहते हुए उन्होंने निजी और सरकारी जमीन की अदला-बदली की। जिले में जिला पंचायत भवन के बाजू में प्राइवेट कृषि भूमि थी। इस जमीन को चार लोगों ने मिलकर खरीदा। उसके बाद वहां उसी जमीन पर विकास भवन बनाने की योजना बनाई गई।
इस जमीन को खरीदकर उसके बदले बस स्टैंड के पास कमर्शियल जमीन देने की बात की गई और मोहम्मद साजिद के नाम से कलेक्ट्रेट में आवेदन किया गया। एक महीने के भीतर ही चालीस लाख की जमीन के बदले में बस स्टैंड के पास करोड़ों रुपए की कमर्शियल जमीन दे दी गई। तब से आज तक जमीन वैसी ही पड़ी है। वहां कोई विकास भवन नहीं बना लेकिन बदले में मिली जमीन पर एक भव्य कमर्शियल भवन बन गया। उसके बाद कोर्ट ने चौधरी पर एक लाख का जुर्माना लगा दिया तो आत्मरक्षा के लिए चौधरी राजनीति में चले गए।
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