भरी ट्रेन में अखबार बिछाकर संगीत यात्राएं करते थे तबला उस्ताद जाकिर हुसैन
विश्व-प्रसिद्ध तबला वादक, म्यूज़िकल प्रोड्यूसर, फिल्म एक्टर और कम्पोज़र उस्ताद जाकिर हुसैन का जन्म 09 मार्च को होता है है। सन् 1988 में सैंतीस साल की उम्र में ही वह पद्म श्री से और कुछ ही वर्ष बाद पद्म भूषण से नवाज दिए गए। और उसके कुछ वर्ष बाद तो उन्हें संगीत का विश्व-श्रेष्ठ 'ग्रैमी अवार्ड' भी मिल गया। यह सब उन्हें जिंदगी में कठिन संघर्ष करते हुए हासिल हुआ।
उनके तबले की धुन लोगों के दिल में उतर जाती है। वह सिर्फ तबला साधक ही नहीं, फिल्म जगत की भी मशहूर हस्ती हैं। उन्होंने तमाम फिल्मों में गीत गाए, संगीत दिए। कई फिल्मों के लिए एकल संगीत और ग्रुप बैंड के संगीत दिए।
'वाह उस्ताद, वाह'.... हर जुबान पर जमाने से कायम ये खुशी के लफ्ज हैं उस्ताद अल्ला रक्खा एवं बावी बेगम के सुपुत्र, विश्व-प्रसिद्ध तबला वादक, म्यूज़िकल प्रोड्यूसर, फिल्म एक्टर और कॉंपोज़र उस्ताद जाकिर हुसैन के, जिनका आज (09 मार्च) जन्म दिन है। ज़ाकिर हुसैन कहते हैं कि 'मुझे आज भी याद हैं बचपन के वे दिन, जब वह अब्बा के साथ खूबसूरत घरेलू महफ़िलों में जाया करते थे। जबतक अब्बा लोगों के साथ खा-पी रहे होते, म्युज़ीशियन उनका रसोई में इंतज़ार करते। बुलाए जाने पर ही वह बाहर आते। वह अब्बा के साथ डब्बे भर-भर के खाना घर लाया करते थे।
अब्बा हमेशा कहते थे कि ये तबला तो सरस्वती की तरह पूजनीय है। इसकी इज्जत किया करो। इसे रास्ते की चीज मत समझो। कभी तबले के पास जूता न रखो। तबले पर कभी अपने कपड़े न रखो। उसको एक पूजा की चीज समझो। हर वाद्य में एक रूह है। एक आत्मा है। अगर तुमको एक अच्छा कलाकार बनना है तो उस वाद्य से इजाजत लेनी पड़ेगी कि वह वाद्य उसको कुबूल कर ले। ये बहुत जरूरी चीज है। अगर उस वाद्य ने स्वीकार कर लिया तो समझो कि दरवाजा खुल गया। जैसे उस्ताद विलायत खान साहब थे तो सितार जैसे उनसे पूछता कि आप हुक्म करिए कि मुझे करना है। तभी उनके दिमाग में जो आता, वह उस पर गूंजने लग जाता।'
जाकिर हुसैन बताते हैं कि 'ऐसा तब होता है, जब साज कलाकार से सहमत होता है, जैसा वह बजाना चाहता है, अपने आप बजने लगता है। यह तब होता है, जब कलाकार का साज से विशेष रिश्ता बन जाता है। रिश्ता उसकी रूह से बनता है। मैं जब बारह साल का था, तब से मैंने तबला वादन का सफर शुरू किया। कितना कठिन वक्त था वह। मुंबई से जा रहा हूं। पटना या कोलकाता जा रहा हूं। मुगलसराय में उतरकर ट्रेन बदल रहा हूं। छोटा सा था। तब मेरे पास इतने पैसे नहीं होते कि आरक्षित कोच से यात्रा कर पाऊं। बस यही होता कि किसी भी तरह ट्रेन में लद जाना है। उस वक्त भी अब्बा की बातें पलभर को भी नहीं भूल पाता था कि हुक्म है, ये तबला भर नहीं, सरस्वती हैं। लाख भीड़भाड़ में भी तबले को किसी ठेस नहीं लगनी चाहिए।
पढ़ें: विजय शेखर बने देश के पहले सबसे युवा अरबपति
