हेपेटाइटिस सी के खिलाफ लड़ाई हम जीत सकते हैं
ज़रुरत है सरकार, चिकित्सा से जुड़े सामाजिक उद्यमी, और डॉक्टरों को हस्तक्षेप करने की...
आंकड़े कहते हैं कि दुनिया भर में लगभग बीस करोड़ लोग हेपेटाइटिस सी के शिकार हैं। यानी दुनिया के तीन प्रतिशत लोग, जो इस भयंकर चिरकालिक बीमारी से सतत जूझ रहे हैं, जिससे कलेजे के कैंसर होने तक की सम्भावना बनी रहती है। हर साल, तीस से चालीस लाख लोग हेपेटाइटिस सी के संक्रमण से ग्रस्त होते हैं, और इनमें से लगभग साढ़े तीन लाख लोग अपनी जान से हाथ गँवा बैठते हैं। इतने ही लोग सिरोसिस से भी जान गंवाते हैं।
हेपेटाइटिस सी से वर्ष 2010 में सोलह हज़ार भारतियों की जान गई। लगभग दो लाख भारतियों ने कलेजे के कैंसर की वजह से अपनी जान गँवाई जिसका संक्रमण हेपेटाइटिस सी वायरस से फैलता है। अनुमान लगाया जाता है कि हमारे देश में एक करोड़ से भी अधिक लोग हेपेटाइटिस सी से संक्रमित हैं। ये महज़ आंकड़े हैं, जो असली संख्या से कम भी हो सकते हैं। मूलभूत सुविधाओं के आभाव में हेपेटाइटिस सी से संक्रमित अधिकांश भारतियों को अपनी स्थिति के बारे में शायद ही पता होगा।
हेपेटाइटिस सी वायरस की खोज वर्ष 1989 में हुई थी और तब से लेकर आज तक यह बीमारी कई लोगों की जान ले चुका है। यद्यपि इसके टिके का ईजाद अभी तक नहीं हो पाया है, टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक, मई में दिल्ली के 'सर गंगा राम अस्पताल' के डॉक्टरों ने एक ऐसी दवाई की खोज की है जो हेपेटाइटिस सी के 90 प्रतिशत मामलों में कारगर सिद्ध हुआ है। पिछली दवाई रीबावायरिन केवल 14 प्रतिशत मरीज़ों का उपचार करने में सक्षम थी।
भारत के डॉक्टरों का मानना है कि एच आई वी एड्स के खिलाफ लड़ते हुए लाए गए चिकित्सा में बदलावों की वजह से हमारे पास बुनियादी ढाँचे मौजूद है जिनसे हम हेपेटाइटिस सी के खिलाफ एक कारगर लड़ाई की शुरुवात कर सकते हैं। इन व्यवस्थाओं का इस्तेमाल कर हेपेटाइटिस सी से लड़ा जा सकता है। अगर अस्पतालों में हेपेटाइटिस सी की जांच को अनिवार्य कर दिया जाए, तो उपचार और देखभाल कर कई लोगों की जान बचाई जा सकती है।
ज़ाहिर है हमारे देश में एच आई वी एड्स की तुलना में हेपेटाइटिस सी से ग्रस्त, और इस बिमारी से मरने वालों की संख्या कहीं अधिक है। हालाँकि अक्सर देखा गया है कि कई मरीज़ दोनों वायरस से संक्रमित पाए गए हैं। हेपेटाइटिस सी वायरस की जांच महँगी होती है, और अधिकांश भारतीय इसका खर्च नहीं उठा पाते।
हेपेटाइटिस सी से सम्बंधित भारत में दूसरी मूलभूत समस्या यह भी है कि हम अभी तक इस बिमारी की जटिलता का अनुमान नहीं लगा पाए हैं। किन इलाकों में यह वायरस अधिक है, भारत के सन्दर्भ में इसके संक्रमण पर कैसे रोक लगाए जा सकते हैं, इत्यादि। हमें ऐसे सवालों के जवाब नहीं पता। जबतक आरंभिक स्तर पर काम नहीं किया जाएगा, हम इस बीमारी से लड़ाई की शुरुवात नहीं कर सकेंगे।
त्रिपुरा के हेपेटाइटिस संस्थान के राष्ट्रपति, डॉ. प्रदीप भौमिक ने गुवाहाटी में एक सभा को सम्बोधित करते हुए हाल ही में कहा कि चिक्तिसा विज्ञान में नवाचार हुए हैं, और अगर हेपेटाइटिस सी से जुड़े सभी लोग एक होकर मेहनत करें, तो भारत एक हेपेटाइटिस मुक्त देश बन सकता है। ज़रुरत है सरकार, चिकित्सा से जुड़े सामाजिक उद्यमी, और डॉक्टरों को हस्तक्षेप करने की।