ट्रेन में अपनी सीट तो होती नहीं थी, अखबार बिछाकर नीचे बैठ जाता और गोद में तबला ले लेता, जिससे इसे धक्का न लगे, किसी का पैर न लगे, किसी का जूता न लगे। फिर दिन-दिनभर सफर चलता रहता। तबला उसी तरह इबादत में गोद में पड़ा रहता। तो इस तरह की हिफाजत, इबादत के कारण ही आज उन्हें ये मोकाम नसीब हुआ है। दुनिया ने उन्हें इतनी इज्जत दी है।'
इस महान तबला वादक का बचपन मुंबई में ही बीता। कॉलेज तक (सेंट माइकल हाई स्कूल और सेंट ज़ेवियर कॉलेज) की पढ़ाई-लिखाई पूरी होने तक के दिनो में ही उन्होंने देश-दुनिया में काफी शोहरत कमा ली। वह बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी रहे। उनको तीन साल की उम्र से ही अब्बा से पखावज की शिक्षा मिलने लगी थी।
जब वह ग्यारह वर्ष के थे, संगीत-यात्राएं करने लगे। वर्ष 1970 में वह यूनाइटेड स्टेट चले गए। सेन फ्रांसिस्को में रह रहे जाकिर हुसैन ने बाद में अमेरिकी कत्थक नर्तकी एवं शिक्षिका अन्टोनिया मिन्नेकोला के साथ शादी रचा ली। उनकी दो बेटियां हैं, अनीसा कुरैशी और ल्सबेल्ला कुरैशी। ग्रेजुएट अनीसा विडियो और फिल्म निर्माण के क्षेत्र में सक्रिय हैं। ल्सबेल्ला ने मेनहट्टन में डांस की पढ़ाई की है। सन् 1973 में उनका पहला एलबम 'लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड' आया। उसके बाद तो वह अपने कमाल के हुनर से पूरी दुनिया में छा गए। अंतरराष्ट्रीय समारोहों और एलबमों में उनका तबला गूंजता रहा। सन् 1988 में जब उन्हें पद्म श्री का पुरस्कार मिला तो वह सैंतीस साल के युवा थे। इतनी कम उम्र में पद्मश्री पाने वाले वह पहले तबला वादक माने जाते हैं।
सन् 2002 आते-आते, जाकिर हुसैन को पद्म भूषण से भी नवाज दिया गया और 2009 में तो उन्हें संगीत का विश्व-श्रेष्ठ 'ग्रैमी अवार्ड' भी मिल गया। जाकिर हुसैन जब भी तबला बजाते हैं, श्रोता सुध-बुध खो बैठते हैं। लोग अपने आप कह उठते हैं, वाह उस्ताद, वाह। उनके तबले की धुन लोगों के दिल में उतर जाती है। वह सिर्फ तबला साधक ही नहीं, फिल्म जगत की भी मशहूर हस्ती हैं। उन्होंने तमाम फिल्मों में गीत गाए, संगीत दिए। कई फिल्मों के लिए एकल संगीत और ग्रुप बैंड के संगीत दिए। भारतीय शास्त्रीय संगीत के विकास में उनका महान योगदान रहा है।
उनके हुनर का ही कमाल था कि पहली बार तबला वादन में भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक पहचान मिली। वह 'वर्ल्ड म्यूजिक सुपर ग्रुप' के सदस्य, प्रिन्सटन यूनिवर्सिटी के म्यूजिक डिपार्टमेंट के प्रोफेसर, स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी के विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे। संगीत के क्षेत्र में उनकी लाजवाब कामयाबियों में 'जाकिर एंड हिज फ्रेंड', 'दी स्पीकिंग हैण्ड: जाकिर हुसैन', ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट एल्बम एंड टूर', इस्तानबुल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल पुरस्कार, मुंबई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल आदि रहे, जिन्होंने पूरी दुनिया की निगाहें उन पर टिकी रहीं।
यह भी पढ़ें: कभी सात हजार की नौकरी करने वाला शख्स कैसे बना लिकर किंग